Mumbai Train Blast Case 2006 -मुंबई 7/11 ट्रेन ब्लास्ट मामला: हाईकोर्ट ने सभी 12 आरोपियों को बरी किया

  जानिए क्यों पलटा 2006 के आतंकवादी हमले का फैसला?

 
Mumbai Train Blast Case 2006 accused acquited by Bombay High Court

 Aapki Khabar Rajniti Explainer Mumbai Train Blast Case 2006 


21 जुलाई 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2006 के मुंबई ट्रेन ब्लास्ट मामले में एक चौंकाने वाला फैसला सुनाया। अदालत ने 12 साल पुराने फैसले को पलटते हुए, सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया। यह वही मामला है जिसमें 11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में 7 सीरियल धमाके हुए थे, जिसमें 189 लोगों की मौत हुई थी और 800 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।

अब सवाल उठता है कि इतने बड़े आतंकी हमले के आरोपियों को आखिर क्यों और कैसे अदालत ने बरी कर दिया? आइए जानते हैं इस मामले की पूरी पृष्ठभूमि, जांच प्रक्रिया, अदालती सुनवाई और बरी किए जाने के कानूनी आधार।

7/11 धमाके: क्या हुआ था उस दिन?

11 जुलाई 2006 को शाम के समय मुंबई की भीड़भाड़ वाली लोकल ट्रेनों में महज 11 मिनट के अंदर 7 धमाके हुए। ये धमाके पश्चिम रेलवे लाइन पर चल रही लोकल ट्रेनों में हुए थे — माटुंगा, माहिम, बांद्रा, जोगेश्वरी, बोरीवली, मीरा रोड और कांदिवली स्टेशनों के बीच।

इन धमाकों में प्रेशर कुकर बमों का इस्तेमाल किया गया था। ट्रेनें, जो उस वक्त दफ्तर से लौट रहे हजारों यात्रियों से भरी थीं, देखते ही देखते तबाही में बदल गईं। इस हमले को भारत की आंतरिक सुरक्षा पर सबसे बड़े आतंकी हमलों में गिना जाता है।

जांच और गिरफ्तारियाँ

घटना के तुरंत बाद महाराष्ट्र एटीएस (Anti-Terrorism Squad) ने जांच शुरू की। एक साल के भीतर 13 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें से 12 को 2015 में टाडा अदालत ने दोषी ठहराया और फांसी व उम्रकैद की सजा सुनाई।

इन आरोपियों पर सिमी (Students Islamic Movement of India), लश्कर-ए-तैयबा और आईएसआई से जुड़े होने के आरोप लगाए गए। अभियोजन ने दावा किया कि हमले में पाकिस्तान से आतंकियों को ट्रेनिंग मिली और भारत में स्थानीय नेटवर्क के जरिए बम धमाके करवाए गए।

2015 का फैसला और दोष सिद्ध

2015 में विशेष मकोका अदालत ने 13 में से 12 आरोपियों को दोषी करार दिया:

  • 5 आरोपियों को फांसी की सजा

  • 7 आरोपियों को उम्रकैद

इस फैसले को परिवारों ने 'इंसाफ' माना, जबकि कुछ ने इसे ‘दबाव में आया फैसला’ कहा।

2025: हाईकोर्ट ने पलटा फैसला, सभी 12 आरोपी बरी

21 जुलाई 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट की खंडपीठ ने निचली अदालत के 2015 के फैसले को पलटते हुए सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने यह कहा कि "अभियोजन पक्ष आरोप सिद्ध करने में असफल रहा और सबूतों की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में है।"

बरी किए जाने के मुख्य कारण

1. जबरन स्वीकारोक्ति (Coerced Confessions)

हाईकोर्ट ने माना कि कुछ आरोपियों की कथित स्वीकारोक्तियाँ पुलिस हिरासत में ली गई थीं, जो कि कानूनन अस्वीकार्य हैं। इन बयानों में विरोधाभास था और इनमें से कई को आरोपियों ने अदालत में खारिज कर दिया था।

2. ठोस फॉरेंसिक सबूतों की कमी

बम विस्फोट जैसी घटना में यह अपेक्षित था कि फॉरेंसिक रिपोर्ट, बम सामग्री, डीएनए और फिंगरप्रिंट के सबूत पेश किए जाएं। लेकिन अभियोजन पक्ष इन सबूतों को ठोस तरीके से अदालत में प्रस्तुत नहीं कर सका।

3. गवाहों के बयान में विरोधाभास

अभियोजन पक्ष के कई चश्मदीद गवाहों के बयान या तो असंगत थे या समय के साथ बदलते रहे। कुछ गवाहों को धमकाने की भी शिकायतें आईं, जिससे उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठे।

4. कॉल रिकॉर्ड्स और लोकेशन का मेल नहीं

अभियोजन ने मोबाइल कॉल रिकॉर्ड्स के जरिए आरोपियों की लोकेशन साबित करने की कोशिश की, लेकिन हाईकोर्ट ने पाया कि तकनीकी विश्लेषण में कई खामियां थीं और ये रिकॉर्ड ‘संदेह से परे’ दोष साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं थे।

5. वैकल्पिक थ्योरी पर ध्यान नहीं

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि पुलिस ने सिर्फ एक थ्योरी पर काम किया, जबकि कुछ स्वतंत्र जांचों ने हमले के पीछे अलग आतंकी गुट या पाकिस्तानी एजेंसियों की भूमिका की संभावना जताई थी, जिसे नजरअंदाज कर दिया गया।

कानूनी और सामाजिक प्रभाव

यह फैसला भारत के न्यायिक इतिहास में एक बड़ा मोड़ माना जा रहा है। जहाँ एक ओर यह न्याय की शुद्धता की मिसाल पेश करता है, वहीं दूसरी ओर पीड़ितों के परिजनों के लिए यह फैसला सदमे जैसा है।

कानून के अनुसार, यदि अभियोजन पक्ष आरोपों को ‘संदेह से परे’ साबित नहीं कर पाता है, तो आरोपी को बरी करना न्यायपालिका का कर्तव्य होता है।

राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया

  • पीड़ित परिवारों का कहना है कि उन्हें अब भी इंसाफ नहीं मिला है।

  • मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने फैसले का स्वागत किया और कहा कि "कानून की जीत हुई है।"

  • वहीं राजनीतिक दलों में इस पर तीखी प्रतिक्रिया देखी गई। कुछ ने सरकार और जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए।

क्या अब असली दोषी पकड़े जाएंगे?

इस सवाल का जवाब समय देगा। लेकिन यह स्पष्ट है कि 19 साल बाद भी भारत की जांच एजेंसियाँ संदेह से परे दोष साबित नहीं कर सकीं। ऐसे में भविष्य में इस केस की दोबारा जांच, या नए पहलुओं की जांच की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

7/11 मुंबई ब्लास्ट एक भयावह घटना थी जिसने पूरे देश को झकझोर दिया। लेकिन अगर आरोपियों को साक्ष्यों के अभाव में बरी करना पड़ा, तो यह हमारी जांच प्रक्रिया और अभियोजन प्रणाली की गंभीर विफलता की ओर इशारा करता है।

यह फैसला हमें याद दिलाता है कि ‘इंसाफ’ का मतलब सिर्फ सजा नहीं, बल्कि निष्पक्ष प्रक्रिया और कानून के मुताबिक फैसला है।

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