उदयपुर फाइल्स" विवाद: फिल्म की असफलता, निर्माता का गुस्सा और सोशल मीडिया पर बवाल

 
Udaipur Files Controversy: Unpacking the Outrage & Lessons for Cinema | Honest Discussion

आज हम बात करेंगे एक ऐसे मुद्दे की जो इन दिनों सोशल मीडिया पर छाया हुआ है - "उदयपुर फाइल्स" फिल्म और इसके producer  अमित जानी के controversial statement की । लेकिन क्या ये सिर्फ एक फिल्म की नाकामी की कहानी है, या इसके पीछे कुछ बड़ा मुद्दा छिपा है ? चलिए जानते है पूरी डिटेल्स 

तो, बात शुरू होती है "उदयपुर फाइल्स" से, जो 11 जुलाई 2025 को रिलीज़ हुई। ये फिल्म कथित तौर पर कन्हैया लाल हत्याकांड की घटना से प्रेरित है, जो उदयपुर में हुई एक दुखद और संवेदनशील घटना थी। लेकिन फिल्म को दर्शक नहीं मिले, और इसे थिएटर्स से जल्दी हटाना पड़ा। इसके बाद, फिल्म के producer अमित जानी ने एक वीडियो शेयर किया, जिसमें उन्होंने हिंदू दर्शकों पर गुस्सा जाहिर किया और कुछ ऐसी बातें कहीं जो बेहद आपत्तिजनक थीं। जैसे, "हिंदू बहन-बेटियों को नंगा करके नचाने वाली फिल्में देखते हैं"।  

ये बयान न सिर्फ अपमानजनक था, बल्कि इसने सोशल मीडिया पर एक बड़ी controversy खड़ी कर दी । कुछ लोगों ने इसे हिंदू समुदाय के खिलाफ अपमान बताया, तो कुछ ने इसे producer  की निराशा का नतीजा माना। लेकिन सवाल ये है - क्या इस तरह की भाषा का use सही है? और क्या एक फिल्म की असफलता का ठीकरा दर्शकों पर फोड़ना उचित है?

देखिए, सिनेमा एक powerful medium है। ये समाज को आइना दिखा सकता है, लेकिन इसे जिम्मेदारी से इस्तेमाल करना ज़रूरी है। "उदयपुर फाइल्स" एक संवेदनशील विषय पर बनी थी। कन्हैया लाल का मामला एक ऐसी त्रासदी थी जिसने पूरे देश को झकझोर दिया। लेकिन अगर आप ऐसी कहानी को पर्दे पर लाते हैं, तो उसका presentation, message और इरादा साफ होना चाहिए। कई लोगों का मानना है कि इस फिल्म को एक खास एजेंडे के तहत बनाया गया, जिसे दर्शकों ने नकार दिया।  निर्माता का गुस्सा समझ में आता है - कोई भी नहीं चाहता कि उनकी मेहनत बेकार जाए। लेकिन दर्शकों को अपशब्द कहना या किसी समुदाय को निशाना बनाना सही नहीं है। इससे न सिर्फ उनकी अपनी reliability कम हुई, बल्कि फिल्म का मकसद भी धुंधला हो गया। इसके बजाय, अगर वो दर्शकों से रचनात्मक तरीके से बात करते, शायद चर्चा का रुख अलग होता

ये विवाद हमें कुछ अहम सवालों की ओर ले जाता है। पहला, क्या सिनेमा का इस्तेमाल समाज में तनाव बढ़ाने के लिए होना चाहिए? दूसरा, क्या दर्शकों की पसंद को अपमानित करना सही है? और तीसरा, क्या हमें ऐसी फिल्मों का समर्थन करना चाहिए जो संवेदनशील मुद्दों को सही तरीके से नहीं उठातीं?  मेरा मानना है कि सिनेमा को समाज को जोड़ने का काम करना चाहिए, न कि तोड़ने का। अगर कोई फिल्म दर्शकों तक अपनी बात नहीं पहुंचा पाती, तो इसके लिए निर्माताओं को भी आत्ममंथन करना चाहिए। और हम दर्शकों को भी सोच-समझकर उन फिल्मों का समर्थन करना चाहिए जो positive message देती हैं। 

तो "उदयपुर फाइल्स" का विवाद हमें सिखाता है कि सिनेमा और भाषा दोनों की जिम्मेदारी समझनी होगी।  हम ऐसी फिल्मों को सपोर्ट करें जो समाज में positive change लाएं। आप इस बारे में क्या सोचते हैं? क्या producer  का गुस्सा जायज़ था, या उनकी भाषा गलत थी? कमेंट में अपनी राय ज़रूर बताएं। 
इस पूरे विवाद में एक और पहलू जो सामने आता है, वो है सोशल मीडिया की भूमिका। अमित जानी के बयान के बाद ट्विटर और अन्य प्लेटफॉर्म्स पर लोगों ने तीखी प्रतिक्रियाएँ दीं। कुछ ने उनकी निंदा की, तो कुछ ने उनके गुस्से को producer  की emotional response बताया। लेकिन सोशल मीडिया पर अक्सर देखा जाता है कि ऐसी बातें जल्दी ही सांप्रदायिक रंग ले लेती हैं, और समाज में पहले से मौजूद तनाव को और बढ़ा देती हैं। आपका इस पूरी controversy पर क्या कहना  है comment बॉक्स में जरूर बताईयेगा . 

Tags