Kottankulangara Devi Temple : इस मंदिर में पुरुष क्यों जाते है साडी पहनकर पूजा करने जानिए 

Kottankulangara Devi Temple : Know why men go to this temple to worship wearing a sari
Kottankulangara Devi Temple : इस मंदिर में पुरुष क्यों जाते है साडी पहनकर पूजा करने जानिए 
Kottankulangara Devi Temple : कोल्लम के चवरा में प्रसिद्ध कोट्टनकुलंगरा देवी मंदिर  में पारंपरिक अनुष्ठानों के हिस्से के रूप में त्योहार के आखिरी दो दिनों के दौरान हजारों पुरुष महिलाओं के रूप में तैयार होते हैं। सबसे अच्छा मेकअप करने वाले पुरुषों को पुरस्कार भी दिया जाता है। आपको यकीन करना मुश्किल होगा कि इस वीडियो में सभी महिलाएं पुरुष हैं लेकिन यह सच है। 


कोल्लम के चवरा स्थित कोट्टनकुलंगरा देवी मंदिर में पुरुषों का साड़ी पहनकर जाने की परंपरा अनूठी और खास है। यह परंपरा मंदिर के वार्षिक उत्सव "कोट्टनकुलंगरा चाम्याविलक्कु" के दौरान निभाई जाती है। इसका मुख्य कारण देवी के प्रति श्रद्धा और भक्ति प्रदर्शित करना है। यहाँ पुरुष देवी के स्त्री रूप में दर्शन करते हैं, और साड़ी पहनकर स्वयं को स्त्री रूप में प्रस्तुत कर देवी की कृपा प्राप्त करने की कोशिश करते हैं।

यह परंपरा सदियों पुरानी है और इसमें सभी आयु के पुरुष भाग लेते हैं। साड़ी पहनकर देवी की पूजा करना इस मान्यता पर आधारित है कि ऐसा करने से देवी प्रसन्न होती हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं। इसके पीछे यह भी भावना है कि स्त्री रूप में देवी के समक्ष प्रस्तुत होकर पुरुष अपने अहंकार को त्यागते हैं और विनम्रता तथा श्रद्धा से भर जाते हैं। इस मंदिर की विशेषता यह भी है कि यहाँ न तो मूर्ति है और न ही गर्भगृह; बल्कि एक पत्थर पर देवी की पूजा की जाती है, जिसे देवी के रूप में माना जाता है।

कोट्टंकुलंगारा मंदिर के पीछे की कहानी क्या है?

प्राचीन समय में, कोल्लम के चवरा क्षेत्र में कुछ ग्वाले (गाय चराने वाले लड़के) अपने मनोरंजन के लिए एक अनोखा खेल खेला करते थे, जिसमें वे महिलाएँ बनने की नकल करते और देवी के रूप में पूजा करते थे। यह खेल उनके लिए महज एक मस्ती थी, लेकिन उनमें से एक बार कुछ लड़कों ने एक बड़े पत्थर को देवी का प्रतीक मानकर उसकी पूजा की। पूजा के दौरान उन्हें दिव्य अनुभूति हुई और एक चमत्कारिक शक्ति का आभास हुआ। इस घटना से उन लड़कों को यह महसूस हुआ कि उस स्थान पर कोई विशेष आध्यात्मिक शक्ति है।

यह अनुभव गाँव में फैल गया, और बाद में गाँव के बड़े-बुजुर्गों और अन्य लोगों ने उस स्थान को पवित्र माना और वहाँ देवी की पूजा आरंभ की। माना जाता है कि स्वयं देवी ने उन ग्वालों को दर्शन दिया और उस स्थान को अपना निवास स्थान बनाया। धीरे-धीरे यह स्थान कोट्टनकुलंगारा देवी के मंदिर के रूप में प्रसिद्ध हो गया।

मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ देवी को मूर्ति के रूप में नहीं, बल्कि एक पवित्र पत्थर के रूप में पूजा जाता है। मंदिर का प्रमुख उत्सव "कोट्टनकुलंगारा चाम्याविलक्कु" है, जिसमें पुरुष श्रद्धालु देवी को प्रसन्न करने के लिए साड़ी पहनकर पूजा करते हैं। यह परंपरा इस मान्यता पर आधारित है कि देवी स्त्री रूप में अधिक प्रसन्न होती हैं और उनके आशीर्वाद से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं


 

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