वट सावित्री व्रत पूजा कब है 2022 ? विपरीत परिस्थितियों में धैर्य बनाये रखना सिखाती है वट पूजा 

Vat savitri vrat
 वट सावित्री व्रत पर्व दिनांक 29 मई 2022 दिन रविवार को वट सावित्री का उपवास रखा जाएगा। वट सावित्री के उपवास को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है अतः भ्रमित ना हो स्पष्ट हम आपको बता रहे हैं वट सावित्री का उपवास चतुर्दशी विध्दा अमावस्या में किया जाता है। चतुर्दशी विध्दा में चतुर्दशी की व्याप्ति सूर्योदय से कम से कम तीन मुहूर्त और अमावस्या की व्याप्ति सूर्यास्त से पूर्व कम से कम तीन मुहूर्त होना आवश्यक है इस मंथन के फलस्वरूप वट सावित्री का उपवास 29 मई 2022 रविवार को किया जाना शास्त्र सम्मत है।

वट सावित्री व्रत में किस भगवान की पूजा की जाती है ?

वट सावित्री का उपवास जेष्ठ मास की अमावस्या तिथि को किया जाता है। वट सावित्री पर विवाहित स्त्रियां वट वृक्ष की पूजा करती है। धार्मिक मान्यता अनुसार वटवृक्ष की छांव में देवी सावित्री ने अपने पति की पुनः जीवित किया था इसी दिन से वट वृक्ष की पूजा का विधान है। वट वृक्ष को भगवान शिव का प्रतीक माना गया है। बरगद के वृक्ष में तने में भगवान विष्णु, जड़ में ब्रह्मा और शाखाओं में भगवान शिव का वास है इस वृक्ष में कई सारी शाखाएं नीचे की ओर रहती है इन्हें देवी सावित्री का रूप माना जाता है. इसलिए धार्मिक मान्यता अनुसार इस वृक्ष की पूजा करने से भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है संतति प्राप्ति हेतु वट वृक्ष की पूजा करना लाभकारी माना गया है।

वट सावित्री पूजा क्यों कि जाती है ?

 इस दिन अपने पति की दीर्घायु की कामना एवं सुखद वैवाहिक जीवन की कामना हेतु सभी विवाहित स्त्रियां वट सावित्री का उपवास रखती रखती हैं।

पूजा मुहूर्त

वट सावित्री पूजा 29 मई 2022 रविवार प्रातः 10:34 मिनट से दोपहर 12:46अमृत, अभिजीत मुहूर्त में शुभ।

वट सावित्री पूजा विधि

प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में जाग कर संपूर्ण घर एवं पूजा स्थल को स्वच्छ करें। स्नानादि के बाद उपवास का संकल्प लें। सोलह श्रृंगार करें। सूर्योदय सूर्य देव को जल अर्पित करें। पूजा स्थल पर अखंड ज्योत प्रज्वलित करें। बरगद के पेड़ पर सावित्री-सत्यवान और यमराज की मूर्ति रखें। बरगद के पेड़ में जल डालकर उसमें पुष्प, अक्षत, रोली,कुमकुम,लाल फूल, फल और पंच मेवा,पंच मिठाई, पान सुपारी चढ़ाएं। माता सावित्री को सोलह श्रृंगार अर्पित करें, घी के दीपक से आरती करें। बरगद के वृक्ष में जल चढ़ाएं। वृक्ष में रक्षा सूत्र बांधकर आशीर्वाद मांगें। वृक्ष की सात बार परिक्रमा करें। इसके बाद हाथ में काले चने लेकर इस व्रत की कथा सुनें। कथा सुनने के उपरांत आचार्य/पुरोहित जी को अन्न, वस्त्र व माता सावित्री को अर्पित किया हुआ श्रंगार व भेंट इत्यादि दान करें।

