गोवर्धन परिक्रमा: साक्षात श्रीकृष्ण का अनुभव

Govardhan Parikrama: An Experience of Lord Krishna Himself
 
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(डॉ. दौलतराज थानवी | विभूति फीचर्स – पुनर्लेखित और वेबसाइट के लिए अनुकूलित)
भगवान श्रीकृष्ण की लीला-स्थली ब्रजभूमि को आज भी उसी श्रद्धा और भक्ति से देखा जाता है जैसे उनके युग में। इस पावन भूमि की रज को श्रद्धालु अपने मस्तक पर लगाकर स्वयं को धन्य मानते हैं। यह भूमि आत्मा को शांति और चेतना को परम आनंद प्रदान करती है।

ब्रजभूमि: देवताओं का धाम

कहा जाता है कि श्रीकृष्ण स्वयं इस भूमि को गोलोक से लाए थे। उनके आगमन से ब्रज की पावनता और महिमा असाधारण हो गई। गोपियों के गीतों में, वेदों में और पुराणों में इस भूमि को प्रलय और सृष्टि दोनों से परे बताया गया है। यह वह भूमि है जहां उद्धवजी जैसे ज्ञानी भी धूल में लोटकर भक्ति का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। सूरदास जैसे संतों ने ब्रजवासियों की महिमा को सर्वोच्च बताया है, क्योंकि उनके जूठे अन्न को भी देवता प्रसाद मानते हैं।
मथुरा मंडल और गोवर्धन की महिमा
वाराह पुराण के अनुसार भगवान ने मथुरा मंडल को 20 योजन (लगभग 90 कोस) तक विस्तारित बताया है, जिसमें 12 महावन, 24 उपवन, 7 नदियाँ, 5 सरोवर और 5 पर्वत हैं। इनमें गोवर्धन पर्वत को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है।
जब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पूजा का प्रस्ताव रखा, तो समस्त ब्रजवासी, देवता, ऋषि-मुनि, नागकन्याएं और अप्सराएं इस महायज्ञ में सम्मिलित हुए। गिरिराज की पूजा स्वयं भगवान कृष्ण ने की, और परिक्रमा की। इसके बाद उन्होंने अपना विराट रूप प्रकट करते हुए कहा, “मैं ही गोवर्धन हूं,” और सारा अन्नकूट स्वयं स्वीकार कर लिया।

गोवर्धन लीला: श्रीकृष्ण की करुणा का प्रतीक

इन्द्र के क्रोधित होने पर जब उसने भारी वर्षा कर दी, तो भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी एक अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और सात दिनों तक ब्रजवासियों को आश्रय दिया। अंततः इन्द्र ने क्षमा मांगी और गिरिराज को उनका दिव्य गौरव प्राप्त हुआ।

गोवर्धन: श्रीकृष्ण का सजीव स्वरूप

गोवर्धन पर्वत को भगवान का ही साक्षात् स्वरूप माना गया है। इसके विभिन्न स्थानों और तीर्थों को भगवान के शरीर के अंगों की संज्ञा दी गई है:

मानसी गंगा: भगवान के नेत्र

चन्द्र सरोवर: नासिका
गोविंद कुण्ड: अधर (होंठ)
राधाकुण्ड: जिव्हा
ललिता सरोवर: कपोल
कुसुम सरोवर: कर्ण
चित्रशिला: मस्तक
वादिनी शिला: कंठ
कंदुक क्षेत्र: पीठ
द्रौण तीर्थ: पसलियाँ
कदम्ब खण्ड: हृदय
श्रृंगार मंडप: आत्मा का वास
हस्तचिन्ह: बुद्धि
चरण चिन्ह: मन
सुरभि चरण: गोवर्धन के पंख
पुच्छ कुण्ड: पूंछ
वत्स कुण्ड: शक्ति
रूद्र कुण्ड: क्रोध
इन्द्र सरोवर: वासना
कुबेर तीर्थ: कर्म
ब्रह्म तीर्थ: प्रसन्नता
यम तीर्थ: अहंकार

इन स्थानों की परिक्रमा, वस्तुतः श्रीकृष्ण की दिव्य सत्ता की परिक्रमा है।

गोवर्धन परिक्रमा का वर्तमान महत्व
आज भी हजारों श्रद्धालु गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं। यह परिक्रमा केवल एक तीर्थ यात्रा नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना है। यहां न तो चोरी-चकारी की घटनाएं होती हैं, और न ही कोई भय का वातावरण रहता है। कुछ स्वार्थी तत्व कभी-कभी पर्वत के खनन की चेष्टा करते हैं, जो निंदनीय है।
गोवर्धन संदेश देता है - प्रकृति की रक्षा करो
यह पर्वत हमें जीवन का मूल संदेश देता है – गौरक्षा करो, जल संरक्षण करो, वृक्षारोपण करो, और धरती को हराभरा बनाओ। यह स्थान न केवल भक्ति का केंद्र है, बल्कि प्रकृति के संरक्षण और संतुलन का आदर्श भी प्रस्तुत करता है।

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