अख़बार की ख़बरों को पढ़कर नहीं; गाकर पढ़ते थे किशोर कुमार

Kishore Kumar used to sing and read the news instead of reading it in the newspaper
 
अख़बार की ख़बरों को पढ़कर नहीं; गाकर पढ़ते थे किशोर कुमार
Byline - Roshan Mishra : मेरे नैना सावन भादो, फ़िर भी मेरा मन प्यासा! फ़िर भी मेरा मन प्यासा.. इस गाने में महान गायक और अभिनेता किशोर कुमार ने सिर्फ अपनी आवाज़ ही नहीं दी; बल्कि इस गाने के हर शब्द के साथ-साथ अपनी ज़िन्दगी को जीने का सलीका भी बनाया। हिन्दी और उर्दू बोली को बोलने-समझने वाले इन्सान, वे चाहे दुनिया की किसी भी कोने में क्यों न हों; उनमें से शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने किशोर दा की आवाज़ को न सुना होगा और उनका प्रशंसक न होगा। यह करिश्मा हर कोई नहीं कर सकता था। अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना की फिल्मों के गाने जिस दौर में घर-घर सुने और देखे गये; उन गानों में अधिकतर गानों की आवाज़ महान किशोर दा ही थे। चाहे गमगीन माहौल हो या फ़िर रोमांटिक मूड को बनाने का ख़्याल हो; हर मर्ज की दवा था किशोर दा का आवाज़। तेज़ और कड़क आवाज़ में सुमधुरता का रस कुदरत ने इन्हें सौंपा था। शोले में इन्होंने एक गीत गाया था - ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे, छोड़ेंगे दम मगर तेरा साथ नहीं छोड़ेंगे! किशोर दा ने अपने फैंस से दोस्ती का रिश्ता कायम कर लिया था। वे आज ही के दिन यानि कि १३ अक्टूबर १९८७ को, अठावन बरस की अल्पायु में इस दुनिया को अलविदा कह गये, लेकिन उनकी आवाज़ ने आज भी अपने प्रशंसकों का साथ देना नहीं छोड़ा है। किशोर दा को देखकर या उनकी आवाज़ की कॉपी कर-करके कई गायकों ने सन् अस्सी और नब्वे के दशकों में अपने करियर के लिए नया मंच तैयार किया। उनमें से कुछ तो हिन्दी सिनेमा जगत के दुलारे भी बन गये। आज भी बहुत सारे ऐसे गायक हैं जो किशोर दा को मंचों पर ज़िन्दा रखे हुए हैं। किशोर दा किसी टीवी सिंगिंग टैलेंट हंट शो की ख़ोज से पैदा नहीं हुए थे। उन्हें देवी सरस्वती का अप्रत्यक्ष रूप से वरदान प्राप्त था। तभी तो किशोर दा का नाम आते ही उनके फैंस कहते हैं - चुरा लिया है दिल को..! आज १३ अक्टूबर को किशोर दा की पुण्यतिथि है। दुनिया भर के कोने-कोने से उनके प्रशंसक उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे 

अरे दीवानों.. मुझे पहचानों, मैं हूं कौन

जी हां, आपने सही पहचाना। हम किसी और की बात नहीं; बल्कि अपनी मधुर और झन्नाटेदार आवाज़ से गद्य को पद्य में ढ़ाल देने वाले महान गायक किशोर कुमार की बात कर रहे हैं। भारतीय सिनेमा में किशोर कुमार ने जो मुकाम हासिल किया है, वहां तक गिने-चुने लोग ही पहुंच पाये हैं। किशोर कुमार उस ज़माने में बॉलीवुड की आवाज़ बने; जिस वक्त न तो सिंगिंग टैलेंट शो हुआ करते थे और ना ही अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसा कोई मंच हुआ करता था। यही कारण है कि उनके गाये हुए गाने आज भी कानों तक पहुंचते ही ज़ुबान ख़ुद-ब-ख़ुद फड़फड़ाने लगते हैं।

