डेस्क -जन्म कुंडली में जेलयात्रा के योग कैसे बनते है | शनि , मंगल और राहू मुख्य रूप से यह तीन ग्रह कारावास के योग को निर्मित करने में मुख्य भूमिका निभाते है I इनके अतिरिक्त सभी लग्नों के द्वादेश , षष्ठेश एवम अष्टमेश भी इस तरह के योग बनाने में अपनी भूमिका निभाते है I इसके साथ साथ यदि महादशा , अंतर्दशा भी अशुभ ग्रहों की हो तो भी कारावास योग घटित होने के लिए उपयुक्त स्थिति बन जाती है और इस प्रकार की घटना हो सकती है, कई बार तो ऐसी स्थिति में निरपराध व्यक्ति को भी जेल जाना पड़ता हैI कई बार जन्मकुंडली में ही ऐसे योग बनते है तो कई बार ग्रहों की गोचरीय स्थिति के कारण एवं दशा अंतर्दशा के कारण अल्प समय के लिए ऐसे योग बन जाते है I कानून दो प्रकार के होते है एक तो प्रकृति का कानून जिसे प्रकृति खुद बनाती बिगाडती है |दूसरा इंसानी कानून जो इंसान खुद के बचाव और रक्षा के लिये बनाता है। प्रकृति का कानून सर्वोपरि है। प्रकृति को जो दंड देना है या बचाव करना वह स्वयं अपना निर्णय लेती है।
अंत गति सो मति कहावत के अनुसार जीव उन कार्यों के लिये अपनी बुद्धि को बनाता चला जाता है |जो उसे अंत समय मे खुद के अनुसार प्राप्त हों। कानून के अनुसार भी जीव को तीन तरह की सजाये दी जाती है पहली सजा मानसिक होती है| जो व्यक्ति खुद के अन्दर ही अन्दर रहकर सोचता रहता है और वह अपने शरीर मन और दैनिक जीवन को बरबाद करता रहता है |दूसरी सजा शारीरिक होती है जो प्रकृति के अनुसार गल्ती करने पर मिलती है और उस गल्ती की एवज मे अपंग हो जाना पागल हो जाना भ्रम मे आकर अपने सभी व्यक्तिगत कारको का त्याग कर देना और तीसरी सजा होती है जो हर किसी को नही मिलती है |
वह शारीरिक मानसिक और कार्य रूप से बन्धन मे डाल देना,इसे आज की भाषा मे जेल होना भी कहा जाता है। बन्धन योग के लिये एक बात और भी कही जाती है कि व्यक्ति अगर खुद को एक स्थान मे पैक कर लेता है या कोई सामाजिक पारिवारिक कारण सामने होता है |वह अपनी इज्जत मान मर्यादा या लोगो की नजरो से बचाव के लिये अपना खुद का रास्ता एकान्त मे चुनता है |
वह भी स्वबन्धन योग की सीमा मे आजाता है किसी भी व्यक्ति के जीवन में कई बार दुखद स्थिति का सामना करना पड़ता है एवं पुलिसिया के जेल जाना कारावास और इस तरह के योग बनते हैं| इंद्रियों के पीछे ग्रहों का खेल होता है |
ग्रहों के बुरे योग
शनि मंगल एवं राहु इन ग्रहों के बुरे योग एवं दृष्टि कारावास को इंगित करती है|लग्न कुंडली में छठे आठवें एवं बारहवें भाव वह उनके स्वामी ग्रह कारावास के लिए जिम्मेवार होते है |यदि कोई शुभ ग्रहों की उपस्थिति या दृष्टि दशम भाव पर नव हो एवं शनि मंगल राहु शनि राहु मंगल का योग दशम स्थान पर होने से व्यक्ति को अपराध एवं और समाजिक कार्यों में लिप्त करता है कुंडली अथवा प्रश्न कुंडली में छठे स्थान एवं आठवें स्थान का स्वामी एवं राहु का बारहवे स्थान या 12 वे स्थान के स्वामी के साथ संबंध रहने पर व्यक्ति को जेल की सजा होती है|
जन्मकुंडली में सूर्य के प्रभाव
