kavad yatra kya hoti hai : कावड़ यात्रा क्यों निकालते हैं? जानिए
कांवड़िये गंगा जल को कांवड़ में भरकर शिवलिंग पर चढ़ाते
भगवान शिव की आराधना : कांवड़ यात्रा का मुख्य उद्देश्य भगवान शिव की आराधना करना है। कांवड़िये गंगा जल को कांवड़ में भरकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं, जो कि भगवान शिव को प्रसन्न करने का एक तरीका माना जाता है।
पापों का नाश : हिंदू मान्यता के अनुसार, गंगा जल को पवित्र और पापों को धोने वाला जल माना जाता है। कांवड़िये यह मानते हैं कि गंगा जल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाने से उनके पाप धुल जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
धार्मिक सेवा कांवड़ यात्रा एक प्रकार की धार्मिक सेवा और समर्पण है। कांवड़िये बिना किसी स्वार्थ के कठिन परिस्थितियों में लंबी दूरी तय करते हैं, जो कि उनके तप, धैर्य और भक्ति को प्रदर्शित करता है।
कांवड़ियों के समूह : कांवड़ियों के समूह एक साथ चलते हैं, एक-दूसरे की मदद करते हैं, और सामूहिक रूप से भगवान शिव की आराधना करते हैं।
कांवड़ यात्रा के दौरान, कांवड़िये कांवड़ को अपने कंधों पर उठाते हैं और इसे जमीन पर नहीं रखते। यह उनके समर्पण और धार्मिक अनुशासन का प्रतीक है। कांवड़ यात्रा का आयोजन उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों में बड़े पैमाने पर होता है, और इस दौरान श्रद्धालु भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए लंबी यात्राएँ करते हैं।
भगवान शिव और समुद्र मंथन
एक प्रमुख कथा के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया था, तब उसमें से कई अमूल्य वस्तुएँ निकली थीं, जिनमें विष भी शामिल था। इस विष को देखकर सभी देवता चिंतित हो गए थे। भगवान शिव ने इस विष को पी लिया था और इसे अपने कंठ में धारण कर लिया, जिससे उनका कंठ नीला हो गया और वे "नीलकंठ" कहलाए। भगवान शिव को इस विष के प्रभाव से राहत दिलाने के लिए, उनके भक्त गंगा जल लेकर आए और उनसे भगवान शिव का अभिषेक किया। यह माना जाता है कि कांवड़ यात्रा इसी घटना से प्रेरित है, जिसमें श्रद्धालु गंगा जल लेकर शिवलिंग का अभिषेक करते हैं।