किशोर कुमार का असली नाम आभास कुमार गांगुली था। वे एक बंगाली ब्राह्मण समाज से ताल्लुक रखते थे। उनका जन्म ४ अगस्त १९२९ को खण्डवा - मध्यप्रदेश में हुआ था। इनके पिताजी कुंजीलाल एक जाने-माने वकील थे। अपने कुल चार भाई-बहनों में ये सबसे छोटे थे। इसलिए, परिवार में हर किसी के दुलारे थे। मीडिया रिपोर्टों में इनके बारे में यों तो अनगिनत क़िस्से-कहानियां मशहूर है; लेकिन एक क़िस्सा इनके कॉलेज लाइफ का भी है जो काफ़ी रोचक और मज़ेदार भी है। कुछ हुआ यूं कि किशोर कुमार उस वक्त इन्दौर के क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़ रहे थे। वहां कॉलेज के कैंटीन में ये ख़ुद भी उधार ख़ाना खाते-पीते थे और अपने दोस्तो को भी खाते-पिलाते थे। वहां, उधार ख़ाना खाना इनकी आदत में शुमार हो गया था। उस समय दस-बीस पैसे भी बहुत मायने रखते थे। किशोर कुमार की कैंटीन में उधार खाने-पीने की आदत के कारण उस कैंटीन का उधार बढ़कर पांच रुपए बारह आना हो गया था। इससे कॉलेज कैंटीन के मालिक ने किशोर कुमार को पांच रुपए बारह आना बतौर उधार चुकता करने को कहा। किशोर कुमार तो पूरी तरह से मनमौजी क़िस्म के इन्सान थे। हालत यह हो गयी थी कि जब-जब कैंटीन का मालिक उनसे कुल उधार चुकता करने को कहता; वे तब-तब कैंटीन के टेबल पर ही बैठकर गिलास और चम्मच बजा-बजाकर अलग-अलग धुनों को निकाल कर पांच रुपए बारह आना गाने लगते। आगे चलकर हिन्दी सिनेमा के एक गाने में किशोर कुमार गांगुली ने इसी ' पांच रुपए बारह आना ' शब्द का प्रयोग किया है। जो कि काफ़ी प्रसिद्ध भी हुआ था। मात्र अठावन बरस की उम्र में १३ अक्टूबर १९८७ को मुम्बई में किशोर दा की जीवन-लीला समाप्त हो गयी।

किशोर कुमार अपनी निजी ज़िन्दगी में भी काफ़ी खुले दिल के इन्सान थे। उन्होंने जैसे चाहा वैसे अपनी ज़िन्दगी को जीया। ऐसा बताया जाता है कि उन्होंने कुल चार बार शादी की थी। उनकी पहली बीवी बंगाली गायक और अभिनेत्री थीं जिनका नाम रुमा घोष था। यह शादी क़रीब आठ वर्षों तक ही चल सकी। इसके बाद उन्होंने मशहूर अभिनेत्री मधुबाला से विवाह किया। किशोर कुमार और मधुबाला की शादी को लेकर मीडिया रिपोर्टों में कई तरह की चर्चाएं प्रचलित हैं। इनमें से एक चर्चा यह है कि किशोर कुमार ने जब मधुबाला से विवाह का ज़िक्र किया तब वे अभी भी अपनी पहली बीवी के साथ सम्बन्धों में थे। यानि कि उनका तलाक नहीं हुआ था। ऐसा बताया जाता है कि जिस वक्त किशोर ने मधुबाला से विवाह का प्रस्ताव रखा, उस वक्त मधुबाला की तबीयत काफ़ी ख़राब थी और वे लन्दन जाकर अपने इलाज़ करवाना चाहती थीं। उनके दिल में छेद था। १९६० में, किशोर कुमार ने रुमा घोष से तलाक़ लेने के बाद मधुबाला से सिविल मैरिज के अन्तर्गत शादी कर लिया। कुछ लोग यहां तक भी कहते हैं कि इसके लिए उन्हें अपना धर्म भी बदलना पड़ा था।

१९६९ में, मधुबाला की मृत्यु के बाद किशोर कुमार अकेले हो गये थे। इसके बाद उन्होंने योगिता बाली से विवाह कर लिया। हालांकि, इस विवाह को भी जल्द ही ग्रहण लग गया। साल १९८० में, किशोर कुमार ने अपनी अन्तिम शादी की, लीना चन्द्रावकर के साथ। तब बॉलीवुड में लीना चन्द्रावकर एक चर्चित चेहरों में शामिल थीं। किशोर कुमार के दो बेटे हैं। बड़े बेटे अमित कुमार जिनकी मां रुमा घोष थीं और दूसरे बेटे सुमित कुमार हैं जिनकी मां लीना चन्द्रावकर हैं। अमित कुमार हिन्दी सिनेमा के जाने-माने गायक रह चुके हैं। अमित ने लव स्टोरी जैसी सुपरहिट मूवी में ' याद आ रही है, तेरी याद आ रही है ' गाया था। लव-स्टोरी मूवी, उसके नायक कुमार गौरव, अमित कुमार और उनका गाया हुआ गाना अस्सी के दशक में बहुत अधिक लोकप्रिय हुआ था।

