पल्लवी जोशी: सिनेमा को सच का आईना बनाने वाली अदाकारा
आज हम बात करने जा रहे हैं indian cinema की एक ऐसी हस्ती की, जिन्होंने अपनी फिल्मों के जरिए न सिर्फ entertain किया, बल्कि समाज को आईना दिखाने का काम भी किया। जी हां, हम बात कर रहे हैं एक्ट्रेस और प्रोड्यूसर पल्लवी जोशी की, जिन्होंने हाल ही में अपनी आने वाली फिल्म द बंगाल फाइल्स के बारे में बात करते हुए एक सनसनीखेज बयान दिया। उन्होंने कहा, “लोग अनकंफर्टेबल हों, इसलिए हम कश्मीर फाइल्स जैसी फिल्में बनाते हैं।” लेकिन सवाल यह है कि आखिर पल्लवी जोशी ने ऐसा क्यों कहा? क्या है उनके इस बयान के पीछे की कहानी? और उनकी फिल्में समाज को कैसे influence कर रही हैं?
पल्लवी जोशी indian cinema और टेलीविजन की एक जानी-मानी हस्ती हैं। 4 अप्रैल 1969 को मुंबई में जन्मीं पल्लवी ने मात्र 4 साल की उम्र में फिल्म नाग मेरे साथी (1973) से अपने करियर की शुरुआत की थी। उन्होंने रिहाई, सूरज का सातवां घोड़ा, और वो छोकरी जैसी समानांतर सिनेमा की फिल्मों में काम किया, जिसके लिए उन्हें तीन National Film Awards भी मिले। लेकिन असली चर्चा तब शुरू हुई, जब उन्होंने अपने पति और निर्देशक विवेक अग्निहोत्री के साथ द ताशकंद फाइल्स और द कश्मीर फाइल्स जैसी फिल्में बनाईं। ये फिल्में न सिर्फ बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट रहीं, बल्कि इन्होंने सामाजिक और राजनीतिक बहस को भी जन्म दिया। पल्लवी जोशी ने हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में कहा, “जो फिल्में हम बना रहे हैं, उससे लोग असहज होते हैं। ये बात हम जानते हैं और उसी नजरिए से हम फिल्में बनाते हैं। क्योंकि हम चाहते हैं कि लोग uncomfortable हों।” आइए, समझते हैं कि उनके इस बयान का मतलब क्या है और यह क्यों important है।
पल्लवी जोशी का यह बयान उनकी फिल्ममेकिंग के दर्शन को दर्शाता है। उनकी और विवेक अग्निहोत्री की फिल्में इतिहास के उन पन्नों को खोलती हैं, जिन्हें अक्सर दबा दिया जाता है। द कश्मीर फाइल्स ने 1990 के दशक में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और पलायन की दर्दनाक कहानी को सामने लाया। इस फिल्म ने न सिर्फ 300 करोड़ रुपये से ज्यादा की कमाई की, बल्कि समाज में एक गहरी बहस छेड़ दी।
पल्लवी ने कहा, “कुछ ऐसी बातें हैं जो आपके लिए जानना बेहद जरूरी है, क्योंकि वो आपसे सिस्टम द्वारा छिपाई गई हैं।” उनका मानना है कि सिनेमा का काम सिर्फ entertain करना नहीं, बल्कि समाज को जागरूक करना और सच को सामने लाना भी है। द कश्मीर फाइल्स में उन्होंने कश्मीरी पंडितों की पीड़ा को दर्शाया, जिसे उन्होंने चार साल की गहन शोध के बाद तैयार किया। एक इंटरव्यू में पल्लवी ने एक दिल दहला देने वाला किस्सा share किया, जहां एक कश्मीरी पंडित की बेटी ने बताया कि उनके पिता को मारकर 50 टुकड़ों में काट दिया गया और बोरे में फेंक दिया गया।
पल्लवी जोशी और विवेक अग्निहोत्री अब अपनी फाइल्स ट्रिलॉजी की तीसरी फिल्म द बंगाल फाइल्स लेकर आ रहे हैं, जो 5 september 2025 को रिलीज होगी। इस फिल्म का नाम पहले द दिल्ली फाइल्स: बंगाल चैप्टर था, लेकिन पल्लवी ने बताया कि कहानी बंगाल पर केंद्रित होने के कारण इसे द बंगाल फाइल्स नाम दिया गया।
इस फिल्म में पल्लवी ने 100 साल की एक बुजुर्ग महिला का किरदार निभाया है, जिसके लिए उन्होंने प्रोस्थेटिक्स का इस्तेमाल नहीं किया, ताकि किरदार Simple और Real लगे। लेकिन इस फिल्म को रिलीज से पहले ही कोलकाता में भारी विरोध का सामना करना पड़ा। ट्रेलर लॉन्च इवेंट रद्द करना पड़ा, और स्क्रीनिंग के दौरान हंगामा हुआ। पल्लवी ने बंगाल सरकार और वहां की कानून व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा, “ऐसे हालातों का सामना हमें कश्मीर में भी नहीं करना पड़ा।
