Israrel Iran Conflict इज़राइल-ईरान संघर्ष: कारण, इतिहास और भारत पर प्रभाव

इतिहास और कारण
इज़राइल और ईरान के बीच यह संघर्ष कोई नया विषय नहीं है। दरअसल, दोनों देशों के बीच पहले अच्छे राजनयिक संबंध थे। इज़रान मुस्लिम दुनिया का दूसरा ऐसा देश था जिसने इज़राइल को मान्यता दी थी, पहला था तुर्की। 1979 तक दोनों देशों के रिश्ते अपेक्षाकृत मधुर थे। लेकिन 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति ने पूरी तस्वीर बदल दी।
इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान में कट्टरपंथी इस्लामी शासन स्थापित हुआ, जिसने पश्चिमी देशों और विशेष रूप से इज़राइल के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया। ईरान ने इज़राइल को एक अवैध राज्य माना और उसकी सुरक्षा के लिए खतरा बना। इसके साथ ही ईरान ने विभिन्न आतंकवादी समूहों को समर्थन देना शुरू कर दिया, जो इज़राइल के लिए गंभीर सुरक्षा खतरा थे।
दूसरी ओर, इज़राइल भी अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कड़े कदम उठा रहा था। इसके चलते दोनों देशों के बीच दुश्मनी और बढ़ती गई और तनाव इतना गहरा गया कि इसे अब एक खुला संघर्ष माना जा रहा है।
नेतन्याहू का संदेश और ईरानी जनता को अपील
इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने हाल ही में ईरानी जनता को सीधे संबोधित किया है। उन्होंने ईरान में लोकतंत्र की स्थापना का समर्थन करते हुए कहा कि ईरानी जनता अपने देश के लिए बेहतर और आज़ाद भविष्य के हकदार हैं। नेतन्याहू का यह संदेश खास तौर पर ईरान के कट्टरपंथी शासन के खिलाफ एक आवाज़ माना जा रहा है।
यह कदम इज़राइल की रणनीति का हिस्सा है, जिसमें वे ईरान सरकार के बजाय उसकी जनता से सीधे संवाद स्थापित कर इसके अंदरूनी तनाव को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। इससे यह भी पता चलता है कि यह संघर्ष केवल सैन्य नहीं, बल्कि मानसिक और राजनैतिक मोर्चे पर भी है।
भारत पर प्रभाव
मध्य पूर्व का यह विवाद भारत के लिए भी चिंता का विषय है। भारत ने लंबे समय से ईरान के साथ अच्छे संबंध बनाए रखे हैं, खासकर ऊर्जा और व्यापार के क्षेत्र में। ईरान से भारत को प्राकृतिक गैस और तेल की आपूर्ति होती है, जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
यदि इज़राइल-ईरान संघर्ष और गहरा होता है, तो इससे तेल की कीमतों में अप्रत्याशित वृद्धि हो सकती है, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था पर दबाव पड़ेगा। इसके अलावा, भारत को अपनी विदेश नीति में संतुलन बनाए रखना भी चुनौतीपूर्ण होगा क्योंकि भारत इज़राइल और ईरान दोनों के साथ अच्छे संबंध रखना चाहता है।
इसके अलावा, भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान जैसे क्षेत्रीय खिलाड़ी इस संघर्ष का फायदा उठाने की कोशिश कर सकते हैं। भारत की सुरक्षा व्यवस्था को भी इस तनाव के चलते सजग रहना होगा, खासकर सीमा क्षेत्रों में।
इज़राइल-ईरान युद्ध केवल दो देशों के बीच का विवाद नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक भू-राजनैतिक संकट है जिसका असर पूरी दुनिया पर पड़ सकता है। इतिहास में ईरान और इज़राइल के बीच रिश्तों की जटिलता, 1979 की इस्लामिक क्रांति, नेतन्याहू का लोकतंत्र समर्थन, और भारत पर इसके प्रभाव जैसे कई पहलू इस संघर्ष को और अधिक जटिल बनाते हैं।
भारत के लिए जरूरी है कि वह इस परिस्थिति को समझते हुए अपनी विदेश नीति को संतुलित और सतर्क बनाए रखे। मध्य पूर्व की स्थिरता के लिए वैश्विक समुदाय को भी मिलकर प्रयास करने होंगे ताकि इस तनाव को बढ़ने से रोका जा सके।