 बहुत कम लोगों को पता है कि दिग्गज अभिनेता और दादा मुनि के नाम से मशहूर अशोक कुमार किशोर कुमार के सगे बड़े भाई थे। वे बॉलीवुड में बहुत पहले से काम कर रहे थे। उनके नाम का सिक्का चल चुका था। सन् १९४६ में, किशोर कुमार की हिन्दी सिनेमा में एंट्री बतौर एक्टर हुई थी। लेकिन उनको पहली बार गाने का मौका सन् १९४८ में देवानन्द की फिल्म शिकारी में मिला। किशोर कुमार मस्त-मौला आदमी थे। दुनिया जिस किशोर कुमार की फैन है; वे किशोर कुमार अपने ज़माने के लोकप्रिय गायक के एल सहगल के प्रशंसक थे। इसलिए, वे  शुरू-शुरू में मनमौजीपन में सहगल साहब की स्टाइल में गाना गाने की कोशिश करते थे। यह भी किसी रोचक कहानी से कम नहीं है कि हज़ारों गाने गा चुके किशोर कुमार के शुरुआती कुछ सालों में फिल्मों में उनकी आवाज़ मो रफ़ी हुआ करते थे। एक और मज़ेदार क़िस्सा है कि१९५८ में बनी फिल्म ' चलती का नाम गाड़ी ' में किशोर कुमार ने अपने दोनों भाइयों अशोक कुमार और अनुप कुमार के साथ काम किया था। इसके अलावा मधुबाला ने भी इस फिल्म में काम किया था।किशोर दा ने हिन्दी के अलावा अन्य कई सारी बोलियों में गीत गाये। उन्होंने ढ़ाई हज़ार से अधिक गाने गाये। महान संगीतकार एस डी बर्मन ने किशोर दा के करियर को निखारने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। किशोर दा को आठ बार बेस्ट गायक का फिल्म फेयर अवॉर्ड मिला। साल १९६९ में रिलीज हुई फिल्म 'आराधना' के लिए ' रूप तेरा मस्ताना, प्यार मेरा दीवाना ' के लिए पहली बार फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था। यह गाना अपने दौर का बहुत ही चर्चित रहा। 

एक दौर ऐसा भी था जब बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना और सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की अधिकतर फिल्मों में उनकी आवाज़ किशोर दा ही हुआ करते थे। यह कुदरत का करिश्मा ही कहा जा सकता है कि किशोर दा की आवाज़ का जादू ऐसा था कि राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन इन दोनों पर फिल्माये गये अधिकतर गाने सुपर-डुपर हिट साबित हुए। इसके अलावा भी किशोर दा ने महान अभिनेता संजीव कुमार, जितेन्द्र सहित अन्य दूसरे बड़े एक्टरों की फिल्मों के लिए अपनी आवाज़ दी। बता दें कि आपातकाल के खौफ़नाक दौर में किशोर दा को लेकर काफ़ी इमोशनल क़िस्से मशहूर हैं। मीडिया गलियारों में ऐसी चर्चा की जाती है कि आपातकाल को लेकर सरकार से उनकी ठन गयी थी। इस दौरान किशोर कुमार के ज़िन्दगी में कुछ ऐसे भी मोड़ आये जिसको लेकर उन्हें काफ़ी तकलीफ़ें झेलनी पड़ी थी। 
 किशोर दा किसी सिंगिंग टैलेंट हंट शो की तलाश नहीं थे। लोगों की ज़ुबानी यह भी चर्चा की जाती है कि किशोर दा ने कभी कोई प्रोफेशनल सिंगिंग की ट्रेनिंग नहीं ली थी। जिस वक्त उन्होंने हिन्दी सिनेमा में बतौर एक्टर क़दम रखा था, उस वक्त पूरा सिनेमा जगत बड़े-बड़े धुरंधर एक्टरों से लैस था। दलीप कुमार, राज कपूर, देवानन्द, बलराज साहनी, मोती लाल, गुरु दत्त और रहमान की एक्टिंग के सामने किशोर कुमार को ख़ुद को स्थापित करना इतना आसान भी नहीं था। फ़िर भी, उन्होंने जितनी भी फिल्मों में अभिनय किया; उसमें अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे। वहीं, यदि पार्श्वगायन की बात करें तो इसमें भी किशोर दा के लिए मुश्किलें कम नहीं थीं। मो रफ़ी, तलत महमूद, मुकेश और मन्ना दा जैसे लोकप्रिय गायकों के सामने किशोर दा का सिक्का चलना 'लोहे के चने चबाने' के सरीखा ही था। इन सबके बावजूद किशोर दा ने अपनी गायकी में जो शोहरतें हासिल की, उसे अच्छे-अच्छे गायक सोच भी नहीं सकते।हिन्दुस्तान के अलावा पूरी दुनिया में किशोर दा के बड़े-बड़े फैंस हैं। उनकी आवाज़ का जादू ऐसा था कि हर कोई झूमने को मजबूर हो जाता था। वे सारी ज़िन्दगी मस्ती और बिन्दास होकर जीते रहे। ख़ूब सारी धन-दौलत और नाम कमाया।‌ उनके गाये गानों को रीमिक्स गाने बना-बनाकर और गा-गाकर न जाने कितने लोगों के घरों की रोजी-रोटी चलती रही है।

