भारत Rare Earth Elements में बनाएगा नया इतिहास | चीन की मोनोपॉली तोड़ने की तैयारी

 
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दुनिया आज जिस तेजी से टेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रिक वाहनों और रक्षा क्षेत्र में आगे बढ़ रही है, उसमें एक अहम भूमिका निभाते हैं — रेयर अर्थ एलिमेंट्स (Rare Earth Elements)। ये दुर्लभ धातुएं उन उपकरणों में इस्तेमाल होती हैं, जिनके बिना आधुनिक जीवन की कल्पना भी मुश्किल है। चाहे वो स्मार्टफोन हो, इलेक्ट्रिक कारें, पवन टर्बाइन, सोलर पैनल या फिर लड़ाकू विमान — इन सभी में Rare Earth Elements की जरूरत होती है।

क्या हैं Rare Earth Elements?

रेयर अर्थ एलिमेंट्स कुल 17 तत्व होते हैं जो पृथ्वी की परतों में थोड़ी मात्रा में पाए जाते हैं। इनका रासायनिक नाम तो शायद आम आदमी न जान पाए, लेकिन इनका उपयोग हमारे जीवन को सरल और उन्नत बनाने में अहम है। इनमें से कुछ प्रमुख तत्व हैं — नियोडियम (Neodymium), लैन्थनम (Lanthanum), सेरियम (Cerium), और डाइसप्रोसियम (Dysprosium)।

क्यों ज़रूरी हैं Rare Earth Elements?

  • इलेक्ट्रिक वाहनों के मोटर में

  • मोबाइल और लैपटॉप की स्क्रीन में

  • रडार और मिसाइल सिस्टम में

  • फाइबर ऑप्टिक्स और मेडिकल डिवाइसेज में

  • ग्रीन एनर्जी सिस्टम (सोलर, विंड) में

चीन की बादशाहत

दुनिया भर के Rare Earth Elements का लगभग 60% से ज़्यादा उत्पादन और 90% से अधिक प्रोसेसिंग चीन करता है। इसका मतलब है कि पूरी दुनिया चीन पर निर्भर है, चाहे वो अमेरिका हो या भारत। हाल ही में चीन ने कुछ अहम खनिजों के निर्यात पर रोक लगा दी, जिससे दुनिया भर की सप्लाई चेन को झटका लगा। इस कदम ने यह साफ कर दिया कि Rare Earth Elements सिर्फ आर्थिक नहीं बल्कि रणनीतिक संसाधन बन चुके हैं।

भारत का कदम

भारत में Rare Earth Elements के करीब 6.9 मिलियन टन भंडार हैं, लेकिन अब तक उनकी प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी हमारे पास नहीं थी। अब इस दिशा में बड़ा कदम उठाया जा रहा है। भारतीय कंपनी Attero ने घोषणा की है कि वह ₹100 करोड़ का निवेश कर 30,000 टन Rare Earth Elements की रीसाइक्लिंग करेगी।

इसके अलावा, Vedanta, Jindal और Sona Comstar जैसी बड़ी कंपनियां भी इस सेक्टर में उतरने की तैयारी कर रही हैं। ये कंपनियां भारत सरकार से टेंडर मांग रही हैं ताकि Rare Earth प्रोसेसिंग यूनिट्स की स्थापना की जा सके।

क्या है सरकार की योजना?

भारत सरकार अब इस सेक्टर में आत्मनिर्भर बनने के लिए नई नीतियों पर काम कर रही है। खनन से लेकर प्रोसेसिंग तक एक मजबूत सप्लाई चेन बनाने की तैयारी है। इसके लिए विदेशी तकनीक कंपनियों के साथ साझेदारी और घरेलू कंपनियों को सब्सिडी देने पर भी विचार किया जा रहा है।

भारत के लिए क्या है फायदा?

  1. आर्थिक फायदा: Rare Earth Elements का उत्पादन और निर्यात भारत को अरबों डॉलर की आय दे सकता है।

  2. रणनीतिक स्वतंत्रता: रक्षा उपकरणों और टेक्नोलॉजी के लिए चीन पर निर्भरता कम होगी।

  3. रोजगार के अवसर: इस क्षेत्र में निवेश से हजारों नई नौकरियां पैदा होंगी।

  4. ग्रीन एनर्जी मिशन को मजबूती: स्वच्छ ऊर्जा के लक्ष्य को पूरा करने में मदद मिलेगी।

भारत अब Rare Earth Elements में चीन की मोनोपॉली को चुनौती देने की राह पर है। Attero जैसे निजी निवेश से लेकर सरकारी समर्थन तक, भारत धीरे-धीरे इस रणनीतिक संसाधन में आत्मनिर्भर बनने की ओर बढ़ रहा है। आने वाले वर्षों में यदि भारत अपनी प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी को विकसित कर लेता है, तो यह न केवल चीन की निर्भरता को तोड़ेगा बल्कि भारत को वैश्विक Rare Earth बाजार में एक बड़ा खिलाड़ी बना सकता है।

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