पल्लवी जोशी का मानना है कि सिनेमा एक powerful medium है, जो समाज को बदल सकता है। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि पहले के दौर में राज कपूर, सुनील दत्त, और मनोज कुमार जैसे फिल्मकार सामाजिक सरोकार वाली फिल्में बनाते थे, जो कमर्शियल होने के साथ-साथ Meaningful भी थीं। लेकिन आज की फिल्में अक्सर सिर्फ ग्लैमर और entertainment तक सीमित रह जाती हैं।
पल्लवी और विवेक की फिल्में द ताशकंद फाइल्स, द कश्मीर फाइल्स, और अब द बंगाल फाइल्स तीन बुनियादी अधिकारों पर based हैं: सत्य का अधिकार, न्याय का अधिकार, और जीवन का अधिकार। द बंगाल फाइल्स जीवन के अधिकार पर केंद्रित है और बंगाल के अनकहे इतिहास को सामने लाने का दावा करती है।
पल्लवी जोशी और विवेक अग्निहोत्री की फिल्में हमेशा विवादों में रही हैं। द कश्मीर फाइल्स को कुछ लोगों ने इस्लामोफोबिया बढ़ाने का आरोप लगाया, जिसका पल्लवी ने जवाब दिया, “हमारी फिल्म का मकसद मजहबी तनाव बढ़ाना नहीं, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठाना था।” उन्होंने यह भी कहा कि अगर कश्मीरी पंडितों की कहानी बताने से सवाल उठते हैं, तो बाकी फिल्मकारों को भी अन्याय की कहानियां उठानी चाहिए।
द बंगाल फाइल्स को भी रिलीज से पहले विरोध का सामना करना पड़ रहा है। कोलकाता में ट्रेलर लॉन्च के दौरान पुलिस की लापरवाही पर पल्लवी ने गुस्सा जताया और कहा, “मैं एक कलाकार हूं, और आप मेरी आवाज नहीं दबा सकते।” यह दिखाता है कि पल्लवी और उनकी टीम सच को सामने लाने के लिए किसी भी चुनौती से डरने वाली नहीं है।
द कश्मीर फाइल्स के लिए पल्लवी और विवेक ने 700 से ज्यादा लोगों के इंटरव्यू लिए और चार साल तक शोध किया। एक इंटरव्यू में पल्लवी ने बताया कि एक 4 साल की बच्ची ने उनसे नमाज पढ़ने के लिए कहा, जिसने उन्हें झकझोर दिया। एक अन्य किस्से में उन्होंने एक कश्मीरी पंडित परिवार की आपबीती share की, जहां एक पिता को टुकड़ों में काटकर बोरे में फेंक दिया गया था।
इन कहानियों ने न सिर्फ पल्लवी को emotional form से influence किया, बल्कि उन्हें यह विश्वास दिलाया कि ऐसी कहानियां दुनिया के सामने लानी जरूरी हैं। उनकी वेब सीरीज द कश्मीर फाइल्स अनरिपोर्टेड में भी ऐसी अनकही कहानियों को शामिल किया गया, जो फिल्म में नहीं दिखाई जा सकीं।
पल्लवी जोशी ने हमेशा आलोचनाओं का डटकर सामना किया है। जब द कश्मीर फाइल्स को इजरायली फिल्मकार नदाव लपिड ने IFFI 2022 में “वल्गर प्रोपेगेंडा” कहा, तो पल्लवी ने जवाब दिया, “हम ये देखकर खुश हैं कि भारतीय लोग एक नरसंहार के झुठलाने वाले घटिया कमेंट के खिलाफ एकजुट हुए। यह फिल्म लोगों की थी और रहेगी।”
इसी तरह, द बंगाल फाइल्स के ट्रेलर लॉन्च के दौरान हुए विवाद पर पल्लवी ने कहा कि उनकी जिम्मेदारी सिर्फ अपनी ऑडियंस के प्रति है, न कि उन लोगों के प्रति जो उन्हें सम्मान नहीं देते।
पल्लवी जोशी का बयान, “लोग अनकंफर्टेबल हों, इसलिए हम कश्मीर फाइल्स जैसी फिल्में बनाते हैं,” यह दर्शाता है कि उनका मकसद समाज को झकझोरना और सच को सामने लाना है। उनकी फिल्में न सिर्फ entertain करती हैं, बल्कि इतिहास के उन दर्दनाक पन्नों को खोलती हैं, जिन्हें लोग भूल चुके हैं या जिन्हें सिस्टम ने दबा दिया। द बंगाल फाइल्स भी एक ऐसी ही कहानी लाने का वादा करती है, जो लोगों को सोचने पर मजबूर करेगी।पल्लवी और विवेक की जोड़ी ने साबित कर दिया कि सिनेमा सिर्फ ग्लैमर की दुनिया नहीं, बल्कि समाज को बदलने का एक हथियार भी हो सकता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या आप उनकी इस सोच से सहमत हैं? क्या फिल्मों को सच दिखाने के लिए विवादों का सामना करना चाहिए? अपनी राय कमेंट में जरूर बताएं।
