सनातन संस्कृति को उपहार है - सुदर्शन सेतु :मृत्युंजय दीक्षित
उन सभी मंदिरों में गये जिनका रामायण काल से किसी न किसी प्रकार से संबंध रहा
अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा के पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 दिन तक कठोरता से यम नियम का पालन किया और उन सभी मंदिरों में गये जिनका रामायण काल से किसी न किसी प्रकार से संबंध रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी जिस भी मंदिर में जाते हैं उसके विस्तार तथा आसपास के क्षेत्रों के विकास का वृहद चित्र खींकर आते है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों का ही परिणाम है कि आज भारत प्रत्येक तीर्थ में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है।
प्रत्येक सनातनी हिंदू जलमग्न द्वारका के दर्शन कर स्वयं को धन्य करना चाहेगा
सनातन की प्राचीनता से वर्तमान को परिचित कराते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात यात्रा के दौरान यहाँ के पंचकुई समुद्र तट पर स्कूबा ड्राइविंग करके भगवान श्रीकृष्ण की जलमग्न प्राचीन द्वारका नगरी के दर्शन करते हुए जल के अंदर पूजा की और इतिहास में एक अमर क्षण जोड़ दिया। स्वाभाविक रूप से अब प्रत्येक सनातनी हिंदू जलमग्न द्वारका के दर्शन कर स्वयं को धन्य करना चाहेगा और जलमग्न द्वारका तीर्थ भी श्रद्धालुओं की यात्रा सूची में आ जाएगा। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने द्वारका शारदापीठ में शंकराचार्य स्वामी सदानंद जी महाराज का आसहीर्वाद लिया। प्रधानमंत्री ने बताया कि जलमग्न द्वारका के विषय में पुरातत्व वेत्ताओं द्वारा और पुराणों में बहुत कुछ लिखा गया है। हमारे शास्त्रों के अनुसार द्वारका सुंदर द्वारों और ऊंचे भवनों वाली ये पुरी पृथ्वी पर शिखर के सामान होगी, मान्यता है कि स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने ही द्वारका नगरी का निर्माण किया था। नौसेना के गोताखोरों की सहायता से प्रधानमंत्री ने प्रार्थना की, हाथ जोड़े और भगवान श्रीकृष्ण को मोरपंख अर्पित किया। बाहर आने पर प्रधानमंत्री ने कहा कि द्वारका जी में मैं पुरातन भव्यता और दिव्यता का अनुभव कर रहा था।
इस पुल का नामकरण ”सुदर्शन सेतु” किया गया
इस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ने द्वारका में देश के सबसे लंबे पुल का लोकार्पण किया जिससे इस क्षेत्र में विकास और पर्यटन के एक नये महायुग का प्रारम्भ होगा, इस पुल का नामकरण ”सुदर्शन सेतु” किया गया है। सुदर्शन सेतु की विशेषताएं - यह एक ऐतिहासिक सिग्नेचर ब्रिज है जिसकी प्रेरणा गीता है और स्रोत सूर्य की उर्जा। 7 अक्तूबर 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पुल की आधारशिला रखी थी । पूर्व में इस पुल का नाम सिग्नेचर ब्रिज था जिसे अब सुदर्शन सेतु कर दिया गया है। यह ओखा को समुद्र के बीच टापू जैसे रूप से उभरे बेट द्वारका से जोड़ता है। सुदर्शन सेतु की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां दोनो ओर भगवद्गीता के श्लोकों और श्रीकृष्णकी छवियों को उकेरा गया है। इसमें फुटपाथ के ऊपरी हिस्से पर सौर पैनल लगाये गये हैं जिससे एक मेगावाट सौर ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है। ओखा मैनलैंड को बेट द्वारका द्वीप से जोड़ने वाले इस सेतु से इस क्षेत्र में कनेक्टिविटी को एक नई दिशा मिलेगी। अभी तक तीर्थयात्रियों को बेट द्वारका जाने के लिए नाव पर निर्भर रहना होता था और मौसम खराब हो जाने पर प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। सुदर्शन सेतु का निर्माण हो जाने के बाद तीर्थयात्रियों की यह समस्या समाप्त हो जाएगी। सुदर्शन सेतु वस्तुतः सनातन संस्कृति को प्रधानमंत्री का उपहार है।
979 करोड़ रुपये की लागत से तैयार किया गया
प्रधानमंत्री के जलमग्न द्वारका के दर्शन करने और फिर जनसभा करने से यह स्पष्ट हो गया कि अभी इस क्षेत्र का और अधिक व्यापक स्तर पर विकास होने वाला है। यह सुदर्शन सेतु 2.32 किमी लंबा है तथा पुल पर 2.50 मीटर चौड़े फुटपाथ हैं। यह 27.20 मीटर चौड़ा पुल चार लेन का है। यह 979 करोड़ रुपये की लागत से तैयार किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी जहाँ भी जाते हैं वो स्थान तीर्थयात्रियों और पर्यटकों की यात्रा सूची में ऊपर आ जाता है केदारनाथ,लक्षद्वीप, सिक्किम, पार्वती कुंड, काशी, अयोध्या, इसके ज्वलंत प्रमाण हैं और अब जलमग्न द्वारका भी इस सूची में स्थान बनाने को व्यग्र है। जैसे ही प्रधानमंत्री ने जलमग्न द्वारका की अपनी यात्रा के चित्र व वीडियो इंटरनेट पर साझा किये वैसे ही द्वारका नगरी के विषय में घर घर चर्चा होने लगी।
प्रधानमंत्री अपने प्रत्येक कार्य से कई संकेत व संदेश देते हैं। विश्लेषकों का मानना है कि बेट द्वारका का सन्देश है कि मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि का भी जल्द ही उद्धार होने जा रहा है।
(अम्बरीष कुमार सक्सेना)