Ganga Saptami 2024: कब है गंगा सप्तमी? जानें रवि योग मुहूर्त, पूजा विधि और कथा
Ganga Saptami 2024 Kab Hai: सनातन धर्म में हर दिन कोई न कोई पर्व या त्योहार मनाया जाता है. इन्हीं में से एक गंगा सप्तमी का पर्व भी है. गंगा सप्तमी के पर्व की तारीख नजदीक ही है. पंचांग के अनुसार, प्रतिवर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी की तिथि को गंगा सप्तमी का पर्व आता है. इस वर्ष यह 14 मई को पड़ रहा है. पुराणों में कहा गया है कि मां गंगा की धरती पर उत्पत्ति वैशाख मास की सप्तमी दिन हुई थी. इसीलिए इस तिथि को गंगा सप्तमी कहा जाता है. बता दें कि इस वर्ष गंगा सप्तमी के दिन पुष्य नक्षत्र, वृद्धि योग और रवि योग में गंगा मैया की पूजा की जाएगी।
गंगा सप्तमी की तारीख और शुभ मुहूर्त
Ganga Saptami 2024 Date And Muhurt: पंचांग के अनुसार, इस बार गंगा सप्तमी का पर्व मंगलवार 14 मई को है. इसका शुभ मुहूर्त 14 मई की दोपहर 2:50 बजे से शुरू होगा जो कि अगले दिन बुधवार 15 मई की सुबह 4:19 बजे तक रहेगा। लेकिन गंगा पूजा का मुहूर्त मात्र तीन घंटे का है. जो कि सुबह 10:56 बजे शुरू होकर दोपहर 1:39 पर समाप्त हो जाएगा।
पुष्य नक्षत्र, रवि योग में होगी मां गंगा की पूजा
Ganga Pooja Time And Date: गंगा सप्तमी के दिन दो शुभ योग रवि और पुष्य नक्षत्र बन रहे हैं. 14 मई को रवि योग सुबह 5:31 बजे से दोपहर 1:5 तक है, वहीं पुष्य नक्षत्र अगले दिन यानी कि 15 मई को प्रातः काल से शुरू होकर दोपहर दोपहर 1:5 मिनट तक रहेगा। गंगा सप्तमी पर 1 नक्षत्र और 1 योग बन रहा है. गंगा पूजा के समय रवि योग आपके सभी दोषों को दूर कर सकता है और पुष्य नक्षत्र आपको सफलता की ओर ले जाएगा।
गंगा सप्तमी का महत्व
Ganga Saptami Ka Mahtwa: शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को ही गंगा मैया स्वर्ग से भगवान भोलेनाथ की जटाओं में समाहित हुईं थी. इस दिन को मां गंगा के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है. जिस दिन गंगा की उत्पत्ति हुई वह दिन गंगा सप्तमी या वैशाख सप्तमी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन गंगा स्नान करना और मां गंगा की पूजा करने से सभी पाप, कष्ट दूर हो जाते हैं. यह भी कहा जाता है कि मांगलिक दोष से ग्रस्त जातको के लिए यह महत्वपूर्ण तिथि है. यदि जातक गंगा स्नान कर मां गंगा की पूजा करते हैं, तो उन्हें इस दोष से मुक्ति मिलती है.
गंगा उत्पत्ति की कथाएं
Ganga Katha: गंगा उत्पत्ति को लेकर कई कथाएं हैं. एक कथा के अनुसार वामन रूप में राक्षस बलि से संसार को मुक्त कराने के बाद ब्रह्माजी ने भगवान विष्णु के चरण धोए और इस जल को अपने कमंडल में भर लिया। फिर इसी कमंडल से गंगा का जन्म हुआ. दूसरी कथा में कहा जाता है कि जब भगवान शिव ने नारद मुनि, ब्रह्माजी और विष्णु भगवान के समक्ष गाना गाया तो इस संगीत के प्रभाव से भगवान विष्णु का पसीना बहकर जिसे ब्रह्माजी ने अपने कमंडल में भर लिया और इस कमंडल के जल से गंगा का जन्म हुआ. पौरणिक कथाओं के अनुसार महर्षि जहुं जब तपस्या कर रहे थे, तब गंगा नदी के पानी की आवाज से बार-बार उनका ध्यान भटक रहा था. इसलिए उन्होंने गुस्से में आकर अपने तप के बल से पूरा गंगाजल पी लिया। हालांकि बाद में अपने दाएं कान से गंगा को पृथ्वी पर छोड़ दिया था. तभी से गंगा का नामा जान्हवी हुआ.