अचानक पाकिस्तान भारत से क्यों मांगने लगा समझौते की भीख

भारत से युद्ध की धमकी देने वाला पाकिस्तान अब अचानक समझौते की बात क्यों कर रहा है? जानिए इसके पीछे की असली वजह
ईरान से आई शहबाज़ शरीफ की चौंकाने वाली पेशकश
वर्षों तक भारत को युद्ध की धमकियाँ देने वाला पाकिस्तान अब अचानक भारत के साथ कश्मीर, जल समझौता और व्यापार जैसे मुद्दों पर द्विपक्षीय बातचीत की पेशकश कर रहा है। हाल ही में ईरान की यात्रा पर गए प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह बयान देकर सबको चौंका दिया है।
अचानक यह बदलाव क्यों?
इस बदलाव के पीछे कई रणनीतिक और अंतरराष्ट्रीय कारण हैं, जो पाकिस्तान को बैकफुट पर ला चुके हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है भारत का ‘ऑपरेशन सिंदूर’, जो पहलगाम आतंकी हमले के बाद शुरू किया गया। इस ऑपरेशन के तहत भारत ने पाकिस्तान अधिकृत क्षेत्र में स्थित आतंकी ठिकानों और उन्हें सहयोग देने वाली पाकिस्तानी सेना पर सीधा प्रहार किया।
भारत की कूटनीतिक चाल – 32 देशों में डेलीगेशन
सिर्फ सैन्य कार्रवाई ही नहीं, भारत ने इस ऑपरेशन के बाद 32 देशों में अपने प्रतिनिधिमंडल भेजे जो लगातार पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उजागर कर रहे हैं। इस कूटनीतिक आक्रामकता ने पाकिस्तान को दुनिया के सामने कटघरे में ला खड़ा किया है।
पाकिस्तान की काउंटर चाल – चार देशों का दौरा
जवाब में अब शहबाज़ शरीफ खुद damage control में लग गए हैं। उन्होंने टर्की, ईरान, ताजिकिस्तान और अज़रबैजान का दौरा शुरू किया है। दिलचस्प बात यह है कि इन चार देशों में से तीन वही देश हैं जिन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के समय पाकिस्तान का खुला समर्थन किया था।
लेकिन इस दौरे में शामिल ईरान, भारत का एक मजबूत रणनीतिक साझेदार रहा है। ईरान में दिए गए शहबाज़ शरीफ के बयानों को एक तरह से पाकिस्तान की नीति में बदलाव के संकेत के रूप में देखा जा रहा है।
क्या पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ रहा है?
संयुक्त राष्ट्र, FATF और अन्य वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान की आलोचना और अलग-थलग पड़ने का डर भी इस बदले हुए रुख का एक कारण हो सकता है। भारत की सक्रिय कूटनीति और आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस नीति ने पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय दबाव में ला दिया है, जहाँ अब वह खुद को एक "शांति चाहने वाला" देश दिखाने की कोशिश कर रहा है।
भारत और पाकिस्तान के साथ ईरान की भूमिका
ईरान, मध्य एशिया और पश्चिम एशिया में एक अहम कूटनीतिक खिलाड़ी है। भारत के साथ ईरान के ऐतिहासिक, रणनीतिक और आर्थिक संबंध लंबे समय से चले आ रहे हैं।
भारत-ईरान संबंध
भारत और ईरान के रिश्ते मुख्यतः चाबहार बंदरगाह, ऊर्जा व्यापार, और सांस्कृतिक साझेदारी पर आधारित हैं। चाबहार बंदरगाह परियोजना भारत के लिए अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच का एक वैकल्पिक मार्ग है, जो पाकिस्तान को बाइपास करता है। ईरान ने इस रणनीतिक परियोजना में भारत को सहयोग दिया है, जो दोनों देशों की आपसी समझदारी को दर्शाता है।
भारत, ईरान से कच्चा तेल भी आयात करता रहा है, और कई बार अमेरिका के प्रतिबंधों के बावजूद दोनों देशों ने अपने रिश्ते मजबूत बनाए रखे हैं।
पाकिस्तान-ईरान संबंध
पाकिस्तान और ईरान के रिश्तों में हमेशा तनाव और असहजता बनी रही है। सीमा पर आतंकी गतिविधियाँ, बलूचिस्तान विद्रोह, और ईरान की शिया आबादी बनाम पाकिस्तान की सुन्नी कट्टर विचारधारा – ये सभी मुद्दे दोनों देशों के रिश्तों को जटिल बनाते हैं।
हाल ही में ईरान ने पाकिस्तानी सीमा के पास आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया था, जिससे दोनों देशों के बीच तल्खी और बढ़ गई थी। ऐसे में शहबाज़ शरीफ का ईरान दौरा केवल एक राजनयिक मजबूरी लगता है, न कि सच्चे रणनीतिक रिश्तों की मिसाल।
पाकिस्तान की चालाकी या सच्चा बदलाव?
शहबाज़ शरीफ का भारत से वार्ता का प्रस्ताव ऐसे समय में आया है जब पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति डगमगा रही है, वैश्विक स्तर पर अलग-थलग पड़ रहा है और भारत एक मजबूत सैन्य और कूटनीतिक प्रतिक्रिया दे चुका है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या पाकिस्तान वास्तव में अपने पुराने रुख में बदलाव लाकर शांति और सहयोग का रास्ता अपनाएगा, या यह सिर्फ एक कूटनीतिक ड्रामा है, जिससे दुनिया की आंखों में धूल झोंकी जा सके।
शहबाज़ शरीफ का बयान सिर्फ कूटनीतिक औपचारिकता नहीं, बल्कि भारत की प्रभावी रणनीति का परिणाम है। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या पाकिस्तान अपने रुख में ईमानदारी से बदलाव लाएगा या यह सिर्फ एक डिप्लोमैटिक ड्रामा है।