जानिए जन्म कुंडली में कारक, अकारक और मारक ग्रह की परिभाषा
डेस्क-जन्म कुंडली में ग्रहों को नैसर्गिक ग्रह विचार रूप से शुभ और अशुभ श्रेणी में विभाजित किया गया है। बृहस्पति, शुक्र, पक्षबली चंद्रमा और शुभ प्रभावी बुध शुभ ग्रह माने गये हैं और शनि, मंगल, राहु व केतु अशुभ माने गये हैं। सूर्य ग्रहों का राजा है और उसे क्रूर ग्रह की संज्ञा दी गई है। बुध, चंद्रमा, शुक्र और बृहस्पति क्रमशः उत्तरोत्तर शुभकारी हैं, जबकि सूर्य, मंगल, शनि और राहु अधिकाधिक अशुभ फलदायी हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार कुंडली के द्वादश भावों में षष्ठ, अष्टम और द्वादश भाव अशुभ (त्रिक) भाव हैं, जिनमें अष्टम भाव सबसे अशुभ है। षष्ठ से षष्ठ - एकादश भाव, तथा अष्टम से अष्टम तृतीय भाव, कुछ कम अशुभ माने गये हैं। अष्टम से द्वादश सप्तम भाव और तृतीय से द्वादश - द्वितीय भाव को मारक भाव और भावेशों को मारकेश कहे हैं। केंद्र के स्वामी निष्फल होते हैं परंतु त्रिकोणेश सदैव शुभ होते हैं। नैसर्गिक शुभ ग्रह केंद्र के साथ ही 3, 6 या 11 भाव का स्वामी होकर अशुभ फलदायी होते हैं। ऐसी स्थिति में अशुभ ग्रह सामान्य फल देते हैं।
अधिकांश शुभ बलवान ग्रहों की 1, 2, 4, 5, 7, 9 और 10 भाव में स्थिति जातक को भाग्यशाली बनाते हैं। 2 और 12 भाव में स्थित ग्रह अपनी दूसरी राशि का फल देते हैं। शुभ ग्रह वक्री होकर अधिक शुभ और अशुभ ग्रह अधिक बुरा फल देते हैं राहु व केतु यदि किसी भाव में अकेले हों तो उस भावेश का फल देते हैं। परंतु वह केंद्र या त्रिकोण भाव में स्थित होकर त्रिकोण या केंद्र के स्वामी से युति करें तो योगकारक जैसा शुभ फल देते हैं। लग्न कुंडली में उच्च ग्रह शुभ फल देते हैं, और नवांश कुंडली में भी उसी राशि में होने पर ‘वर्गोत्तम’ होकर उत्तम फल देते हैं। बली ग्रह शुभ भाव में स्थित होकर अधिक शुभ फल देते हैं। पक्षबलहीन चंद्रमा मंगल की राशियों, विशेषकर वृश्चिक राशि में (नीच होकर) अधिक पापी हो जाता है। चंद्रमा के पक्षबली होने पर उसकी अशुभता में कमी आती है। स्थानबल हीन ग्रह और पक्षबल हीन चंद्रमा अच्छा फल नहीं देते।
ग्रहों को नैसर्गिक ग्रह विचार रूप से शुभ और अशुभ श्रेणी में विभाजित किया गया है। बृहस्पति, शुक्र, पक्षबली चंद्रमा और शुभ प्रभावी बुध शुभ ग्रह माने गये हैं और शनि, मंगल, राहु व केतु अशुभ माने गये हैं। सूर्य ग्रहों का राजा है और उसे क्रूर ग्रह की संज्ञा दी गई है। बुध, चंद्रमा, शुक्र और बृहस्पति क्रमशः उत्तरोत्तर शुभकारी हैं, जबकि सूर्य, मंगल, शनि और राहु अधिकाधिक अशुभ फलदायी हैं। कुंडली के द्वादश भावों में षष्ठ, अष्टम और द्वादश भाव अशुभ (त्रिक) भाव हैं, जिनमें