कैसे करें जन्म कुंडली के पंचम भाव से संतान विचार

 
कैसे करें जन्म कुंडली के पंचम भाव से संतान विचार

डेस्क-कुंडली के पाँचवे घर को भारतीय वैदिक ज्योतिष में सुत भाव अथवा संतान भाव भी कहा जाता है तथा अपने नाम के अनुसार ही कुंडली का यह घर संतान प्राप्ति के बारे में बताता है। किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली से उसकी संतान पैदा करने की क्षमता मुख्य रुप से कुंडली के इसी घर से देखी जाती है, हालांकि कुंडली के कुछ और तथ्य भी इस विषय में अपना महत्त्व रखते है। यहां पर यह बात घ्यान देने योग्य है कि कुंडली का पाँचवा घर केवल संतान की उत्पत्ति के बारे में बताता है तथा संतान के पैदा हो जाने के बाद व्यक्ति के अपनी संतान से रिश्ते अथवा संतान से प्राप्त होने वाला सुख को कुंडली के केवल इसी घर को देखकर नहीं बताया जा सकता तथा उसके लिए कुंडली के कुछ अन्य तथ्यों पर भी विचार करना पड़ता है।

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार ज्योतिषशास्त्र में पंचम भाव को सुत भाव भी कहा जाता है। व्यक्ति की जन्म कुंडली में पंचमभाव को त्रिकोण की संज्ञा दी गई है। पंचम भाव से मुख्यत: सभी प्रकार की संतान (पुत्र, पुत्री, दत्तक पुत्र आदि) विद्या, बुद्धि धारणाशक्ति, व्यवस्थापक होने की योग्यता का विचार किया जाता है। पंचम स्थान पर स्वामी जितने ग्रहों के साथ होगा, उतनी संतान होगी। जितने पुरुष ग्रह होंगे, उतने पुत्र और जितने स्त्रीकारक ग्रहों के साथ होंगे, उतनी संतान लड़की होगी। सप्तमांश कुंडली के पंचम भाव पर या उसके साथ या उस भाव में कितने अंक लिखे हैं, उतनी संतान होगी। एक नियम यह भी है कि सप्तमांश कुंडली में चँद्र से पंचम स्थान में जो ग्रह हो एवं उसके साथ जीतने ग्रहों का संबंध हो, उतनी संतान होगी।

शास्त्रों के अनुसार बिना पुत्र के मनुष्य की सद्गति नही होती| वर्तमान युग में यही बात ज्ञान के विषय में भी कही जा सकती है| यदि यह कहा जाए कि बिना ज्ञान के मनुष्य की दुर्गति होती है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी| इसलिए एक व्यक्ति अपने जीवन में कितना ज्ञानार्जन कर सकता है यह भी इस भाव से पता चलता है| पंचम स्थान से संतान, बुद्धि, स्मरण शक्ति, विश्लेषण क्षमता, ज्ञानार्जन करने व किसी भी विषय को समझने की क्षमता, इष्टदेव की आराधना, प्रेम विवाह, राजयोग, मंत्र-तंत्र में रूचि व सफलता, माता का धन, सट्टे व लॉटरी से आकस्मिक धन लाभ, प्रियतम या प्रियतमा, उदर, पाचन संस्थान, यकृत, गर्भाशय आदि का विचार किया जाता है| लग्न, पंचम व नवम भाव एक-दूसरे के साथ त्रिकोण बनाते हैं|

