Mahakumbh Importance 2025 : महाकुम्भ के दौरान कल्पवास का क्या महत्त्व होता है?

Mahakumbh Ke Dauran Kalpvas Kyu Manaya Jata Hai
 
 
Mahakumbh Ke Dauran Kalpvas Kyu Manaya Jata Hai
Supriya singh 

Mahakumbh Importance 2025 : आज हम बात करने वाले हैं एक बेहद ही दिलचस्प और आध्यात्मिक विषय महाकुम्भ और कल्पवास पर. जैसा कि आप सभी जानते हैं,की  महाकुम्भ मेला एक ऐसा ऐतिहासिक और धार्मिक आयोजन है जो हर 12 साल में एक बार होता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि महाकुम्भ के दौरान कल्पवास क्या होता है, और 2025 में होने वाले महाकुम्भ को इतना खास क्यों मन जा रहा है. और महाकुम्भ में कल्पवास के दौरान किन बातों का ध्यान रखा जाता है. तो अगर आपको भी कल्पवास को लेकर कोई कन्फूशन है तो तो लास्ट तक स्टोरी में हमारे साथ बने रहिये। 

क्या है महाकुंभ का महत्त्व?

तो पहले हम बात कर लेते हैं महाकुम्भ की. संगम की रेती पर तंबुओं का शहर सज चुका है. आस्था का जनसैलाब त्रिवेणी की पावन धरा पर उमड़ने लगा है. संत और महात्मा तीर्थराज में धर्म और अध्यात्म की अलख जगाने के लिए पहुंचे हुए हैं. महाकुंभ की धरती से साधु संत देशभर में सनातन संस्कृति के मान और मर्दन को ऊंचा उठाने का संकल्प ले चुके है.. जी हां, हम बात कर रहे हैं प्रयागराज नगर के संगम के तट की. जहां पर महाकुंभ का त्योहार बड़े जोरों-शोरों से मनाया जा रहा है. महाकुंभ सिर्फ एक धार्मिक समारोह नहीं है, बल्कि ये एक ऐसी सांस्कृतिक विरासत है जिसने हमेशा दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है. महाकुंम एक वो धरोहर है, जिसकी छत्रछाया में सनातनी विचारधारा पूरी दुनिया में फैल रही है. जिससे आकर्षित होकर विदेशी लोग भी सनातन धर्म अपना रहे हैं. 

महाकुम्भ मेला चार स्थानों में होता है आयोजित 

महाकुम्भ मेला एक प्राचीन हिंदू धार्मिक मेला है, जो हर 12 साल में चार स्थानों – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक में आयोजित होता है। ये मेला उस समय होता है जब विशेष खगोलीय स्थिति बनती है, और करोड़ों श्रद्धालु गंगा, यमुना, और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करके अपने पापों से मुक्ति प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं। महाकुम्भ का मेला सिर्फ एक धार्मिक घटना नहीं है, बल्कि ये भारत की सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहां आने वाले श्रद्धालु अपनी आत्मा की शुद्धि और परमात्मा के साथ एकाकार होने के लिए आते हैं। ये मेला विश्वभर से लोगों को आकर्षित करता है, और हर किसी को ये एहसास दिलाता है कि जीवन का असली उद्देश्य केवल भौतिक सुख नहीं, बल्कि आत्मा की शांति और साधना है।

kalpvas ki shuruaat kab hui

आपको बता दें की महाकुम्भ भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक पर्वों में से एक महत्वपूर्ण और विशालतम आयोजन है। हर बार जब महाकुम्भ आयोजित होता है, तब करोङों श्रद्धालु अपनी आस्था और विश्वास के साथ इसमें भाग लेते हैं। लेकिन क्या आपको ये बात पता है  कि महाकुम्भ में एक विशेष प्रकार का व्रत भी होता है, जिसे ‘कल्पवास’ कहा जाता है, तो चलिए अब बात करते हैं महाकुम्भ के दौरान कल्पवास के महत्व के बारे में. 

क्या होता है कल्पवास?

