जगन्नाथ का भात, जगत पसारे हाथ: समानता और भक्ति की प्रतीक रथयात्रा

Jagannath's Bhaat, the world spreads its hands: Rath Yatra is a symbol of equality and devotion
 
Jagannath's Bhaat, the world spreads its hands: Rath Yatra is a symbol of equality and devotion

(लेखक: दिनेश चंद्र वर्मा | स्रोत: विनायक फीचर्स) भारत में जहां वर्ण व्यवस्था और जातिगत भेदभाव को लेकर अनेक बहसें होती रही हैं, वहीं कुछ ऐसे तीर्थस्थल भी हैं जो समानता, समर्पण और समावेशिता के अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। पुरी का जगन्नाथ मंदिर उन्हीं स्थलों में से एक है — एक ऐसा मंदिर जहां हर जाति, हर वर्ग, हर व्यक्ति को पूजा और प्रसाद का अधिकार है।

सी आस्था और समर्पण को दर्शाती है लोकमान्यता—
"जगन्नाथ का भात, जगत पसारे हाथ" —
अर्थात, भगवान जगन्नाथ का प्रसाद संपूर्ण मानवता के लिए है।

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पुरी: नाम अनेक, श्रद्धा एक

भारत के पवित्र तीर्थों में पुरी को विशेष स्थान प्राप्त है। इसे विभिन्न धर्मग्रंथों में नीलाचल, श्रीक्षेत्र, शंख क्षेत्र, पुरुषोत्तम क्षेत्र, और मर्त्य वैकुंठ जैसे नामों से जाना गया है। यहां स्थित भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की पूजा हजारों वर्षों से होती आ रही है।

इतिहास में उल्लेख मिलता है कि जगन्नाथ की पूजा प्रारंभ में आदिवासियों और गिरिजनों द्वारा की जाती थी। धीरे-धीरे यह पूजा परंपरा सभी वर्णों तक फैली और आज जगन्नाथ मंदिर पूरे भारत में सर्वसमावेशी आस्था का प्रतीक है।

जातिवाद को नकारती आस्था

पुरी मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां जाति-भेद का कोई स्थान नहीं है। मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस मंदिर में छुआछूत करता है, वह गंभीर रोग का शिकार हो जाता है। यही कारण है कि भगवान जगन्नाथ को सर्वसुलभ और सर्वप्रिय कहा गया है।

जगन्नाथ के प्राकट्य की कथा: भक्त और भक्ति की परीक्षा

धार्मिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार, एक समय भगवान श्रीकृष्ण की पटरानियों ने माता रोहिणी से उनकी रासलीलाओं का वर्णन करने की विनती की। कथा सुनने के लिए सुभद्रा को बाहर खड़ा किया गया, लेकिन उसी समय श्रीकृष्ण और बलराम वहां पहुंचे। सुभद्रा ने दोनों भाइयों को अंदर आने से रोका, तभी देवर्षि नारद वहां आए और यह अलौकिक दृश्य देखकर स्तुति करते हुए प्रार्थना की कि आप तीनों इसी रूप में भक्तों को दर्शन दें।

इसी वरदान के फलस्वरूप कलियुग में जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा ने पुरी के नीलाचल पर्वत पर अवतार लिया।

इन्द्रद्युम्न और दारू ब्रह्म की लीला

राजा इन्द्रद्युम्न, भगवान विष्णु के परम भक्त थे। उन्हें जब नीलमाधव के अवतरण का समाचार मिला, तो वे प्रतिमा के दर्शन के लिए उत्कल (उड़ीसा) पहुंचे। लेकिन वहां पहुंचने पर विग्रह अदृश्य हो चुका था। राजा ने वहीं तपस्या प्रारंभ की। एक दिन उन्हें स्वप्न में भगवान का आदेश मिला कि वे समुद्र से बहकर आ रही दारू ब्रह्म की लकड़ी से भगवान की मूर्तियां बनवाएं।

लेकिन मूर्तियों का निर्माण कोई नहीं कर सका, तब विश्वकर्मा बूढ़े बढ़ई के रूप में आए और 21 दिनों तक एकांत में मूर्तियों का निर्माण करने की शर्त रखी। दरवाजा खोलने की गलती से वे मूर्तियां अपूर्ण रह गईं — जिनमें हाथ-पांव नहीं थे। आकाशवाणी ने स्पष्ट किया कि यही रूप भगवान को स्वीकार है और इसी रूप में वे प्रतिष्ठित होंगे।

मंदिर का निर्माण और नीलचक्र की प्रतिष्ठा

जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर नीलचक्र और ध्वज भगवान की उपस्थिति के प्रतीक हैं। कहा जाता है कि जब तक ध्वज लहराता है, तब तक मंदिर में दिव्य ऊर्जा बनी रहती है। मंदिर का वर्तमान स्वरूप 12वीं शताब्दी में महाराज अनंत वर्मन द्वारा निर्मित किया गया था।

प्रतिवर्ष रथ यात्रा: समानता का उत्सव

पुरी की रथ यात्रा न केवल धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह समानता और समर्पण का उत्सव भी है। इस दिन पुरी के राजा भी झाड़ू लगाते हैं, यह दर्शाने के लिए कि भगवान के समक्ष राजा और रंक सभी समान हैं। रथ यात्रा का आरंभ उस स्मृति से जुड़ा है जब एक बार सुभद्रा ने भ्रमण की इच्छा प्रकट की थी और श्रीकृष्ण व बलराम के साथ रथ पर सवार होकर भ्रमण किया था।

56 भोग और अटूट भक्ति

जगन्नाथ मंदिर में भगवान को 56 प्रकार के भोग अर्पित किए जाते हैं, जिनमें भात (चावल) विशेष स्थान रखता है। यही "जगन्नाथ का भात" पूरे समाज में समान रूप से बांटा जाता है।

भगवान के समक्ष सभी समान

पुरी का जगन्नाथ मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सामाजिक समरसता के प्रतीक के रूप में भी एक मिसाल है। यहां कोई जाति या वर्ण बाधा नहीं है — केवल भक्ति ही सर्वोपरि है। इसी कारण, भारत के हर कोने से लाखों श्रद्धालु हर वर्ष यहां दर्शन के लिए आते हैं।

जगन्नाथ: कलियुग के आराध्य

धर्मशास्त्रों के अनुसार:

  • सतयुग का धाम: बद्रीनाथ

  • त्रेतायुग का धाम: रामेश्वरम

  • द्वापर युग का धाम: द्वारका

  • कलियुग का धाम: जगन्नाथ पुरी

जहां मात्र दर्शन से भगवान अपने भक्तों की मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं।

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