Punjab 95 Story : 'भारतीय झंडा हटाओ': सेंसर बोर्ड की चुप्पी क्यों


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'भारतीय झंडा हटाओ': सेंसर बोर्ड की चुप्पी क्यों

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पंजाब 95 एक बायोपिक फिल्म है, जो Sikh Human Rights worker जसवंत सिंह खालड़ा के life पर बेस्ड है। खालड़ा ने 1980 और 1990 के दशक में पंजाब में हुए Human Rights  उल्लंघनों और पुलिस अत्याचारों को उजागर किया था। उन्होंने दावा किया था कि पंजाब पुलिस ने उस दौरान करीब 25,000 सिख युवाओं की अवैध हत्याएं और अंतिम  संस्कार किए। उनकी इस रिसर्च ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा, लेकिन 1995 में अचानक वो लापता हो गए। उनकी पत्नी परमजीत कौर ने किडनैपिंग और मर्डर का केस दर्ज करवाया, लेकिन आज तक उनकी गुमशुदगी एक रहस्य बनी हुई है।  


इस फिल्म में दिलजीत दोसांझ जसवंत सिंह खालड़ा का किरदार निभा रहे हैं। फिल्म का Direction हनी त्रेहान ने किया है, और इसे पहले घल्लूघारा नाम दिया गया था, जिसे बाद में बदलकर पंजाब 95 किया गया। ये  फिल्म पंजाब के उस अशांत दौर को दिखाती है, जब सिख समुदाय और पुलिस के बीच तनाव चरम पर था। लेकिन यही Sensitive topics इस फिल्म को सेंसर बोर्ड के निशाने पर ले आया।


हनी त्रेहान ने कहा, "हमने पुलिस रिकॉर्ड और मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर facts को ध्यान में रखकर फिल्म बनाई। खालड़ा का परिवार और अकाल तख्त भी फिल्म से Satisfied हैं। फिर सेंसर बोर्ड को क्या दिक्कत है?" सवाल ये है कि अगर इतने cuts के बाद भी फिल्म को रिलीज की इजाजत नहीं मिल रही, तो क्या सेंसर बोर्ड इस फिल्म को पूरी तरह बैन करना चाहता है? इस विवाद ने और तूल तब पकड़ा जब पंजाब 95 का ट्रेलर यूट्यूब से हटा लिया गया। 

18 जनवरी 2025 को खबर आई कि ट्रेलर को यूट्यूब ने हटा दिया, जिसके बाद सोशल मीडिया पर सवाल उठने लगे कि क्या ये सेंसर बोर्ड का दबाव था या यूट्यूब की अपनी सेंसरशिप नीति? ट्रेलर में जसवंत सिंह खालड़ा के संघर्ष और पंजाब के उस दौर की कुछ झलकियां थीं, जो शायद कुछ लोगों को पसंद नहीं आईं।  सोशल मीडिया पर कई यूजर्स ने इसे Freedom of expression  पर हमला बताया। 

सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) का काम है फिल्मों को रिलीज से पहले सर्टिफिकेट देना। सिनेमैटोग्राफी एक्ट 1952 के तहत, सेंसर बोर्ड किसी फिल्म को बैन नहीं कर सकता, लेकिन सर्टिफिकेट देने से इनकार जरूर कर सकता है, जो कि बैन जैसा ही है। तो ये था पंजाब 95 और सेंसर बोर्ड के बीच चल रहा विवाद। क्या आपको लगता है कि सेंसर बोर्ड का रवैया जायज है, या ये Freedom of expression  पर हमला है? 

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