जन्मकुंडली में सूर्यादि ग्रह समान संख्या में लग्न एवं द्वादश , तृतीय एवं एकादश , चतुर्थ दशम , षष्ठ एवं अष्टम भाव में स्थित हो तो यह बंधन योग बनाता है, यह स्थिति यदि कहीं जन्मपत्रिका में ग्रहों के गोचर के कारण बन रही हो तो उस समय में भी बंधन योग अल्प काल के लिए घटित हो सकता है I जन्म कुंडली में द्वितीय भाव में शनि एवं द्वादश भाव में मंगल स्थित हो तो यह योग निर्मित होगा , लेकिन यदि द्वतीय में शनि और द्वादश में मंगल के साथ किसी भी पाप या शुभ ग्रह की युति हो तो यह योग भंग हो जाता है I इस योग के फलस्वरूप व्यक्ति कैसा भी क्यों न हो उसे जीवन में इस का सामना करना पड़ता है I इस योग में बंधनयोग कारक ग्रहों पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो इस योग बहुत ही अल्प मात्रा में फल प्राप्त होते है , और जेल यात्रा में अधिक कष्ट भी नहीँ होता है I लेकिन यदि यह योग बनाने वाले पाप ग्रहों पर अन्य पाप ग्रहों या द्वादेश की दृष्टि पड़ रही हो तो जेल यात्रा कष्टकारी व लम्बे समय के लिए हो सकती है I
ग्रहों के योग के प्रभाव
यह योग यदि शुभ ग्रहों से निर्मित हो रहा हो तो इस बात के संकेत देता है की जातक ने कोई अपराध नहीं किया है , अथवा बिना अपराध के सजा भोगनी पड़ रही है I यदि यह योग पाप ग्रहों से से निर्मित हो रहा हो तो इसका अर्थ है की व्यक्ति ने लालच , क्रोध , इर्ष्या या द्वेष की भावना से अपराध किया होगा I वैदिक ज्योतिष के शास्त्रों में वर्णित परिभाषा अनुसार अगर किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में मंगल और राहु एक साथ किसी घर में बैठकर युति कर रहे हों अथवा मंगल व राहू के बीच दृष्टि संबंध बन रहा हो तो ऐसी जन्मकुंडली में अंगारक योग निर्मित होता है। जब किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में "अंगारक दोष" का निर्माण होता है तो व्यक्ति का स्वभाव हिंसक पशु जैसा हो जाता है। अंगारक दोष वाले व्यक्तियों के अपने बंधुओं, मित्रों व रिश्तेदारों के साथ कटु संबंध स्थापित होते हैं।
अंगारक दोष वाले व्यक्ति शुभाशुभ दशा-अंतर्दशा आने पर अपराधी बन जाते हैं व उसे अपने असामाजिक कार्यों के चलते लंबे समय तक उन्हें जेल में भी रहना पड़ता है। कुंडली में किस भाव में अंगारक दोष बनता है उसके अनुसार ही फल प्राप्त होते हैं। ऐसे व्यक्तियों के जीवन में कई उतार चढ़ाव आते हैं। जमिन जायदाद से जुड़ी परेशानियां व धन संबंधित परेशानियां बनी रहती हैं। माता के सुख में कमी आती है। संतान प्राप्ति में परेशानियां आती है|
जन्मकुंडली में मंगल और राहु
अगर किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में मंगल और राहु एक साथ किसी घर में बैठकर युति कर रहे हों अथवा मंगल व राहू के बीच दृष्टि संबंध बन रहा हो तो ऐसी जन्मकुंडली में अंगारक योग निर्मित होता है। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया जब किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में "अंगारक दोष" का निर्माण होता है तो व्यक्ति का स्वभाव हिंसक पशु जैसा हो जाता है। अंगारक दोष वाले व्यक्तियों के अपने बंधुओं, मित्रों व रिश्तेदारों के साथ कटु संबंध स्थापित होते हैं। वैदिक ज्योतिष के फलित खंड अनुसार अंगारक दोष वाले व्यक्ति शुभाशुभ दशा-अंतर्दशा आने पर अपराधी बन जाते हैं व उसे अपने असामाजिक कार्यों के चलते लंबे समय तक उन्हें जेल में भी रहना पड़ता है। कुंडली में किस भाव में अंगारक दोष बनता है उसके अनुसार ही फल प्राप्त होते हैं। ऐसे व्यक्तियों के जीवन में कई उतार चढ़ाव आते हैं। जमिन जायदाद से जुड़ी परेशानियां व धन संबंधित परेशानियां बनी रहती हैं। माता के सुख में कमी आती है। संतान प्राप्ति में परेशानियां आती है |
किसी भी कुंडली में सितारों की स्थिति ये भी बता देती है कि जेल यात्रा के योग है या नहीं
-
कुंडली में सूर्य, शनि, मंगल और राहु-केतु जैसे पाप ग्रह बता देते हैं कि आपकी कुंडली में जेल जाने के योग है या नहीं।
