रुचिका शर्मा: एक इतिहासकार या एजेंडा चलाने वाली? शिवाजी महाराज पर दिए गए बयान से उठे सवाल

 
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हाल ही में एक टीवी डिबेट के दौरान इतिहासकार डॉ. रुचिका शर्मा ने छत्रपति शिवाजी महाराज को “लुटेरा” कह कर एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। यह कोई पहली बार नहीं है जब उन्होंने ऐसा कोई विवादित बयान दिया हो। इससे पहले भी वे ईरान में हिजाब विरोध प्रदर्शन पर मुस्लिम कट्टरपंथियों की भावनाएं न आहत करने की सलाह दे चुकी हैं और यह भी कह चुकी हैं कि वर्तमान अयोध्या वह स्थान नहीं है जहां भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था।

अब सवाल यह उठता है कि एक शिक्षित इतिहासकार द्वारा बार-बार हिन्दू प्रतीकों और धार्मिक भावनाओं पर सवाल उठाना क्या महज़ संयोग है या फिर एक सोची-समझी वैचारिक रणनीति?

रुचिका शर्मा कौन हैं?

डॉ. रुचिका शर्मा ने जेएनयू (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय) से इतिहास में शोध किया है। वे खुद को इतिहासकार, शिक्षिका और यूट्यूबर बताती हैं। उनका यूट्यूब चैनल "Eyeshadow & Itihaas" इतिहास को समकालीन नजरिए से देखने और समझाने का दावा करता है। उन्होंने महिला अधिकारों, धार्मिक प्रतीकों और ऐतिहासिक घटनाओं पर अपने विचार समय-समय पर विभिन्न मंचों पर साझा किए हैं।

उनकी उम्र लगभग 33 वर्ष है और सोशल मीडिया पर उनकी उपस्थिति भी खास है। परंतु उनकी पहचान विवादों से अधिक जुड़ी रही है, खासतौर पर तब जब बात हिंदू इतिहास और परंपराओं से जुड़ी हो।

शिवाजी महाराज पर विवादित बयान

हाल ही में एक टीवी डिबेट के दौरान उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज को "लुटेरा" बताया। इस बयान से पूरे देश में आक्रोश फैल गया। शिवाजी महाराज न केवल मराठा साम्राज्य के संस्थापक थे, बल्कि वे हिन्दू स्वराज्य के प्रतीक भी हैं। उन्होंने न केवल विदेशी आक्रांताओं से लोहा लिया, बल्कि एक धर्मनिरपेक्ष शासन व्यवस्था भी स्थापित की थी जहाँ हर धर्म को सम्मान मिला।

डॉ. शर्मा के अनुसार, शिवाजी ने कई जगहों पर हमला किया और संपत्ति लूटी, इसलिए वे "लुटेरे" की श्रेणी में आते हैं। लेकिन क्या यह विश्लेषण इतिहास की पूरी तस्वीर को दर्शाता है?

क्या शिवाजी ने कभी हिन्दू राजाओं से युद्ध किया?

शिवाजी महाराज के युद्धों का इतिहास बताता है कि उन्होंने अधिकतर युद्ध मुगलों, आदिलशाही और निजामशाही जैसे इस्लामी साम्राज्यों के खिलाफ लड़े। उन्होंने न केवल मराठाओं की अस्मिता बचाई बल्कि एक स्वतंत्र हिन्दू राज्य की नींव भी रखी।

ऐसे में यह सवाल उठता है कि एक प्रतिष्ठित इतिहासकार द्वारा ऐसा बयान देना क्या इतिहास को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करने का प्रयास है? क्या यह किसी वैचारिक एजेंडे का हिस्सा है?

बीते विवाद: जब रुचिका शर्मा ने हिजाब को समर्थन दिया

यह पहला मौका नहीं है जब डॉ. शर्मा ने ऐसा कोई विवादित बयान दिया हो। इससे पहले जब ईरान में हिजाब के खिलाफ महिलाओं का विरोध प्रदर्शन चल रहा था, तब रुचिका शर्मा ने मुस्लिम कट्टरपंथियों की भावनाएं आहत न हो इसलिए हिजाब के खिलाफ बोलने से बचने की सलाह दी थी।

यह एक दोहरा मापदंड दर्शाता है। जहां एक ओर वे धार्मिक भावनाओं का सम्मान करने की बात करती हैं, वहीं दूसरी ओर हिन्दू प्रतीकों और महापुरुषों पर बार-बार तीखा हमला करती हैं।

राम जन्मभूमि पर बयान

उन्होंने एक अन्य मौके पर यह दावा किया था कि वर्तमान अयोध्या वह स्थान नहीं है जहां श्रीराम का जन्म हुआ था। यह बयान उस समय आया जब देश में राम मंदिर निर्माण को लेकर जनता में उत्साह था।

ऐसे में एक बार फिर उनके बयान को हिंदू भावनाओं को चोट पहुंचाने वाला माना गया।

इतिहासकार बनाम एजेंडा वाहक?

इतिहासकार का कार्य निष्पक्ष दृष्टिकोण से ऐतिहासिक तथ्यों का अध्ययन और विश्लेषण करना होता है। परंतु जब इतिहास को चुनिंदा तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत किया जाता है और केवल एक खास समुदाय या विचारधारा को निशाना बनाया जाता है, तो वह इतिहास नहीं, एजेंडा बन जाता है।

रुचिका शर्मा पर यह आरोप बार-बार लगता रहा है कि वे इतिहास के नाम पर केवल उन कथाओं को बढ़ावा देती हैं जो एक विशेष वैचारिक लाइन से मेल खाती हैं।

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं

उनके शिवाजी पर दिए बयान के बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने तीखी प्रतिक्रिया दी। ट्विटर पर #RuchikaSharmaMaafiMaango ट्रेंड करने लगा। कई लोगों ने उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की, जबकि कुछ इतिहासकारों और शिक्षाविदों ने इस बयान को इतिहास की गलत व्याख्या बताया।

क्या होनी चाहिए कार्रवाई?

किसी भी लोकतांत्रिक देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होती है, परंतु जब यह स्वतंत्रता किसी समुदाय की आस्था या ऐतिहासिक गौरव को चोट पहुंचाने लगे, तो यह गंभीर चिंता का विषय बन जाता है।

सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन को यह तय करना चाहिए कि इतिहास जैसे विषय में पढ़ा रहे शिक्षकों पर एक विशेष वैचारिक पक्षधरता का क्या प्रभाव पड़ता है और क्या उसे बिना जांच-परख के सार्वजनिक मंचों पर बोलने की छूट दी जा सकती है?

डॉ. रुचिका शर्मा का शिवाजी महाराज पर दिया गया बयान सिर्फ एक इतिहासकार की व्यक्तिगत राय नहीं, बल्कि एक बड़ा वैचारिक विमर्श बन चुका है। यह आवश्यक है कि हम ऐसे बयानों का विश्लेषण करें, ऐतिहासिक तथ्यों की पुष्टि करें और यह तय करें कि क्या हमारे इतिहास को विकृत करने की कोशिश हो रही है।

छत्रपति शिवाजी महाराज भारत के गौरवशाली इतिहास का प्रतीक हैं। उन्हें “लुटेरा” कहना न केवल ऐतिहासिक भूल है बल्कि करोड़ों भारतीयों की भावनाओं का अपमान भी है।

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