कल्पवास एक विशेष धार्मिक अनुष्ठान है, जिसे महाकुम्भ के दौरान श्रद्धालु अपनी आत्मिक शुद्धि और मोक्ष के लिए करते हैं। ये एक प्रकार का तपस्वी जीवन होता है, जिसमें व्यक्ति 1 महीने या उससे ज्यादा समय तक कुम्भ मेले के पवित्र स्थान पर रहते हुए पूरी तरह से तप, साधना, और पूजा अर्चना करते हैं. वहीँ कल्पवास के दौरान श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती जैसी पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, क्योंकि इन्हें पुण्य और शुद्धि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके साथ ही वो न सिर्फ स्नान करते हैं, बल्कि दिनभर उपवासी रहते हुए भजन-कीर्तन, ध्यान और साधना करते हैं। इस दौरान, उनका उद्देश्य सिर्फ भौतिक जीवन को छोड़कर आत्मिक उन्नति करना और भगवान के प्रति अपने विश्वास को मजबूत करना होता है।

क्यों मनाते हैं कल्पवास?

वहीँ महाकुम्भ के दौरान कल्पवास करने का शास्त्रों में बहुत विशेष महत्व है। ऐसामाना जाता है कि महाकुम्भ के समय नदी में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। कल्पवास करने वाले लोग इस दौरान अपने सभी सांसारिक सुखों का त्याग कर, आत्मा की शुद्धि और भगवान के साथ एकात्मता का अनुभव करते हैं। महाकुम्भ में कल्पवास करने से न सिर्फ आध्यात्मिक उन्नति होती है, बल्कि शरीर और मन की भी शांति मिलती है। और महाकुम्भ और कल्पवास का महत्व सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक भी है। महाकुम्भ के दौरान किए गए तप, साधना और पवित्र स्नान से न सिर्फ व्यक्ति की आत्मिक शुद्धि होती है, बल्कि समाज में सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार भी होता है।

kalpvas kya hota hai

वहीँ कल्पवास के दौरान एक और महत्वपूर्ण कार्य है तुलसी का बिरवा लगाना। बता दें की ये कार्य श्रद्धालु के जीवन को शुद्ध और पवित्र बनाने का प्रतीक है। तुलसी, जो हिंदू धर्म में एक अत्यंत पवित्र पौधा माना जाता है, उसकी पूजा और उसे लगाने का कार्य भी कल्पवास का अभिन्न हिस्सा है। श्रद्धालु तुलसी का बिरवा लगाकर उसकी पूजा करते हैं, जिससे उनके जीवन में भगवान की कृपा बनी रहती है और आत्मिक उन्नति होती है।

कल्पवास की प्रक्रिया को “उद्यापन” क्यों कहते हैं?

बता दें की पद्म पुराण के अनुसार, कल्पवास के दौरान श्रद्धालु को इक्कीस नियमों का पालन करना चाहिए। इनमें सत्य बोलना, अहिंसा का पालन करना, ब्रह्मचर्य का पालन करना और इंद्रियों पर नियंत्रण रखना शामिल हैं। इसके अलावा, हर सूर्योदय पर गंगा में स्नान करके सूर्य देव की पूजा भी जरूरी होती है। कल्पवास की प्रक्रिया को “उद्यापन” कहा जाता है, जो व्रत के समापन के बाद किया जाता है। इसमें गंगा के तट पर विशेष पूजा होती है, जिसमें कलश पूजा, दीपक जलाना और तिल के लड्डू का ब्राह्मणों को दान करना शामिल है। ये पूजा सम्पूर्णता और धार्मिक परंपराओं का प्रतीक है, जिससे व्यक्ति का पुण्य बढ़ता है।

कब से मनाया जा रहा कल्पवास?