-
अगर किसी की कुंडली के छठें आठवें या बारहवें भाव में पाप ग्रह होते है तो ऐसे लोगों को जीवन में एक न एक बार जेल यात्रा करनी पड़ती है। कुंडली के छठे आठवें और बारहवें भाव से जेल जाने के योग बनते हैं।
-
शनि , मंगल और राहू मुख्य रूप से यह तीन ग्रह एवम् इनका आपसी सम्बन्ध।
-
सभी लग्नों के द्वादेश , षष्ठेश एवम अष्टमेश के अशुभ योग या प्रभाव।
-
अगर कुंडली में मंगल और शनि एक दूसरे को देख रहें हो तो लड़ाई झगड़े के कारण व्यक्ति को जेल यात्रा हो सकती है।
-
महादशा , अंतर्दशा,प्रत्यंतर दशा भी अशुभ ग्रहों की हो तो भी कारावास जाने की स्थिति बन जाती है ।
-
जन्म कुंडली में द्वितीय भाव में शनि एवं द्वादश भाव में मंगल स्थित हो तो जेल योग बन सकते हैं।
-
लेकिन यदि द्वतीय में शनि और द्वादश में मंगल के साथ किसी भी शुभ ग्रह की युति या प्रभाव हो तो यह योग भंग हो जाता है I
-
जेल योग के फलस्वरूप व्यक्ति कैसा भी क्यों न हो उसे जीवन में इस का सामना करना पड़ता है I
-
इस प्रकार जेल योग में बंधनयोग कारक ग्रहों पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो बहुत ही अल्प मात्रा में फल प्राप्त होते है व जेल यात्रा में अधिक कष्ट भी नहीँ होता है I
-
लेकिन यदि जेल योग बनाने वाले पाप ग्रहों पर अन्य पाप ग्रहों या द्वादेश की दृष्टि पड़ रही हो तो जेल यात्रा कष्टकारी व लम्बे समय के लिए हो सकती है I
-
जन्मपत्रिका में ग्रहों के गोचर के कारण बन रही हो तो उस समय में भी बंधन योग अल्प काल के लिए घटित हो सकता है |
-
जेल योग यदि शुभ ग्रहों से निर्मित हो रहा हो तो इस बात के संकेत देता है की जातक ने कोई अपराध नहीं किया ह कब बनते हैं जेल जाने के योग?
- कुंडली के बारहवें भाव से भी कारावास का विचार किया जाता है।
- कुंडली के इस घर में वृश्चिक या धनु राशी का राहु हो तो उसके अशुभ प्रभाव के कारण व्यक्ति को किसी बड़े अपराध के कारण जेल जाना पड़ता है।
- कुंडली के बारहवें घर में वृश्चिक राशी होने के साथ अगर राहु और शनि होते है तो कोर्ट कचहरी के मामलों में हारने के बाद जेल जाना पड़ता है।
- कर्क राशी स्तिथ मंगल कुंडली के छठे घर में होने से जेल यात्रा के योग बनाता है।
- अगर कुंडली में मंगल और शनि एक दूसरे को देख रहें हो तो लड़ाई झगड़े के कारण व्यक्ति को जेल जाना पड़ेगा।
- अगर कुंडली में नीच का मंगल हो और मेष राशि का शनि, मंगल को देखता भी हो तो भी जेल जाने के योग बनते हैं।
- पराक्रम भाव एवं अष्टम भाव का स्थान परिवर्तन, भावेश द्वारा द्रष्टि सम्बन्ध, भावईश् की दशा-प्रत्यंतर, ग्रह गोचर द्वारा दुर्भाग्य उद्दीपन होने पर जेल जाने की स्तिथि प्रबलता से बनती है।
- लग्नेश या लग्न पर मार्केष् वक्री ग्रह की दृष्टि प्रभाव वश जन्म कुंडली पत्रिका में उपर्युक्त किसी भी ग्रहदोष स्तिथि का निर्माण होने पर समय विशेष की पुष्टि द्वारा जातक कर्मस्तिथिवश कोर्ट कचहरी, मुक़दमे, फौजदारी, सामाजिक अपयश या जेलयात्रा अवश्य संभावी होती है।
ऐसी किसी भी स्तिथि के ज्ञात होने पर ज्योतिष अनुसन्धान में ग्रहदोष निवारण वैदिक उपाय द्वारा अशुभता को काफी हद तक निम्न किया जा सका है|
बंधन योग का दूसरा पहलु--
जन्म के समय जातक विशेष की कुंडली में ऎसे कुछ ग्रह योग बन जाते हैं जिनके कारण व्यक्ति खुद को कभी मुक्त नहीं समझता है. किसी का दबाव रहे या ना रहे लेकिन वह सदा खुद पर दबाव महसूस करता है|जन्म कुंडली में जब लग्न के आसपास अर्थात बारहवें और दूसरे भाव में बराबर की संख्या में(जैसे दोनों भावों में एक-एक ग्रह हों या दो-दो ग्रह हो या ज्यादा) ग्रह मौजूद हो तब जीवन भर खुद पर एक बोझ अथवा बंधन अनुभव करता है|
