Bihar Voter List Deletion 2025 Analysis : बिहार वोटर लिस्ट से हटे 52 लाख नाम: सफाई या सियासी साजिश?

 
Bihar assembly election 2025 SIR 52 lakh names removed
Bihar Voter list revision 2025 बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 से पहले एक बड़ा चुनावी धमाका हुआ है। चुनाव आयोग ने स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (Special Intensive Revision - SIR) के तहत बिहार की वोटर लिस्ट से करीब 52 लाख नाम हटा दिए हैं। यह आंकड़ा राज्य के कुल मतदाताओं का लगभग 6.62 प्रतिशत है, जो कि किसी भी राज्य में अब तक की सबसे बड़ी वोटर लिस्ट क्लीनिंग मानी जा रही है। इस लेख में हम जानेंगे कि ये नाम क्यों हटाए गए, किस आधार पर हटाए गए, किन इलाकों में सबसे ज़्यादा नाम हटे, और इसका बिहार की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा।

क्यों हटाए गए 52 लाख वोटरों के नाम?

चुनाव आयोग के अनुसार, बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया के तहत वोटर लिस्ट का गहराई से सत्यापन किया गया। इस प्रक्रिया में ये पाया गया कि बड़ी संख्या में ऐसे नाम वोटर लिस्ट में शामिल हैं जो या तो मृत हो चुके हैं, अपने क्षेत्र से पलायन कर चुके हैं, या जिनके नाम एक से अधिक बार लिस्ट में दर्ज हैं।

आंकड़े:

🔹 18 लाख नाम — मृत व्यक्तियों के
🔹 26 लाख नाम — ऐसे लोग जो अपने निर्वाचन क्षेत्र या राज्य से बाहर चले गए हैं
🔹 7 लाख नाम — डुप्लिकेट/डुअल वोटर कार्ड धारकों के

इस प्रकार कुल मिलाकर 52 लाख नामों को वोटर लिस्ट से हटाया गया।

पूर्वी बिहार में सबसे ज्यादा असर

इस प्रक्रिया के तहत सबसे ज्यादा नाम पूर्वी बिहार के जिलों से हटाए गए हैं, जैसे:

  • अररिया

  • पूर्णिया

  • कटिहार

  • किशनगंज

इन सभी जिलों की विशेषता यह है कि ये नेपाल और असम की सीमा से सटे हुए हैं और यहां मुस्लिम समुदाय की आबादी काफी अधिक है। इन इलाकों से 3 लाख से अधिक वोटर नाम हटाए गए हैं।

यह आंकड़ा खास इसलिए है क्योंकि विपक्षी दलों का आरोप है कि चुनाव आयोग ने सरकार के दबाव में आकर एक विशेष समुदाय को निशाना बनाते हुए वोटर लिस्ट से नाम हटाए हैं।

एक महीने की समयसीमा: 1 अगस्त से 1 सितंबर 2025

चुनाव आयोग ने इस क्लीनिंग प्रक्रिया के बाद एक महीने की समयसीमा दी है, जिसमें कोई भी व्यक्ति नाम हटाने, जोड़ने या सुधार के लिए आपत्ति दर्ज करा सकता है।
➡️ समयसीमा: 1 अगस्त से 1 सितंबर 2025

मतदाता अपने क्षेत्र के बीएलओ (Booth Level Officer) या आयोग की वेबसाइट के माध्यम से आवेदन कर सकते हैं।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं: आरोप और पलटवार

विपक्ष का हमला:

कांग्रेस नेता राहुल गांधी और राजद (RJD) ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि यह एक "सुनियोजित तरीके" से किया गया कदम है जिससे एक खास समुदाय के मतदाताओं को चुनाव से पहले बाहर किया जा सके।

सत्तापक्ष का जवाब:

केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने राहुल गांधी पर पलटवार करते हुए कहा कि SIR प्रक्रिया की मांग खुद राहुल गांधी ने ही की थी। उन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान मतदाता सूची में अनियमितता का मुद्दा उठाया था, जिसके बाद चुनाव आयोग ने यह विशेष रिवीजन शुरू किया।

क्या है SIR प्रक्रिया?

Special Intensive Revision (SIR) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत चुनाव आयोग वोटर लिस्ट की गहराई से जांच करता है। इस प्रक्रिया में:

  1. बीएलओ घर-घर जाकर जानकारी एकत्र करते हैं।

  2. मृतकों, स्थानांतरित नागरिकों और डुप्लिकेट नामों की पहचान की जाती है।

  3. मतदाता स्वयं भी ऑनलाइन या ऑफलाइन अपनी जानकारी अपडेट कर सकते हैं।

यह प्रक्रिया चुनावी पारदर्शिता को बनाए रखने के लिए बेहद ज़रूरी मानी जाती है, लेकिन जब इसमें लाखों नाम हट जाएं, तो राजनीति होना तय है।

क्या है इस प्रक्रिया का असर 2025 के चुनाव पर?

2025 में बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में वोटर लिस्ट से 52 लाख नाम हटाए जाने का सीधा असर चुनावी समीकरणों पर पड़ सकता है।

संभावित असर:

✅ शुद्ध मतदाता सूची तैयार होगी जिससे फर्जी वोटिंग की संभावना कम होगी।
❌ विपक्षी दलों का दावा है कि यह ध्रुवीकरण की रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
✅ मतदान प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी।
❌ यदि गलती से भी असली वोटर के नाम हटे हैं, तो इससे आक्रोश और भ्रम उत्पन्न हो सकता है।

सोशल मीडिया पर गर्म बहस

इस मुद्दे को लेकर सोशल मीडिया पर भी काफी बहस हो रही है। कुछ लोग इसे चुनाव आयोग की पारदर्शी पहल मान रहे हैं, वहीं कुछ इसे राजनीतिक षड्यंत्र बता रहे हैं। ट्विटर और फेसबुक पर #BiharVoterList और #VoterDeletion जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं।

निष्कर्ष: सवाल अब भी बाकी हैं

भले ही चुनाव आयोग ने तकनीकी प्रक्रिया के तहत यह काम किया हो, लेकिन जिस तरीके से यह हुआ और जिस क्षेत्र के मतदाता सबसे ज्यादा प्रभावित हुए, वह निश्चित रूप से कई सवाल खड़े करता है।

👉 क्या यह केवल एक प्रशासनिक कदम है?
👉 या फिर इसके पीछे कोई राजनीतिक गणित छुपा हुआ है?

सच्चाई जो भी हो, बिहार की जनता को इस प्रक्रिया को गंभीरता से समझना होगा और समय रहते अपने वोटर डेटा को जांचना और अपडेट करना होगा — क्योंकि एक वोट ही लोकतंत्र की असली ताकत है।