वहीँ मत्स्यपुराण के अनुसार, जो कल्पवास की प्रतिज्ञा करता है वो अगले जन्म में राजा के रूप में जन्म लेता है और जो मोक्ष की अभिलाषा लेकर कल्पवास करता है उसे अवश्य मोक्ष मिलता है। अब सवाल उठता है कि कल्पवास क्यों और कब से चला आ रहा है। असल में कल्पवास वेदकालीन अरण्य संस्कृति की देन है। कल्पवास का नियम हमारे यहां हजारों वर्षों से चला आ रहा है। जब इलाहाबाद तीर्थराज प्रयाग कहलाता था और ये आज की तरह विशाल शहर ना होकर ऋषियों की तपोस्थली माना जाता था। प्रयाग क्षेत्र में गंगा-जमुना के आसपास घना जंगल था। इस जंगल में ऋषि-मुनि ध्यान और तप करते थे। ऋषियों ने गृहस्थों के लिए कल्पवास का विधान रखा। उनके अनुसार इस दौरान गृहस्थों को थोड़े समय के लिए शिक्षा और दीक्षा दी जाती थी। इस प्रकार ये लगभग दो महीने से ज्यादा का समय सांसारिक भागदौड़ से दूर तन और मन को नई स्फूर्ति से भर देने वाला होता है।

क्या है कल्पवास का scientific fact?

तो हर 6 साल बाद होने वाले अद्र्घकुंभ और 12 साल बाद होने वाले पूर्ण कुंभ में असंख्य श्रद्घालु शामिल होते हैं और एक साथ स्नान करते हैं। और इसकी दुनिया भर में बढ़ रही पॉपुलैरिटी को देखकर कुछ वैज्ञानिकों ने इस महापर्व को तर्क की कसौटी पर कसने का प्रयास किया। लेकिन हैरानी की बात है कि उन्होंने पाया कि जाने-अनजाने हर 6 साल बाद सामूहिक स्नान की यह प्रक्रिया हमारे शरीर में रोगों से लडऩे की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा देती है। इससे भी बढ़कर फैक्ट ये  है कि इसके लिए हमें कोई दवा या बाहरी कारक की जरूरत नहीं पड़ती सबकुछ प्राकृतिक तरीके से ही हो जाता है। 

kalpvas me kin baton ka dhyan rakhna chahiye

वहीँ कई रिसर्च के मुताबिक,  बार-बार स्नान करने से शुरूआती दिनों में ही शरीर में बड़ी मात्रा में एंटीबॉडी बनती हैं। इसका असर ये होता है कि शरीर में रोग पनप नहीं पाता बल्कि उसके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता पैदा होने लगती है। इस तरह से डेंगू, चिकनगुनिया, टीबी और ऐसी दूसरी बीमारियों के खिलाफ शरीर मजबूत हो जाता है। साथ ही वर्तमान शोध के मुताबिक ये पता लगा कि बुजुर्ग हिंदू लोग माघ मेले में कल्पवास का अभ्यास करके मृत्यु की चिंता से कैसे निपटते हैं।

सर्दियों में ही क्यों होता है कुंभ स्नान ?

पर अब सवाल उठता है की कुंभ स्नान सर्दियों में ही क्यों होता है. तो साइंस के अकॉर्डिंग, उस समय नदियों का जल लगभग 7-12 डिग्री के आसपास रहता है। इतने कम तापमान पर रोग फैलाने वाले जीव तेजी से पनप नहीं पाते। इसके बाद दूसरा मेन रीज़न है भोजन। कुंभ के समय कल्पवास करने वाले श्रद्घालु शुद्घ, सात्विक भोजन करते हैं। ये भोजन रोगों का मुकाबला करने में शरीर की मदद करता है और उसकी प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ता है। इस तरह से देखा जाए तो धर्मशास्त्र और आधुनिक विज्ञान दोनों की निगाह में कुंभ वास्तव में अमृत स्नान ही है।

क्या है आपकी राय?

तो दोस्तों, आज हमने जाना कि महाकुम्भ के दौरान कल्पवास क्या होता है. महाकुम्भ न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह हमारे जीवन को एक नई दिशा देने का भी काम करता है। मुझे उम्मीद है की आपको ये जानकारी अच्छी लगी होगी। और आपके सवाल और Suggestion हमें कमेंट्स में जरूर बताएं।

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