तीसरे तथा एकादश भाव, चौथे तथा दशम भाव अथवा पंचम तथा नवम भाव में भी बराबर संख्या में ग्रह हो तब भी व्यक्ति खुद को बंधन में महसूस करता है लेकिन इस बंधन योग का प्रभाव लग्न के बंधन से कुछ कम रहता है| यदि छठे तथा आठवें भाव में भी बराबर संख्या में ग्रह हैं तो भी व्यक्ति बंधन में बंधा अनुभव करता है| इस स्थिति में सातवाँ भाव भी बंध जाता है जिससे वैवाहिक जीवन पर भी दुष्प्रभाव देखा जा सकता है|
यदि बंधन योग में लग्न के दोनों ओर शुभ ग्रह की बजाय पाप ग्रह हैं तब यह स्थिति ज्यादा खतरनाक सिद्ध हो जाती हैं क्योंकि ऎसी स्थिति में व्यक्ति अपने भावों को स्पष्ट ना कर पाने की स्थिति में क्रोध में ज्यादा रहता है. हर समय चिड़चिड़ापन उसकी आदत सी बन सकती है|ऎसी स्थिति में यदि लग्न भी पाप प्रभाव में है अथवा पीड़ित है या लग्नेश पाप प्रभाव में है या पीड़ित है तब जातक के लिए ज्यादा परेशानियाँ उत्पन्न हो सकती हैं|
यदि लग्न के दोनों ओर शुभ ग्रहों का प्रभाव है और साथ ही लग्न तथा लग्नेश भी बली अवस्था में है तब व्यक्ति बंधन तो महसूस करेगा लेकिन क्रोध की स्थिति पैदा नही होगी. ऎसी स्थिति में कई बार कुछ बातों के लिए वह मन मसोसकर रह सकता है लेकिन ये भी छोटी बातों पर ही लागू होगा|जीवन के बड़े फैसले वह देर से ही सही लेकिन ले ही लेगा|
सबसे असरकारक /प्रभावी उपाय/टोटका--
आजकल लोग अपनी कुंडली से कारागार योग के दोष को मिटाने के लिए उनसे रोटी मंगाते हैं। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री कहते हैं कि यह काफी पुरानी मान्यता है। उनका कहना है कि कुंडली में निवास स्थान के योग से यह दोष पैदा होता है। जिसके टोटके के रूप में जातक जेल की रोटी खाकर पानी पी लें तो दोष कम हो जाता है। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया इस दोष को मिटाने के लिए यह मान्यता है कि जेल का अन्न खाने से मुक्ित मिलने में आसानी होती है। पूरी तरह मुक्ित पाने के लिए यदि जातक यदि अपने घर की एक कोठरी में बंधक बन कर रह जाए तो भी इस योग से मुक्ति मिल जाएगी।
पिंजरे में आप किसी पक्षी को ले जाते हुए देखें या कोई पक्षी पिंजरे में है तो आप उन पक्षियों को लेकर उन्हें आजाद कर दें। इस कार्य से आपके ऊपर कैसा भी कर्ज हो आप उससे मुक्त हो जाएंगे। लेकिन यदि आपने अपने घर में किसी पक्षी को पिंजरे में रख रखा है तो आप आज नहीं तो कल कभी भी भयंकर कर्ज के बोझ तले दब जाएंगे।
प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें। मंगलवार या शनिवार को हनुमानजी के मंदिर में जाकर उनकी पूजा करें और उनको कम से कम पांच बार चौला चढ़ाएं। बंधन मुक्ति का सबसे उत्तम उपाय हनुमानजी की भक्ति है। हनुमानजी के भक्त बने रहेंगे तो कभी भी जीवन में बंधन महसूस नहीं करेंगे।
आजकल के परिवार को अपने कुल देवता और कुल देवी के स्थान के बारे में कोई जानकारी नहीं है। कुलदेवी या कुल देवता के स्थान से आपके पूर्वजों का पता लगता है। कुल देवी या देवता के स्थान पर जाकर एक साबूत नींबू लें और उसको अपने उपर से 21 बार वार कर उसे दो भागों में काटकर एक भाग को दूसरे भाग की दिशा में और दूसरे भाग को पहले भाग की दिशा में फेंक दें। इसके बाद कुलदेवी या देवता से क्षमा मांग कर वहां अच्छे से पूजा पाठ करें या करवाएं और सभी को दान-दक्षिणा दें।