Story Of Hanuman Ji In Hindi : हर 41 साल बाद भगवान हनुमान इस जगह पर दर्शन देने आते है जानिए
Story Of Hanuman Ji In Hindi : आज कलयुग चल रहा है और इसमें पाप अपनी चर्म सीमा पर है भगवान राम के भक्त हनुमान जी के बारे में कहा जाता है कि वह अमर और आज साक्षात मौजूद है वे हर युग में पृथ्वी पर रहते हैं वे सतयुग में भी थे रामायण काल में भी थे और महाभारत काल में भी यह भी कहा जाता है कि वह कलयुग में भी विराजमान है और उनके जीवित होने के संकेत मिलते हैं अगर भगवान हनुमान आज भी जीवित है और अगर हां तो वह आज कहां मौजूद है हनुमान जी भगवान शिव के इकलौते ऐसे अवतार हैं जो आज भी पृथ्वी पर जीवित है क्योंकि इन्हें स्वयं माता सीता से चिरंजीवी का वरदान मिला है
भगवान राम ने भी हनुमान को यह आज्ञा दी है कि वह कलयुग के अंत तक भक्तों की दुख दूर करने के लिए पृथ्वी पर रहेंगे शायद इसीलिए हमें धर्म ग्रंथों में भगवान श्री कृष्ण और यहां तक कि श्री राम के देह त्याग की कथा देखने को मिल जाती है लेकिन क कभी भी हमने किसी भी धर्म ग्रंथों में भगवान हनुमान के देह त्याग के बारे में नहीं सुना , हनुमान के सामनेबड़े से बड़े देवता भी उनके सामने नतमस्तक हो जाए जिनके नाम में इतनी ताकत है कि केवल नाम के जाप से ही बड़े से बड़ी बुरी शक्ति दूर चली जाए तो चलिए शुरू करते हैं और जानते हैं |
समय-समय भगवान हनुमान जी कलयुग में मनुष्य की समस्या का निवारण भी कर सके
कहां रहते हैं हनुमान जी कलयुग में भगवत पुराण में इस बात का जिक्र देखने को मिलता है कि कलयुग में भगवान हनुमान कहां पर रहते हैं भगवत पुराण की माने तो द्वापर युग बीतने के बाद जब कलयुग की शुरुआत हो रही थी तभी से एक पर्वत को हनुमान जी ने अपना निवास स्थान निश्चित किया ताकि वह अपने पृथ्वी पर मौजूद आगे के समय को भगवान श्री राम की तपस्या में लीन होकर बिता सके और समय-समय पर कलयुग में मनुष्य की समस्या का निवारण भी कर सके , अगर आप इस पर्वत का नाम जानना चाहते हैं तो भगवत पुराण के अनुसार इस पर्वत का नाम है गंध मा पर्वत माना जाता है कि और आज के आधुनिक समय में गंधमादन पर्वत कैलाश पर्वत के उत्तर दिशा में मौजूद एक छोटा पर्वत है जो कई बड़ी चोटियों से घिरा है जिसके कारण यहां जाना काफी कठिन है इसके अलावा यह पर्वत तिब्बत के क्षेत्र में आता है जिसे 1962 के युद्ध में चीन द्वारा अपने कंट्रोल में ले लिया गया था यानी आज के समय आपको अगर इस पर्वत तक जाना है तो आपको चीन सरकार की इजाजत लेनी होगी जो कि काफी मुश्किल है इसके अलावा क्योंकि आज के समय यह पर्वत भारत और चीन सीमा के बिल्कुल बीच मौजूद है इसलिए भी इस तक जाना और भी ज्यादा मुश्किल हो जाता है वैसे इस पर्वत के बारे में एक कथा यह भी है कि यहां पर एक बहुत बड़ा पुराने समय का श्रीराम का मंदिर मौजूद है जिसमें प्रभु हनुमान की भी दिव्य मूर्ति है
कड़ी तपस्या करने के बाद स्वयं पवन देव ने अंजनी को पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया
भगवान हनुमान आज भी यह निश्चित नहीं हो पाया है कि भगवान हनुमान कब और कहां जन्मे थे लेकिन हमें अलग-अलग धर्म ग्रंथों में कुछ अलग-अलग समय और स्थान देखने को मिलते हैं जैसे वेदों की माने तो भगवान हनुमान आज से करोड़ 85 लाख 5815 वर्ष पहले त्रेता युग के अंतिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को जन्मे थे जिनका जन्म माता अंजना और पिता केसरी के घर हुआ था जो भारतीय पहाड़ी इलाके आंजन के एक छोटे से पहाड़ गांवों में वानर राज के नाम से जाने जाते थे कहा जाता है कि जब माता अंजनी का विवाह वानर राज हुआ तो लंबे समय तक उन्हें किसी संतान का सुख नहीं मिला जिसके बाद कड़ी तपस्या करने के बाद स्वयं पवन देव ने अंजनी को पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया जिसके बाद हनुमान जी का जन्म हुआ इसीलिए कई बार आपने सुना होगा कि भगवान हनुमान को पवन पुत्र भी कहा जाता है जिन्हें कई देवताओं द्वारा बल बुद्धि युक्ति ज्ञान जैसे अवतार मिले और भगवान हनुमान को ज्ञान खुद सूर्य देव ने दिया कहा जाता है कि भगवान हनुमान ने मात्र सात दिनों में ही सूर्यदेव से संपूर्ण ब्रह्म ज्ञान प्राप्त कर लिया था हनुमान जी का जन्म भगवान श्रीराम के जन्म से पहले ही हो चुका था और हनुमान जी का जन्म आज के भारत के कना नाटक के कोपल जिले के अनगी नामक एक गांव में हुआ था जिसे आज से हजारों साल पहले रामायण के समय किस्किंधा के नाम से जाना जाता था जबकि हनुमान जी का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पूर्णिमा के दिन वैसे तो धार्मिक ग्रंथों के अनुसार हनुमान जी वानर राज्य के श्री और माता अंजनी के पुत्र थे पवन देखकर इसी आशीर्वाद के कारण हनुमान जी को पवन पुत्र के नाम से भी जाना जाता है इसके अलावा हनुमान जी भगवान शिव के गयारह रुद्र अवतार भी कहे जाते हैं |
कैलाश पर्वत भगवान शिव का निवास स्थान है
कैलाश पर्वत को छोड़कर भगवान हनुमान ने गंधमादन पर्वत को ही क्यों चुना तो हनुमान जी द्वारा कैलाश पर्वत को ना चुनने का सबसे पहला कारण तो यही है कि वहां पर खुद भगवान शिव का निवास स्थान है और कि किसी भी हमें हमारे धर्म ग्रंथों में कई बार देखने को मिल जाते हैं क्योंकि हनुमान जी से पहले परशुराम कृपाचार्य और अरशी कश्यप जैसे कई महान लोगों ने भी यहां पर तपस्या की है और इस पर्वत को आराधना करने के लिए कैलाश पर्वत के बाद इस पृथ्वी लोक की सबसे अच्छी जगहों में से एक माना जाता है इसीलिए जब श्री राम भगवान का समय पृथ्वी लोक पर पूरा हुआ और वह अपने बैकुंठ धाम जाने के लिए सरयु नदी पर अपना देह त्याग करने पहुंचे तब उन्होंने हनुमान जी को यह वरदान दिया था कि वह के अंत तक पृथ्वी पर जीवित रहेंगे और उन्हें आदेश दिया कि उन्हें कलयुग के अंत तक पृथ्वी पर ही रहकर अपने भक्तों की रक्षा करनी है इसीलिए भगवान हनुमान ने श्री राम प्रभु की आज्ञा को मानते हुए पृथ्वी लोक पर अपने बचे हुए समय को बिताने के लिए और कलयुग का इंतजार करते हुए भगवान राम की आराधना के लिए गंधमादन पर्वत को चुना |
महाभारत की एक कथा के अनुसार भीम भी भगवान हनुमान से मिल चुके
महाभारत काल में पांडु पुत्र भीम ने देखा था महाभारत की एक कथा के अनुसार भीम भी भगवान हनुमान से मिल चुके हैं तो यह बात है त्रेता युग की इस दौरान पृथ्वी पर महाभारत काल का समय था पांडव भाई द्रौपदी के साथ मिलकर वनों और पहाड़ों में अपना अज्ञात वास बिता रहे थे कि तभी पांडव गंधमादन पर्वत से होकर गुजरे जहां पर पांडव कुछ समय के लिए रुके भी इस दौरान एक दिन भीम को तालाब के किनारे एक सुंदर कमल का फूल दिखा जिसे उन्होंने अपनी पत्नी द्रौपदी के लिए लाने की सोची लेकिन जब भीम तालाब की ओर जा रहे थे तभी उन्हें रास्ते में एक बहुत बड़ा वानर दिखाई दिया भीम उनके तेज को देखते ही समझ गए कि यह स्वयं हनुमान है |