त्रिकोण के रूप में पंचम स्थान एक शुभ भाव है| इस भाव का स्वामी होने पर भावेश के रूप में प्रत्येक ग्रह का शुभ फल बढ़ जाता है| इस भाव का कारक ग्रह गुरु है| संतान सुख कैसे होगा, इसके लिए भी हमें पंचम स्थान का ही विश्लेषण करना होगा। पंचम स्थान का मालिक किसके साथ बैठा है, यह भी जानना होगा। पंचम स्थान में गुरु शनि को छोड़कर पंचम स्थान का अधिपति पाँचवें हो तो संतान संबंधित शुभ फल देता है। यदि पंचम स्थान का स्वामी आठवें, बारहवें हो तो संतान सुख नहीं होता। यदि हो भी तो सुख मिलता नहीं या तो संतान नष्ट होती है या अलग हो जाती है। यदि पंचम स्थान का अधिपति सप्तम, नवम, ग्यारहवें, लग्नस्थ, द्वितीय में हो तो संतान से संबंधित सुख शुभ फल देता है। द्वितीय स्थान के स्वामी ग्रह पंचम में हो तो संतान सुख उत्तम होकर लक्ष्मीपति बनता है।


कुंडली का पाँचवा घर बलवान होने से तथा किसी शुभ ग्रह के प्रभाव में होने से कुंडली धारक स्वस्थ संतान पैदा करने में पूर्ण रुप से सक्षम होता है तथा ऐसे व्यक्ति की संतान आम तौर पर स्वस्थ होने के साथ-साथ मानसिक, शारीरिक तथा बौद्भिक स्तर पर भी सामान्य से अधिक होती है तथा समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाने में सक्षम होती है। दूसरी ओर कुंडली का पाँचवा घर बलहीन होने की स्थिति में अथवा इस घर के किसी बुरे ग्रह के प्रभाव में होने से कुंडली धारक को संतान की उत्पत्ति में समस्याएं आती हैं तथा ऐसे व्यक्तियों को आम तौर पर संतान प्राप्ति देर से होती है, या फिर कई बार होती ही नहीं। पंचम स्थान कारक गुरु और पंचम स्थान से पंचम स्थान (नवम स्थान) पुत्र सुख का स्थान होता है। पंचम स्थान गुरु का हो तो हानिकारक होता है, यानी पुत्र में बाधा आती है।
सिंह लग्न में पंचम गुरु वृश्चिक लग्न में मीन का गुरु स्वग्रही हो तो संतान प्राप्ति में बाधा आती है, परन्तु गुरु की पंचम दृष्टि हो या पंचम भाव पर पूर्ण दृष्टि हो तो संतान सुख उत्तम मिलता है।पंचम स्थान का स्वामी भाग्य स्थान में हो तो प्रथम संतान के बाद पिता का भाग्योदय होता है। यदि ग्यारहवें भाव में सूर्य हो तो उसकी पंचम भाव पर पूर्ण दृष्टि हो तो पुत्र अत्यंत प्रभावशाली होता है। मंगल की यदि चतुर्थ, सप्तम, अष्टम दृष्टि पूर्ण पंचम भाव पर पड़ रही हो तो पुत्र अवश्य होता है।

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार पंचम स्थान का अधिपति यदि छठे में हो तो दत्तक पुत्र लेने का योग बनता है। पंचम स्थान में मीन राशि का गुरु कम संतान देता है। पंचम स्थान में धनु राशि का गुरु हो तो संतान तो होगी, लेकिन स्वास्थ्य कमजोर रहेगा। गुरु का संबंध पंचम स्थान पर संतान योग में बाधा देता है। सिंह, कन्या राशि का गुरु हो तो संतान नहीं होती। इस प्रकार तुला राशि का शुक्र पंचम भाव में अशुभ ग्रह के साथ (राहु, शनि, केतु) के साथ हो तो संतान नहीं होती।पंचम स्थान में मेष, सिंह, वृश्चिक राशि हो और उस पर शनि की दृष्टि हो तो पुत्र संतान सुख नहीं होता। पंचम स्थान पर पड़ा राहु गर्भपात कराता है। यदि पंचम भाव में गुरु के साथ राहु हो तो चांडाल योग बनता है और संतान में बाधा डालता है