अष्टम भाव सबसे अशुभ है। षष्ठ से षष्ठ - एकादश भाव, तथा अष्टम से अष्टम तृतीय भाव, कुछ कम अशुभ माने गये हैं। अष्टम से द्वादश सप्तम भाव और तृतीय से द्वादश - द्वितीय भाव को मारक भाव और भावेशों को मारकेश कहे हैं। केंद्र के स्वामी निष्फल होते हैं परंतु त्रिकोणेश सदैव शुभ होते हैं। नैसर्गिक शुभ ग्रह केंद्र के साथ ही 3, 6 या 11 भाव का स्वामी होकर अशुभ फलदायी होते हैं। ऐसी स्थिति में अशुभ ग्रह सामान्य फल देते हैं।
अधिकांश शुभ बलवान ग्रहों की 1, 2, 4, 5, 7, 9 और 10 भाव में स्थिति जातक को भाग्यशाली बनाते हैं। 2 और 12 भाव में स्थित ग्रह अपनी दूसरी राशि का फल देते हैं। शुभ ग्रह वक्री होकर अधिक शुभ और अशुभ ग्रह अधिक बुरा फल देते हैं राहु व केतु यदि किसी भाव में अकेले हों तो उस भावेश का फल देते हैं। परंतु वह केंद्र या त्रिकोण भाव में स्थित होकर त्रिकोण या केंद्र के स्वामी से युति करें तो योगकारक जैसा शुभ फल देते हैं। लग्न कुंडली में उच्च ग्रह शुभ फल देते हैं, और नवांश कुंडली में भी उसी राशि में होने पर वर्गोत्तम’ होकर उत्तम फल देते हैं। बली ग्रह शुभ भाव में स्थित होकर अधिक शुभ फल देते हैं। पक्षबलहीन चंद्रमा मंगल की राशियों, विशेषकर वृश्चिक राशि में (नीच होकर) अधिक पापी हो जाता है। चंद्रमा के पक्षबली होने पर उसकी अशुभता में कमी आती है। स्थानबल हीन ग्रह और पक्षबल हीन चंद्रमा अच्छा फल नहीं देते। कारक ग्रह: ‘कारक’ ग्रह के निर्धारण की विभिन्न विधियां इस प्रकार हैं:*
1. महर्षि पाराशर तथा अन्य आचार्यों ने द्वादश भावों के कारक ग्रह इस प्रकार बताए हैं। प्रथम भाव- सूर्य, द्वितीय भाव-बृहस्पति, तृतीय भाव- मंगल, चतुर्थ भाव - चंद्रमा व बुध, पंचम भाव- बृहस्पति, षष्ठ भाव- मंगल व शनि, सप्तम भाव - शुक्र, अष्टम भाव- शनि, नवम भाव - बृहस्पति व सूर्य, दशम भाव- सूर्य, बुध, बृहस्पति व शनि, एकादश भाव- बृहस्पति और द्वादश भाव- शनि।
2. स्थिर कारक: सूर्य- पिता का, चंद्रमा-माता का, बृहस्पति-गुरु व ज्ञान का, शुक्र पत्नी व सुख का, बुध-विद्या का, मंगल भाई का, शनि नौकर का और राहु म्लेच्छ का स्थिर कारक है।
3. जैमिनी चर कारक: यह ग्रहों के अंशों पर निर्भर करता है। सर्वाधिक अंश वाले ग्रह को आत्म कारक उससे कम अंश वाले ग्रह को अमात्य कारक उससे कम अंश वाले को भ्रातृ कारक उससे कम अंश वाले को पुत्र कारक और सबसे कम अंश वाले ग्रह को दारा कारक या पत्नी कारक की संज्ञा दी जाती है। आत्म और अमात्य कारक जातक का भला करते हैं। राहु/केतु कोई कारक नहीं होते। यदि लग्नेश ही आत्म कारक हो तो उसकी दशा बहुत शुभकारी होती है। आत्म कारक ग्रह यदि अष्टमेश भी हो तो उसके शुभ फल में कमी आती है।