 किशोर दा मन्ना डे की बहुत इज़्ज़त किया करते थे। मीडिया रिपोर्टों में किशोर दा को लेकर कुछ कहानियां सुनायी जाती है। एक बार की बात है। दिग्गज एक्टर मनोज कुमार किशोर कुमार को लेकर एक घटना का ज़िक्र करते हैं। उनकी एक फिल्म बन रही थी, उपकार। उस फिल्म में किशोर दा को अपनी आवाज़ में एक गाना गाने के लिए कहा गया। मनोज कुमार कहते हैं कि किशोर ने इस गीत को गाने से सिर्फ यह कहकर हाथ खड़ा कर दिया कि वे केवल फिल्म के हीरो के लिए गाते हैं; विलेन के लिए नहीं। बाद में उपकार और उसका वही गीत ' कसमें-वादे प्यार-वफ़ा ' दोनों सुपरहिट हुए। इसके बाद किशोर दा ने मनोज कुमार से किसी दिन मुलाक़ात पर कहा - " इतने अच्छे गाने का मौका छोड़ दिया। लेकिन, मन्ना डे ने जिस ख़ूबसूरती से इस गाने को गाया है; ऐसा शायद मैं कभी नहीं गा सकता था। "
 किशोर कुमार की फिल्मी कहानी-क़िस्से इतने अधिक हैं कि उन्हें एक सीरीज में सिमटना पाप होगा। भारतीय सिनेमा जगत में किशोर कुमार जैसी प्रतिभा कभी-कभी जन्म लेती है। वे एक महान गायक और उम्दा शख्शियत थे। उनके गाने सुनने के बाद कुछ और सुनने का दिल नहीं करता। वैसे तो किशोर कुमार का गाया हुआ हर एक गीत नायाब है। लेकिन कुछ गानें ऐसे हैं जिनक ज़िक्र करना लाज़िम है। आइये, जानते हैं किशोर दा के दस सबसे बेहतरीन गानों के बारे में

१- मेरे महबूब क़यामत होगी, आज रुसवा तेरी गलियों में मुहब्बत होगी ( फिल्म - मिस्टर एक्स इन बॉम्बे)
२- रूप तेरा मस्ताना, प्यार मेरा दीवाना ( फिल्म - आराधना )
- छूकर मेरे मन को ( फिल्म - याराना )
४- तेरे बिना ज़िन्दगी से शिकवा ( फिल्म - आंधी )
५- अपनी तो जैसे-तैसे ( फिल्म - लावारिस )
६- मुसाफ़िर हूं यारों..( फिल्म - परिचय )
७- खईके पान बनारस वाला ( फिल्म- डॉन)
८- दिल क्या करे जब किसी को ( फिल्म - जूली )
९- गोरे रंग पर न इतना गुमान कर ( फिल्म - रोटी)
१०- देखा एक ख़्वाब तो ( फिल्म - सिलसिला )

Roshan Mishra 
Independent Journalist & Founder -: The Political Mukhiya 
reportermishraji90@gmail.com

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