हनुमान जी तालाब के बिल्कुल सामने लेटे थे और उनकी बड़ी सी पूछने तालाब को लगभग चारों ओर से घेरा हुआ था भीम हनुमान जी की पूंछ को लांग करर नहीं जाना चाहते थे इसीलिए उन्होंने हनुमान जी से से आग्रह किया कि वह अपनी पूंछ को हटा ले लेकिन उस दौरान भगवान हनुमान अपनी आराधना में लीन थे इसलिए उन्होंने भीम की बात को नहीं सुना तब भीम ने दोबारा हनुमान से कहा कि मैं यहां से फूल लिए नहीं जाऊंगा या फिर आप मुझे मृत्यु दंड दे दें हनुमान जी ने जब यह बात सुनी तब उन्होंने कहा कि इसकी कोई जरूरत नहीं है तुम मेरी पूछको हटाकर आगे बढ़ सकते हो भीम को वैसे भी अपनी शक्तियों पर हमेशा से ही काफी भरोसा था इसीलिए हमने सोचा कि उनके लिए भगवान हनुमान की पूंछ को हटाना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन जब भीम ने हनुमान जी की पूंछ को हटाने यहां तक कि हिलाने की कोशिश की तो वह लाख कोशिशों के बाद भी नाकामयाब रहे इस घटना ने भीम का अपनी ताकत पर घमंड पूरी तरह तोड़ दिया और भीम हनुमान जी के चरणों में पड़ गए क्योंकि भीम समझ गए थे कि वह जिनसे अभी बात कर रहे हैं वह कोई साधारण देवता नहीं है जिसके बाद भीम ने हनुमान जी से उनको अपने असली रूप में आने की विनती की तब हनुमान जी ने अपने असली रूप में आकर भीम को आशीर्वाद दिया |
भगवान हनुमान ने एक छलांग में ही विशाल समुद्र को पार कर दिया
भगवान हनुमान के असली पैरों के निशान आपको याद है कि जब हम रामायण पढ़ते होगे या सुनते होगे तो उसमें एक जिक्र आता है कि जब भगवान हनुमान को उनकी शक्तियों का आभास कराया गया तब भगवान हनुमान इतने शक्तिशाली हो गए कि उन्होंने केवल एक छलांग में ही विशाल समुद्र को पार कर दिया आज भी कई बुद्धिजीवी इस बात को हजम नहीं कर पाते कि भगवान हनुमान इतने शक्तिशाली थे जिसके हमारे पास कई वैज्ञानिक सबूत भी हैं जिसमें से एक सबूत यह है कि जब रामायण के अनुसार माता सीता की खोज के लिए हनुमान ने समुद्र को लगते हुए छलांग लगाई तो उनका विशाल पाव सबसे पहले जिस जमीन पर पड़ा आज भी वहां उनके कई मीटर बड़े पैर के निशान मौजूद है जो जगह आज आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में है जहां जाकर आप भी हनुमान जी के पावन पैरों के निशान के दर्शन कर सकते हैं
भगवान हनुमान श्रीलंका में हर 41 साल बाद दर्शन देने आते है
श्रीलंका में हर 41 साल बाद दर्शन देते हैं कहा जाता है कि जब रामायण काल का अंत हुआ और प्रभु श्री राम अपना देह त्याग करके वैकुंठ धाम लौट गए तब काफी समय तक हनुमान श्रीलंका के जंगल में चले गए थे और वहां मतंग जन जाति के लोग के साथ मिलकर प्रभु श्री राम की आराधना किया करते थे यहां मतंग जनन जाति के लोग भी भगवान हनुमान की काफी सेवा किया करते थे जिसके बाद हनुमान ने भी उनकी सेवा से खुश होकर उन्हें ब्रह्म ज्ञान की जानकारी दी थी और उन्हें यह आशीर्वाद भी दिया कि वह उन्हें हर 41 साल बाद ब्रह्म ज्ञान देने आते रहेंगे कहा जाता है कि पिछली बार भगवान हनुमान श्रीलंका की इस जनजाति को ब्रह्म ज्ञान देने के लिए 2014 में आए थे और अब वह अगली बार 2055 में आएंगे |