जावेद अख्तर का तीखा सवाल: "जब महिलाएं जलाई जाती हैं, तब समाज चुप क्यों रहता है?"

Javed Akhtar social commentary
 
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Why was society silent Sonam Raghuvanshi

राजा रघुवंशी हत्याकांड और उससे जुड़े सामाजिक विमर्श ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। इस मुद्दे को और भी तीव्रता तब मिली जब जावेद अख्तर ने इस केस और महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचारों पर एक साहसिक और संवेदनशील बयान दिया। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे उनके शब्दों ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया:

"जब महिलाएं अपने पतियों को मारती हैं तो समाज चौंकता है, लेकिन जब महिलाएं जिंदा जलाई जाती हैं, पिटती हैं… तब क्यों कोई नहीं बोलता?"

इस बयान ने बहस छेड़ दी है—क्या जावेद अख्तर सोनम रघुवंशी का समर्थन कर रहे हैं, या वो समाज के दोहरे मापदंड को उजागर कर रहे हैं? आइए इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं।

 क्या कहा जावेद अख्तर ने?

27 जून 2025 को NDTV के क्रिएटर्स मंच पर बोलते हुए, जावेद अख्तर ने मेघालय के राजा रघुवंशी हत्याकांड और मेरठ के नीले ड्रम केस को लेकर अपनी राय रखी। उन्होंने स्पष्ट कहा कि उनका दृष्टिकोण “मिश्रित भावनाओं” से भरा हुआ है। उन्होंने यह सवाल उठाया कि जब महिलाएं पुरुषों के खिलाफ हिंसा करती हैं, तो समाज तुरंत प्रतिक्रिया देता है, लेकिन जब महिलाएं पीड़ित होती हैं—जिंदा जलाई जाती हैं, पीटी जाती हैं, प्रताड़ित की जाती हैं—तब समाज की आवाज क्यों नहीं उठती?

 क्या यह सोनम रघुवंशी के पक्ष में है?

बहुत से लोगों ने अख्तर के बयान को सोनम रघुवंशी के समर्थन के रूप में देखा, लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि उन्होंने कहीं भी हत्या को जायज़ नहीं ठहराया। उन्होंने केवल यह पूछा कि जब पुरुष अपराध करते हैं, तब समाज चुप क्यों रहता है, और जब एक महिला प्रतिक्रिया स्वरूप कोई अपराध करती है, तो उसी समाज का गुस्सा चरम पर क्यों होता है?

 भारत में महिलाओं की स्थिति: आंकड़ों की जुबानी

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) 2022 के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 4 लाख से ज़्यादा मामले दर्ज किए गए, जिनमें घरेलू हिंसा, दहेज हत्या और यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर अपराध शामिल हैं। लेकिन इन पर वैसी प्रतिक्रिया नहीं आती जैसी कुछ हाई-प्रोफाइल मामलों में देखी जाती है। जावेद अख्तर ने इसी चयनात्मक गुस्से की ओर इशारा किया।

 जबरन शादी और महिलाओं की ऑटोनॉमी का सवाल

अख्तर ने यह सवाल भी उठाया कि क्या सोनम रघुवंशी से उनकी शादी से पहले उनकी सहमति ली गई थी? क्या एक छोटे शहर की लड़की के लिए अपने माता-पिता के फैसले का विरोध करना आसान होता है? उन्होंने उन सामाजिक दबावों की ओर ध्यान दिलाया जो महिलाओं की स्वतंत्रता और निर्णय लेने के अधिकार को प्रभावित करते हैं।

 क्या ये सिर्फ अपराध है या सिस्टम की विफलता?

सोनम रघुवंशी और मेरठ की मुस्कान जैसे मामलों में सवाल सिर्फ हत्या का नहीं है, बल्कि उन परिस्थितियों का भी है जिन्होंने इन महिलाओं को इस चरम कदम तक पहुँचाया। कुछ रिपोर्ट्स का दावा है कि सोनम और उनका प्रेमी नशे की लत से जूझ रहे थे, जबकि राजा रघुवंशी के परिवार ने उनके व्यवहार को आपत्तिजनक बताया। मगर सवाल यह है कि अगर शादी जबरन हुई थी और संबंधों में लगातार हिंसा या नियंत्रण था, तो क्या इन हालातों को भी नज़रअंदाज़ किया जा सकता है?

जावेद अख्तर ने क्या समझाने की कोशिश की?

जावेद अख्तर का बयान महिलाओं द्वारा किए गए अपराधों का बचाव नहीं है, बल्कि यह एक बड़ी सामाजिक सच्चाई की ओर इशारा है — कि हम तब तक खामोश रहते हैं जब तक शोषण छुपा रहता है, और सिर्फ़ तब बोलते हैं जब पीड़िता प्रतिरोध में अपराध कर बैठती है।

 समाज के लिए जरूरी सवाल

  • क्या हम महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा को उतनी गंभीरता से लेते हैं जितना हमें लेना चाहिए?

  • क्या महिलाओं को अपनी शादी और जीवन के फैसलों में पूरी स्वतंत्रता है?

  • क्या हम सिर्फ़ तब प्रतिक्रिया देते हैं जब कोई अपराध "Breaking News" बन जाए?

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