वट सावित्री व्रत कथा
 

अश्वपति भद्र देश के राजा थे। उनकी कोई संतान नहीं थी संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने 18 वर्ष तक कठोर तपस्या की, जिसके उपरांत सावित्री देवी ने कन्या प्राप्ति का वरदान दिया। इस वजह से जन्म लेने के बाद कन्या का नाम सावित्री रखा गया। कन्या बड़ी होकर बहुत ही रूपवान हुई। योग्य वर न मिलने की वजह से राजा दुखी रहते थे। राजा ने कन्या को खुद वर खोजने के लिए भेजा। जंगल में उसकी मुलाकात सत्यवान से हुई। द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पतिरूप में स्वीकार कर लिया। इस घटना की जानकारी के बाद ऋषि नारद जी ने अश्वपति से सत्यवान् की अल्पआयु के बारे में बताया। माता-पिता ने बहुत समझाया, परन्तु सावित्री अपने धर्म से नहीं डिगी। सावित्री के दृढ़ संकल्प के आगे राजा को झुकना पड़ा।
सावित्री और सत्यवान का विवाह हो गया। सत्यवान बड़े गुणवान, धर्मात्मा और बलवान थे। सावित्री राजमहल छोड़कर जंगल की कुटिया में आ गई। उन्होंने वस्त्राभूषणों का त्यागकर अपने अन्धे सास-ससुर की सेवा अंतर्मन से प्रारम्भ कर दी । सत्यवान् की मृत्यु का दिन निकट आ गया। नारद ने सावित्री को पहले ही सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में बता दिया था। समय नजदीक आने से सावित्री अधीर होने लगीं। उन्होंने तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया। नारद मुनि के कहने पर पित्रों का पूजन किया।

प्रत्येक दिन की तरह सत्यवान भोजन बनाने के लिए जंगल में लकडी काटने जाने लगे, तो सावित्री उनके साथ गईं। वह सत्यवान के लिए कष्टकारी दिन था। सत्यवान लकड़ी काटने पेड़ पर चढ़े, लेकिन सिर चकराने की वजह से नीचे उतर आये। सावित्री पति का सिर अपनी गोद में रखकर उन्हें सहलाने लगीं। तभी यमराज आते दिखे जो सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे। सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे जाने लगीं। उन्होंने बहुत मना किया परंतु सावित्री ने कहा, जहां मेरे पतिदेव जाते हैं, वहां मुझे जाना ही चाहिये। बार-बार मना करने के बाद भी सावित्री पीछे-पीछे चलती रहीं। सावित्री की निष्ठा और पतिपरायणता को देखकर यम ने एक-एक करके वरदान में सावित्री के अन्धे सास-ससुर को आंखें दीं, उनका खोया हुआ राज्य दिया और सावित्री को लौटने के लिए कहा। वह लौटती कैसे? सावित्री के प्राण तो यमराज लिये जा रहे थे।
यमराज ने फिर कहा कि सत्यवान् को छोडकर चाहे जो मांगना चाहे मांग सकती हो, इस पर सावित्री ने 100 संतानों और सौभाग्यवती का वरदान मांगा। यम ने बिना विचारे प्रसन्न होकर तथास्तु बोल दिया। वचनबद्ध यमराज आगे बढ़ने लगे। सावित्री ने कहा कि प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है। यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े। सावित्री उसी वट वृक्ष के पास आ गईं, जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था।
सत्यवान जीवित हो गए, माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई और उनका राज्य भी वापस मिल गया। इस प्रकार सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे। 
माता सावित्री की कहानी हमें दृढ़ संकल्प और मजबूत इच्छाशक्ति और ईश्वर पर अटूट आस्था बनाए रखना व विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य न खोने की प्रेरणा देती है।

वट सावित्री व्रत में क्या खाना चाहिए ?

वट सावित्री व्रत में आलू चना और महिलाएं पूरी बनाती है मालपुआ जो कि मीठा होता है वह भी बनाया जाता है इसी की पूजा होती है और पूजा होने के बाद में महिलाएं यही खाती हैं और कई जगहों का रिवाज यह है कि  महिलाएं बरगद का जो फल होता है तो खाकर व्रत तोड़ती हैं।
डॉ मंजू जोशी ज्योतिषाचार्य
8395806256

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