यदि यह योग स्त्री की कुंडली में हो तो। यदि यह योग पुरुष कुंडली में हो तो संतान नहीं होती। नीच का राहु भी संतान नहीं देता। राहु, मंगल, पंचम हो तो एक संतान होती है। पंचम स्थान में पड़ा चँद्र, शनि, राहु भी संतान बाधक होता है। यदि योग लग्न में न हों तो चँद्र कुंडली देखना चाहिए। यदि चँद्र कुंडली में यह योग बने तो उपरोक्त फल जानें।पंचम स्थान पर राहु या केतु हो तो पितृदोष, दैविक दोष, जन्म दोष होने से भी संतान नहीं होती। यदि पंचम भाव पर पितृदोष या पुत्रदोष बनता हो तो उस दोष की शांति करवाने के बाद संतान प्राप्ति संभव है। पंचम स्थान पर नीच का सूर्य संतान पक्ष में चिंता देता है। पंचम स्थान पर नीच का सूर्य ऑपरेशन द्वारा संतान देता है।

पंचम स्थान पर सूर्य मंगल की युति हो और शनि की दृष्टि पड़ रही हो तो संतान की शस्त्र से मृत्यु होती है।ज्यतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार जन्म कुंडली का पाँचवा घर व्यक्ति के मानसिक तथा बौद्धिक स्तर को दर्शाता है तथा उसकी कल्पना शक्ति, ज्ञान, उच्च शिक्षा, तथा ऐसे ज्ञान तथा उच्च शिक्षा से प्राप्त होने वाले व्यवसाय, धन तथा समृद्धि के बारे में भी बताता है। कुंडली के पाँचवे घर के बलवान होने से तथा किसी शुभ ग्रह के प्रभाव में होने से कुंडली धारक उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम होता है तथा आम तौर पर इस शिक्षा के आधार पर आगे जाकर उसे जीवन में व्यवसाय भी प्राप्त हो जाता है जिससे इस शिक्षा की प्राप्ति सार्थक हो जाती है जबकि कुंडली के पाँचवे घर के बलहीन होने अथवा किसी बुरे ग्रह के प्रभाव में होने से कुंडली धारक आम तौर पर उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाता अथवा उसे इस शिक्षा को व्यवसाय में परिवर्तित करने का उचित अवसर नहीं मिल पाता।

कुंडली का पाँचवा घर कुडली धारक के प्रेम-संबंधों के बारे में, उसके पूर्व जन्मों के बारे में तथा उसकी आध्यात्मिक रुचियों तथा आध्यात्मिक प्रगति के बारे में भी बताता है। कुंडली के पाँचवे घर पर किन्हीं विशेष अच्छे या बुरे ग्रहों के प्रभाव का ध्यानपूर्वक अध्ययन करने पर कुंडली धारक के पूर्व जन्मों में संचित किए गए अच्छे अथवा बुरे कर्मों के बारे में भी पता चल सकता है तथा कुंडली धारक की आध्यत्मिक यात्रा की उन्नति या अवनति का भी पता चल सकता है। कुंडली धारक के जीवन में आने वाले प्रेम-संबंधों के बारे जानने के लिए भी कुंडली के इस घर पर ध्यान देना आवश्यक है तथा पूर्व जन्मों से संबंधित प्रेम-संबंध भी कुंडली के इस घर से जाने जा सकते हैं।

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार शरीर के अंगों में कुंडली का यह घर जिगर, पित्ताशय, अग्न्याशय, तिल्ली, रीढ की हड्डी तथा अन्य कुछ अंगों को दर्शाता है। महिलाओं की कुंडली में कुंडली का यह घर प्रजनन अंगों को भी कुछ हद तक दर्शाता है जिससे उनकी प्रजनन करने की क्षमता का पता चलता है। कुंडली के पाँचवे घर पर किन्हीं विशेष बुरे ग्रहों का प्रभाव कुंडली धारक को प्रजनन संबंधित समस्याएं तथा मधुमेह, अल्सर तथा पित्ताशय में पत्थरी जैसी बिमारियों से पीड़ित कर सकता है।

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