Swatantra veer Savarkar review कौन हैं वीर सावरकर, जिनका रोल निभाने के लिए Randeep Hooda को बेचनी पड़ी अपनी प्रॉपर्टी

Swatantra veer sawarkar randeep hooda
अभिनेता रणदीप हुड्डा अपनी नई फिल्म ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर’ को लेकर चर्चा में हैं. इस फिल्म में रणदीप हुड्डा ने ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर’ का रोल निभाने के लिए कड़ी मेहनत की है. फिल्म की कहानी वीर सावरकर के जीवन के साथ-साथ उनकी मृत्यु के रहस्यों से जुड़ी हुई है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि  वीर सावरकर की इस फिल्म को बनाने के लिए रणदीप हुड्डा को अपना घर तक बेचना पड़ा है. 

कौन हैं वीर सावरकर

विकिपीडिया की जानकारी के अनुसार, विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को हुआ था. वह एक क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी, समाजसुधारक, इतिहासकार, राजनेता तथा विचारक थे. उनका पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर था. उनके समर्थक उन्हें वीर सावरकर कहकर पुकारते थे. सावरकर ने हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीतिक विचारधारा 'हिन्दुत्व' को विकसित करने में अहम भूमिका निभाई. आज भी उन्हें हिन्दू महासभा का प्रमुख चेहरा माना जाता है.

वीर सावरकर ने भारत छोड़ो आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी. उन्होंने देश से अंग्रेजों को खदेड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी. हू किल्ड हिज स्टोरी’ टैगलाइन से सिनेमाघरों में पहुंची Randeep Hooda की फिल्म को दर्शकों द्वारा काफी सराहा जा रहा है. ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर’ फिल्म में दर्शाया गया है कि भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के लिए वीर सावरकर जिस सोच के साथ आगे बढ़ रहे थे और अपने संगठन को मजबूत कर रहे थे। अगर उसमें वह सफल होते तो देश काफी पहले आजाद हो चुका होता.  
 
फिल्म के लिए  Randeep Hooda  ने किया बॉडी ट्रांसफॉर्मेशन 

वीर सावरकर का किरदार निभाने के लिए रणदीप हुड्डा ने अपनी बॉडी को लेकर बहुत मेहनत की है. उनके बॉडी ट्रांसफॉर्मेशन की चर्चा हर तरफ है. उन्होंने इस फिल्म के लिए 26 किलो वजन कम किया है. एक इंटरव्यू में खुलासा हुआ कि रणदीप 4 महीने तक सिर्फ एक खजूर और एक गिलास दूध पीकर ही सेट पर सूटिंग के लिए जाते थे.  

फिल्म बनाने के लिए बेचनी पड़ी प्रॉपर्टीज़

इतना ही नहीं ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर’ फिल्म बनाने के लिए रणदीप हुड्डा को अपना घर तक बेचना पड़ा. उन्होंने एक इंटरव्यू के दौरान इसका खुलासा करते हुए कहा कि मैंने अपना घर बेचकर यह फिल्म बनाई है. उन्होंने आगे कहा कि "मुझे इस फिल्म को बनाते समय पैसों की दिक्कत हो गई थी. मेरे पिता जी ने पैसे बचाकर मेरे लिए कुछ प्रॉपर्टीज़ खरीदी थीं मुंबई में और वो मैंने इसी फिल्म की वजह से खत्म कर दी. मैंने इस फिल्म पर सबकुछ खर्च कर डाला. मुझे लगता था कि मैं इसे बनाना छोड़ नहीं सकता."

दूसरों की आजादी में खुश थे वीर सावरकर

आपको बता दें कि सावरकर को अपनी जिंदगी के कुछ साल जेल में भी गुजरने पड़े. उन्होंने अपनी किताब "माई ट्रांसपोर्टेशन फॉर लाइफ" में लिखा है: "मुझे रिहा करो, मैंने कहा, भारत को औपनिवेशिक स्वशासन से लैस करो, और अपने लोगों की वफादारी और प्यार जीतो. यह सरकार को हर उस सहयोग का आश्वासन देगा जिसकी उसे जरूरत है. यदि सरकार को संदेह है, तो मैंने निष्कर्ष में लिखा, पत्र लिखने में मेरा मकसद, मैंने व्यक्तिगत रूप से खुद के लिए बिना किसी रिहाई के यह करने की पेशकश की. अंडमान में मुझे अपने ही सेल में अकेला छोड़कर सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा कर दें. मैं उनकी आजादी में इस तरह खुशी मनाऊंगा जैसे कि यह मेरी अपनी हो.''  

वीर सावरकर ने दिया राष्ट्रध्वज पर धर्म चक्र लगाने का सुझाव 

बता दें कि वीर सावरकर को हिंदुत्व के पिता के रूप में भी जाना जाता है. आज हमारे राष्ट्रध्वज तिरंगे के बीच में जो धर्म चक्र है, उसको लगाने का सुझाव सर्वप्रथम सावरकर ने ही दिया था. तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने उनके इस सुझाव पर अपनी हामी भरी थी.

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