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Kamakhya Temple : प्रसिद्घ धर्मस्थली कामाख्याधाम

Kamakhya Temple: Famous religious place Kamakhyadham
 
Kamakhya Temple: Famous religious place Kamakhyadham

(रीता मिश्रा-विनायक फीचर्स) प्रसिद्घ धर्मस्थली कामाख्या धाम, गुवाहाटी से तकरीबन दो किलोमीटर पूर्व में नीलांचल पर्वत पर स्थित है, जिसकी ऊंचाई 525 फीट है। कामाख्या मंदिर देश विदेश के पर्यटकों के लिए प्रसिद्घ धाम के रूप में प्रसिद्घ और सिद्घ है।
भगवान त्रिलोचन शिव के कन्धे से छिन्न-भिन्न होकर सती के अंग भिन्न-भिन्न स्थानों पर गिरे। ये स्थान तीर्थरूप में प्रसिद्घ हुए।

ये सभी सिद्घपीठ कहे जाते है। देवी इन स्थानों में विद्यमान रहती है, इस कारण ये सब सिद्घ पीठ माने जाते है। नीलाचंल पर्वत पर सती माता का योनिमण्डल कटकर, गिरकर पत्थर बन गया। इस शिला के स्पर्श मात्र से मनुष्य अमरत्व को प्राप्त कर ब्रह्मलोक में निवास कर अंत में मोक्ष लाभ करते है, ऐसा माना जाता है।


मान्यता है कि मंदिर की दीवारों पर चौसठ योगिनियां और अष्टादश भैरवों की मूर्ति खुदवाकर कामदेव ने इसे आनन्दाख्य मंदिर के नाम से प्रचारित किया। आज इस मंदिर के नीचे का भाग ही शेष रह गया है। कामरूप तथा कामाख्या पर्वत के चारों और अनेक तीर्थ स्थान है। इसमें उमानन्द, अश्क्रांत, मणिकणेश्वर, नवग्रह, उग्रतारा, वशिष्ठाश्रम, पाण्डुनाथ और हथग्रीव आदि प्रसिद्घ है।


कामाख्या देवी के समीप ही उत्तर की ओर सौभाग्य कुण्ड है, सर्वप्रथम तीर्थयात्री इसी सौभाग्यकुण्ड में स्नान कर मंदिर में प्रवेश करते है। कामाख्या मंदिर, विशिष्ठ शिलापीठ के ऊपर है यहां पाताल से निरन्तर जल निकलता रहता है। यही कामाख्या योनिमण्डल है। जिसका परिमाण एक हाथ लम्बा तथा बारह अंगुल चौड़ा है मातृअंग होने के कारण इसका आधा भाग सोने की टोप से ढ़का रहता है और आधे भाग को भी वस्त्र, पुष्प माल्यादि से सुशोभित रखा जाता है। कामाख्या में कुमारी पूजा का अत्यधिक महत्व है। कुमारी पूजा करने से सम्पूर्ण देवी, देवताओं की पूजा का फल प्राप्त होता है। प्रतिवर्ष देवी मंदिर में विभिन्न पर्वो के उपलक्ष्य में उत्सव पूजा आदि कार्य बड़े समारोह के साथ अनुष्ठित होते है, जिसमें 'अम्बुवासी' मेला प्रसिद्घ है। आषाढ़ महीने में मृगशिरा नक्षत्र के तृतीय चरण बीत जाने पर चतुर्थ चरण में आद्रा नक्षत्र के प्रथम पाद के मध्य में देवी मां ऋतुवती हुई थी, इसी समय पांच दिनों का यह अम्बुवासी मेला लगता है।


तीन दिन तक मंदिर का द्वार बंद रहता है, चौथे दिन कपाट खुलने पर यात्रियों को दर्शन करने दिया जाता है। इस अवसर पर देश-विदेश से भारी संख्या में साधु, महात्मा, औघड़ एवं तांत्रिक एकत्रित होकर अपनी तंत्र विद्या की साधना करते है। जिनके ठहरने तथा खाने-पीने के लिए अनेक स्वयंसेवी सस्थायें निरन्तर कार्यरत रहती है। प्राचीन काल में यह ज्योतिष का प्रमुख केन्द्र माना जाता था। कामाख्या मंदिर के पास ही पूजा पाठ की सभी सामग्रियां उपलब्ध हो जाती है।

होटल, फल-फूल तथा मिठाईं की दुकानें भी है। इसके अतिरिक्त पर्वत के ऊपर पर्यटकों के रहने, खाने तथा अन्य सभी सुख-सुविधाओं का भी उचित प्रबंध नगर-निगम द्वारा किया जाता है। जिससे यात्रियों को असुविधा नहीं होती है। यहां यात्रियों के आवागमन की सुविधाएं भी पर्याप्त है जिससे असुविधा का प्रश्न ही नहीं उठता। इस प्रकार जगन्माता कामाख्या देवी का मंदिर सभी दृष्टियों से मनोरम तथा उपयुक्त फलदायक है।जो व्यक्ति भक्ति भाव से योनिमण्डल के दर्शन-स्पर्शन करके जलपान करते हैं, वे देवऋण, पितृऋण से मुक्त हो परम धाम को प्राप्त होते है। कोटि गोदान करने से जो फल मनुष्य को मिलता है वही फल कामाख्या देवी की पूजा करने से प्राप्त होता है। (विनायक फीचर्स

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