गुरु घासीदास जयंती 18 दिसंबर : सत्य, समानता और मानवता के महान उद्घोषक

Guru Ghasidas Jayanti (December 18)
A great proponent of truth, equality, and humanity
 
Guru Ghasidas Jayanti (December 18) A great proponent of truth, equality, and humanity

हेमंत खुटे | विनायक फीचर्स :  छत्तीसगढ़ की पावन धरती संतों, महापुरुषों और समाज सुधारकों की तपोभूमि रही है। इन्हीं महान विभूतियों में बाबा गुरु घासीदास का नाम लोकनायक के रूप में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। उन्होंने समाज को सत्य, अहिंसा, समानता और मानवता का ऐसा सशक्त संदेश दिया, जो आज भी प्रासंगिक है।

18वीं शताब्दी में जब समाज जाति-भेद, छुआछूत, अंधविश्वास और सामाजिक अन्याय की जंजीरों में जकड़ा हुआ था, तब गुरु घासीदास ने “सतनाम” के माध्यम से मानवता, जागृति और समता का सरल मार्ग दिखाया। उनका जीवन केवल एक संत का नहीं, बल्कि समाज सुधार के व्यापक आंदोलन का प्रतीक है।उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा—“मनखे-मनखे एक समान”,अर्थात सभी मनुष्य समान हैं। यही विचार उनके कर्म, प्रवचन और सत्संगों का मूल आधार रहा।

सादगी, संघर्ष और समाज सुधार का जीवन

गुरु घासीदास का जन्म वर्ष 1756 में छत्तीसगढ़ के वर्तमान बलौदा बाजार जिले के गिरौदपुरी गांव में एक साधारण भूमिहीन कृषक परिवार में हुआ। उस दौर में समाज गहरे भेदभाव, शोषण और अमानवीय व्यवहार से ग्रस्त था। कमजोर और वंचित वर्गों की आवाज़ दबा दी जाती थी।

विपरीत परिस्थितियों और संघर्षों के बीच गुरु घासीदास ने आत्मचिंतन, साधना और अनुभव से ज्ञान अर्जित किया। उन्होंने सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक अन्याय के विरुद्ध आजीवन संघर्ष किया। छुआछूत, जातिगत भेदभाव, धार्मिक पाखंड, नशाखोरी और आर्थिक शोषण के खिलाफ उन्होंने निर्भीक होकर आवाज़ उठाई।

उन्होंने किसी सत्ता, धन या संगठन पर निर्भर न रहते हुए गांव-गांव जाकर लोगों की पीड़ा को समझा, समाधान सुझाया और स्वयं सादा जीवन जीकर “सादा जीवन, उच्च विचार” का उदाहरण प्रस्तुत किया।

i9i90

गुरु घासीदास की शिक्षाएं

गुरु घासीदास ने किसी औपचारिक गुरु या विद्यालय से शिक्षा नहीं ली, किंतु वे आत्मज्ञान से संपन्न महापुरुष थे। उनका मानना था कि मानव और पशु—सभी के प्रति करुणा और प्रेम आवश्यक है। वे शिक्षा को समाज परिवर्तन का सबसे सशक्त माध्यम मानते थे।

बाबा गुरु घासीदास की सात प्रमुख शिक्षाएं

  1. सतनाम (सत्य) में आस्था

  2. जीव-हत्या से दूर रहना

  3. मांसाहार का त्याग

  4. चोरी और जुए से बचना

  5. जाति-पाति के भेद से दूर रहना

  6. व्यभिचार से बचना

  7. नशा सेवन न करना

अमृतवाणी: मानवता का शाश्वत संदेश

गुरु घासीदास की वाणी आज भी जीवन का मार्गदर्शन करती है—

  • मनुष्य किसी भी रंग या वर्ण का हो, वह मनुष्य है

  • आने वाले को रोको मत, जाने वाले को टोको मत

  • भक्ति से पहले आत्मनिर्भर बनो

  • जो पास है, उसे बांटकर खाने का प्रयास करो

  • मेरे-तेरे, अपने-पराए का भेद मत करो

  • दूसरों की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझो

  • पशुओं के प्रति भी करुणा और संवेदनशीलता रखो

सतनाम पंथ की स्थापना

गुरु घासीदास (1756–1850) ने सतनाम पंथ की स्थापना की, जिसका मूल सिद्धांत है—सत्य ही ईश्वर है।उन्होंने समाज को सत्य बोलने, सत्य के मार्ग पर चलने और समानता को जीवन का आधार बनाने का संदेश दिया। सतनामी समाज का सफेद ध्वज (जोत) सत्य, शांति और पवित्रता का प्रतीक है।

जैतखंभ: सत्य के मार्ग का प्रतीक

जैतखंभ (जैतखाम) सतनामी समाज का प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीक है। यह सत्य, समानता, शांति और सतनाम के आदर्शों को दर्शाता है, जिसे गुरु घासीदास ने सत्य के पथ का चिन्ह माना।

पंथी नृत्य और सांस्कृतिक विरासत

गुरु घासीदास के उपदेशों को पंथी गीत और नृत्य के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाया जाता है। पंथी नृत्य छत्तीसगढ़ की एक विशिष्ट लोककला है, जो सामाजिक चेतना और आध्यात्मिक संदेश को जीवंत बनाती है।

मानवता ही सच्चा धर्म

गुरु घासीदास का जीवन केवल इतिहास नहीं, बल्कि जीवंत विचारधारा है। उन्होंने सिद्ध किया किसत्य, अहिंसा, करुणा और समानता ही सच्चा धर्म है। आज गुरु घासीदास जयंती पर उनके विचार हमें प्रेरित करते हैं कि हम भेदभाव से ऊपर उठकर मानवता और सत्य के पक्ष में खड़े हों—यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है।

Tags