असदुद्दीन ओवैसी का BNSS नोटिस पर फटकार: "क्या मैं ही अकेला मर्द हूं?"

Owaisi targeted by government

 
Owaisi targeted by government

“Am I the only man?” – Owaisi's explosive reaction

AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी एक बार फिर अपने तीखे तेवरों के साथ सुर्खियों में हैं। इस बार उनका निशाना है केंद्र सरकार और हाल ही में लागू हुआ कानून BNSS (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता)। ओवैसी को इस कानून की धारा 223 के तहत नोटिस भेजा गया है, जिस पर उन्होंने महाराष्ट्र के अहमदनगर में एक जनसभा में सरकार पर जमकर निशाना साधा।

BNSS क्या है और क्यों है चर्चा में?

BNSS, यानी Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 1 जुलाई 2024 से लागू हुआ नया कानून है, जो CrPC यानी Criminal Procedure Code की जगह आया है। इसका उद्देश्य आपराधिक प्रक्रिया को तेज करना और जांच को अधिक वैज्ञानिक बनाना है।

इसमें धारा 223 बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है। इस धारा के अनुसार:

  • किसी भी संवेदनशील केस में

  • नोटिस या चार्जशीट जारी करने से पहले

  • शिकायतकर्ता और गवाहों के बयान दर्ज करना अनिवार्य है।

तो सवाल उठता है – क्या ओवैसी के मामले में ये प्रक्रिया अपनाई गई?

ओवैसी को क्यों मिला नोटिस?

सूत्रों के अनुसार, ओवैसी को कुछ पुराने भाषणों को लेकर BNSS की धारा 223 के तहत नोटिस मिला है। इन भाषणों में भड़काऊ भाषा होने का आरोप है।

लेकिन ओवैसी ने इसे राजनीतिक साजिश करार दिया है।
10 अक्टूबर 2025, अहमदनगर की एक बड़ी रैली में उन्होंने कहा:

"क्या मैं ही अकेला मर्द हूं? क्या बाकी पार्टियों के नेताओं को नोटिस नहीं मिलना चाहिए था?"

उनका यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया।

ओवैसी के आरोप क्या हैं?

  • उन्होंने आरोप लगाया कि उनके केस में फॉरेंसिक जांच जैसी कोई प्रक्रिया फॉलो नहीं की गई।

  • शिकायतकर्ताओं और गवाहों के बयान तक दर्ज नहीं हुए।

  • ओवैसी ने पूछा – "जब BNSS सबके लिए है, तो सिर्फ मुझे ही क्यों निशाना बनाया गया?"

इसके साथ ही उन्होंने CAA, NRC और अल्पसंख्यकों के मुद्दे उठाकर कहा कि वे सरकार की सबसे मुखर आलोचना करते हैं, इसलिए उन्हें निशाना बनाया जा रहा है।

उन्होंने X (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट कर लिखा:

"अगर गांधी और भगत सिंह जिंदा होते, तो वो भी इस कानून के खिलाफ सड़कों पर उतरते।"

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं: सियासी संग्राम तेज

  • BJP नेताओं ने ओवैसी के आरोपों को "ड्रामा" बताया।
    उनका कहना है कि कानून सबके लिए बराबर है – "गलत किया है तो कार्रवाई होगी।"

  • वहीं विपक्षी पार्टियां खुलकर ओवैसी के समर्थन में आईं:

    • कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने इसे "लोकतंत्र पर हमला" कहा।

    • महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी ने सवाल उठाया –

      "क्या सिर्फ विपक्षी नेताओं को ही निशाना बनाया जा रहा है?"

इस विवाद ने 2025 के आगामी लोकसभा चुनावों से पहले सियासी पारा और चढ़ा दिया है। कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला गठबंधनों की स्थिति को बदल सकता है।

निष्कर्ष: क्या यह सियासी तूफान बनेगा?

ओवैसी का BNSS नोटिस विवाद न सिर्फ कानूनी बहस का मुद्दा बना है, बल्कि इसके जरिए आने वाले महीनों में बड़े राजनीतिक बदलावों की आहट भी सुनाई दे रही है।

क्या वाकई सरकार राजनीतिक विरोधियों को दबाने के लिए कानून का इस्तेमाल कर रही है, या यह सिर्फ एक प्रक्रियागत कार्रवाई है – इसका जवाब समय ही देगा।

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