केदारेश्वर महादेव: दर्शन मात्र से तीन पीढ़ियों का उद्धार
Kedareshwar Mahadev: Salvation of three generations by just seeing him
Wed, 16 Jul 2025
(लेखिका: अंजनी सक्सेना – विभूति फीचर्स)
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित केदारनाथ धाम, भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और चार धाम यात्रा का एक प्रमुख केंद्र भी है। यह पवित्र स्थान “केदारखंड” के नाम से भी प्रसिद्ध है। मान्यता है कि भगवान विष्णु की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर शिव यहां ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। केदारनाथ मंदिर में भगवान शिव की पीठ की पूजा होती है, और इसके चारों ओर स्थित अन्य शिव मंदिरों को पंच केदार कहा जाता है।
नर-नारायण की तपस्या और शिव का अवतरण
शिव महापुराण के अनुसार, भगवान विष्णु ने नर और नारायण के रूप में बद्रिकाश्रम में तपस्या की थी। वे भगवान शिव की आराधना में लीन रहे, और उनकी कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर शिव प्रकट हुए। जब नर-नारायण ने उनसे लोक कल्याण हेतु उसी स्थान पर विराजमान रहने का अनुरोध किया, तो भगवान शिव ने उसे स्वीकार कर हिमालय के केदार क्षेत्र में ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थान ग्रहण किया।
"इत्युक्तस्य तदा ताभ्या केदारे हिमसंश्रये।
स्वयं च शकरस्तस्थौ ज्योतीरूपो महेश्वरः ॥"
(कोटिरुद्रसंहिता, श्रीशिवमहापुराण)
महाभारत के पांडवों की प्रायश्चित यात्रा
महाभारत युद्ध के बाद जब पांडव अपने परिजनों की हत्या के पश्चात ग्लानि और पश्चाताप से घिर गए, तो ऋषियों ने उन्हें भगवान शिव की शरण में जाने की सलाह दी। किंतु शिव उन पर अप्रसन्न थे और दर्शन नहीं देना चाहते थे। वे काशी से कैलाश और फिर केदार क्षेत्र तक उनसे दूर होते गए। अंततः केदार में उन्होंने महिष (भैंसे) का रूप धारण किया, लेकिन भीम ने उन्हें पहचान लिया और पीछा करते हुए उनके कूबड़ को पकड़ लिया। तब भगवान शिव वहीं प्रकट हुए और पांडवों को दर्शन देकर उन्हें पापों से मुक्त कर दिया। कहा जाता है कि पांडवों ने ही केदारनाथ मंदिर का निर्माण कराया।
शिवमहापुराण के अनुसार, भगवान का महिष रूप का सिर नेपाल में और धड़ केदारनाथ में स्थित है।
केदार खंड की कथा: हिरण्याक्ष वध और शिव का वरदान
स्कंद पुराण के अनुसार, एक समय हिरण्याक्ष नामक दैत्य ने त्रिलोक पर अधिकार कर लिया था और देवताओं को स्वर्ग से निष्कासित कर दिया। हार से व्यथित इंद्र हिमालय के एकांत में मंदाकिनी नदी के किनारे शिव की तपस्या में लीन हो गए। वर्षों की साधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव भैंसे के रूप में प्रकट हुए और इंद्र से पूछा, “के दारयामि?” — ‘किसे डुबोऊं?’ इंद्र ने शिव को पहचानकर प्रार्थना की कि वे हिरण्याक्ष व अन्य दैत्यों का संहार करें।
शिव ने उनके अनुरोध पर दैत्यों का वध किया और इंद्र के निवेदन पर वहीं लिंग रूप में केदारेश्वर के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। उन्होंने एक पवित्र कुंड का निर्माण भी किया और कहा कि इस जल का दोनों हाथों से सेवन करने से श्रद्धालु की तीनों पीढ़ियाँ—मातृ, पितृ और स्वयं—मोक्ष को प्राप्त होती हैं।
तीर्थ विशेष: तीन पीढ़ियों के उद्धार का पवित्र स्थल
मान्यता है कि यदि कोई भक्त यहां पिंडदान करता है और गया में भी पिंडदान करता है, तो उसे ब्रह्मज्ञान एवं मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है। बाएं हाथ से कुंड का जल पीने से मातृ पक्ष, दाएं हाथ से पितृ पक्ष और दोनों हाथों से जल पीने से स्वयं का उद्धार होता है। शिव के इस दिव्य प्रश्न “के दारयामि?” के कारण यह क्षेत्र “केदार” कहलाया और आज भी “केदारखंड” नाम से प्रसिद्ध है।
केदारेश्वर: इच्छापूर्ति और कष्टनिवारण के देवता
ऐसा माना जाता है कि जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से भगवान केदारेश्वर की भक्ति करता है, उसे स्वप्न में भी किसी प्रकार का भय या कष्ट नहीं होता। देवाधिदेव महादेव के इस रूप की उपासना से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उन्हें जीवन में शांति व आध्यात्मिक संतुलन की प्राप्ति होती है।

