'पंचायत' के बनराकस उर्फ दुर्गेश कुमार: संघर्ष से सफलता तक की प्रेरणादायक कहानी

Panchayat Banrakas success story

 
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Banrakas actor biography

‘पंचायत’ वेब सीरीज ने जिस तरह से भारतीय गांवों की सादगी और राजनीति को दर्शाया है, उसने लोगों के दिलों में एक खास जगह बनाई है। इस सीरीज के कई किरदार दर्शकों को याद रह गए — उन्हीं में से एक है भूषण उर्फ 'बनराकस', जिसे निभाया है दुर्गेश कुमार ने।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस चुटीले और चालबाज किरदार के पीछे एक ऐसी कहानी है, जो संघर्ष, निराशा, उम्मीद और आत्मविश्वास से भरी है?

 थिएटर से पंचायत तक: दुर्गेश कुमार का सफर

दुर्गेश कुमार का जन्म बिहार के दरभंगा जिले में हुआ। बचपन से ही उनका रुझान अभिनय की ओर था, लेकिन उनके पास न फिल्मी बैकग्राउंड था और न कोई गॉडफादर।
2001 में वो दिल्ली पहुंचे, जहां उन्होंने इंजीनियरिंग की कोचिंग शुरू की, लेकिन उनका मन थिएटर में ज्यादा लगता था।
जल्द ही उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) में दाखिला लिया, जहां उनके सीनियर थे – पंकज त्रिपाठी और मनोज बाजपेयी जैसे दिग्गज कलाकार।

थिएटर के दिनों में दुर्गेश ने करीब 35 नाटकों में अभिनय किया, लेकिन आर्थिक तंगी के चलते कई बार उन्हें भूखे पेट सोना पड़ा। वो खुद कहते हैं:

“मैं 11 साल में दो बार डिप्रेशन में रहा। ये इंडस्ट्री मेंटली और इकोनॉमिकली हेल्दी इंसान के लिए ही है।”

 छोटे रोल, बड़ा संघर्ष

थिएटर के बाद दुर्गेश ने फिल्मों में छोटे रोल निभाने शुरू किए।
2014 में इम्तियाज अली की ‘हाईवे’ में उन्हें एक छोटा लेकिन दमदार रोल मिला। इसके बाद वो ‘सुल्तान’, ‘फ्रीकी अली’ जैसी फिल्मों में नजर आए, लेकिन कोई बड़ी पहचान नहीं मिल पाई।

एक इंटरव्यू में उन्होंने खुलकर बताया:

“मैंने सॉफ्ट पोर्न फिल्मों में भी काम किया, क्योंकि मुझे गुजारा करना था। मैं इरफान या नवाज़ नहीं हूं… मैं एक एवरेज एक्टर हूं, जिसे ज़िंदा रहना है।”

 पंचायत ने बदल दी किस्मत

'पंचायत' वेब सीरीज में जब उन्हें भूषण उर्फ बनराकस का किरदार मिला, तब किसी को अंदाज़ा नहीं था कि ये किरदार इतना मशहूर हो जाएगा।
पहले सीजन में उनका रोल बहुत छोटा था – मात्र 2.5 घंटे की शूटिंग। लेकिन सीजन 2, 3 और अब 4 में बनराकस ने दर्शकों को हँसी से लोटपोट कर दिया।

उनके संवाद जैसे:

“देख रहा है बिनोद?”
सोशल मीडिया पर वायरल हो गए।
बनराकस, जो अपनी पत्नी क्रांति देवी को प्रधान बनाना चाहता है, एक देसी चालाक और ह्यूमरस कैरेक्टर के रूप में घर-घर में पॉपुलर हो गया।

एक्टिंग से ज्यादा ज़रूरी है हौसला

दुर्गेश का मानना है कि:

“पंकज त्रिपाठी के बैच में 20 लोग थे, सभी टैलेंटेड थे, लेकिन मौका सिर्फ एक को मिला।”

उनका ये कथन बताता है कि इस इंडस्ट्री में टैलेंट के साथ-साथ किस्मत और संघर्ष भी जरूरी है।
आज ‘बनराकस’ सिर्फ एक किरदार नहीं, बल्कि उस ग्रामीण भारत की राजनीति का प्रतीक बन चुका है, जहां हास्य और होशियारी एक साथ चलते हैं।

 दुर्गेश की कहानी क्यों है खास?

  • बिना किसी फिल्मी कनेक्शन के उन्होंने खुद को साबित किया

  • संघर्षों से घबराए नहीं, बल्कि डटकर मुकाबला किया

  • छोटे-छोटे मौकों को पहचान कर बड़े मुकाम हासिल किए

  • लाखों युवा कलाकारों को प्रेरणा दी कि “कभी हार मत मानो”

आपकी राय क्या है?

क्या दुर्गेश कुमार की कहानी आपको प्रेरित करती है?
क्या बनराकस आपका पसंदीदा किरदार है?

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