चतुर सारथी : कृष्ण की कुशलता और कर्ण का सर्पबाण

महाभारत के भयंकर युद्ध में, अर्जुन और कर्ण आमने-सामने थे, दोनों एक-दूसरे को परास्त करने के लिए कृतसंकल्प थे। कौरवों की प्रेरणा से कर्ण ने अपनी पूरी शक्ति झोंककर बाणों की वर्षा शुरू कर दी। यह देखकर अर्जुन का क्रोध भड़क उठा। उन्होंने तेज़ी से चमकते हुए बाणों की बौछार से कर्ण के मर्मस्थानों को भेद दिया। इस प्रहार से कर्ण को अत्यंत पीड़ा हुई और वह विचलित हो उठा, परंतु उसने धैर्य बनाए रखा और रणभूमि में डटा रहा।
अर्जुन की वीरता यहीं नहीं रुकी। उन्होंने दुर्योधन के दो हज़ार वीर कौरव सैनिकों के उस दल को भी रथ, घोड़े और सारथी समेत काल के गाल में पहुँचा दिया, जिन पर दुर्योधन को बहुत गर्व था। बचे हुए कौरव सैनिक भयभीत होकर इतनी दूर जा खड़े हुए जहाँ तक अर्जुन के बाण नहीं पहुँच सकते थे। कर्ण अब अकेला रह गया। उसने परशुराम जी से प्राप्त आथर्वण अस्त्र का प्रयोग करके अर्जुन के अस्त्रों के प्रभाव को शांत कर दिया। दोनों महारथियों के बीच युद्ध जारी रहा। वीरोंचित पराक्रम, अस्त्र-संचालन, मायाबल और पुरुषार्थ में कभी सूतपुत्र कर्ण भारी पड़ता तो कभी अर्जुन। दर्शक अपने-अपने तरीके से दोनों की वीरता की प्रशंसा कर रहे थे।
कर्ण का घातक सर्पबाण और सारथी शल्य की चेतावनी
जब कर्ण किसी भी तरह अर्जुन पर निर्णायक बढ़त नहीं बना सका, तो उसे अपना भयंकर सर्पमुख बाण याद आया। यह बाण आग में तपाया हुआ होने के कारण सदैव तेजस्वी रहता था। कर्ण ने इसे विशेष रूप से अर्जुन का वध करने के लिए बड़े जतन से सुरक्षित रखा था। वह इसकी नित्य पूजा करता था और इसे सोने के तरकश में चंदन के चूर्ण के बीच रखता था। यह सोचकर कि अर्जुन को हराना इसके बिना संभव नहीं है, उसने पूरे उत्साह के साथ उस बाण को धनुष पर चढ़ाया और अर्जुन की ओर निशाना साधा।
जब कर्ण के सारथी शल्य ने उस घातक बाण को धनुष पर चढ़ा देखा, तो उन्होंने कर्ण को चेतावनी दी, "कर्ण! यह बाण अर्जुन के गले पर नहीं लगेगा। सोच-विचारकर निशाना फिर से ठीक करो, ताकि यह उसका मस्तक काट सके। यह सुनकर कर्ण की आँखें क्रोध से लाल हो गईं। उसने शल्य से कहा, "मद्रराज! कर्ण दो बार निशाना नहीं साधता। मेरे जैसे वीर छलपूर्वक युद्ध नहीं करते।" यह कहकर, कर्ण ने वर्षों से पूजे गए उस सर्पमुख बाण को अर्जुन की ओर छोड़ दिया और अहंकारपूर्वक ऊँचे स्वर में कहा, "अर्जुन! अब तू मारा गया।"
श्रीकृष्ण का अद्भुत कौशल
कर्ण के धनुष से निकला वह बाण जैसे ही आकाश में पहुँचा, वह प्रज्वलित हो उठा। सैकड़ों भयंकर उल्काएँ गिरने लगीं, और इंद्र सहित सभी लोकपाल हाहाकार कर उठे। परंतु, जिसका सारथी चतुर भगवान् श्रीकृष्ण हों, उसे भला कौन मार सकता था? युद्धक्षेत्र में एक कौशलपूर्ण लीला करते हुए, श्रीकृष्ण ने तुरंत ही अपना पैर दबाकर अर्जुन के रथ को झुका दिया, जिससे रथ के पहियों का कुछ हिस्सा पृथ्वी में धँस गया और घोड़े भी नीचे झुक गए। भगवान् की यह अद्भुत युक्ति देखकर आकाश में उपस्थित अप्सराएँ, देवता और गंधर्व फूलों की वर्षा करने लगे।
रथ के नीचे दब जाने के कारण, कर्ण का वह घातक बाण अर्जुन के गले में न लगकर, सीधे उनके मुकुट पर जा लगा। यह वही बहुमूल्य मुकुट था, जिसे ब्रह्मा जी ने तपस्या से इंद्र के लिए तैयार किया था और इंद्र ने अर्जुन को दिया था। वह मुकुट जीर्ण-शीर्ण होकर जलता हुआ धरती पर गिरा। इस तरह, चतुर सारथी श्रीकृष्ण की त्वरित बुद्धिमत्ता के कारण, अर्जुन का मुकुट तो नष्ट हो गया और वह साफाधारी हो गए, पर सर्पमुख बाण विफल हो गया और अर्जुन सुरक्षित रहे।
