लोकहितकारी त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग: आस्था, इतिहास और आध्यात्मिक ऊर्जा का संगम

Trimbakeshwar Jyotirlinga for the welfare of people: A confluence of faith, history and spiritual energy
 
Trimbakeshwar Jyotirlinga for the welfare of people: A confluence of faith, history and spiritual energy
लेखिका: अंजनी सक्सेना - विभूति फीचर्स)
भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक — त्र्यंबकेश्वर — न केवल उनकी दिव्य उपस्थिति का प्रतीक है, बल्कि यह स्थल लोक कल्याण की भावना से भी ओतप्रोत है। यह पवित्र ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक जनपद स्थित ब्रह्मगिरि पर्वत की गोद में बसे त्र्यंबक गांव में स्थित है।
ज्योतिर्लिंगों को शिव के वे दिव्य रूप माना जाता है जो स्वयंभू अर्थात स्वयंसिद्ध रूप में प्रकट हुए हैं। त्र्यंबकेश्वर भी इसी दिव्यता का प्रतीक है, जिसकी उत्पत्ति धार्मिक ग्रंथों के अनुसार गौतम ऋषि की कठोर तपस्या और क्षेत्रीय जल संकट से मुक्ति के प्रयत्नों से जुड़ी हुई है।

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त्र्यंबकेश्वर की पौराणिक पृष्ठभूमि

शिव महापुराण में वर्णित कथा के अनुसार, प्राचीन समय में ब्रह्मगिरि पर्वत क्षेत्र घोर जल संकट से जूझ रहा था। वनवासी ऋषि-मुनियों के लिए जल प्राप्त करना अत्यंत कठिन हो गया था। जलस्रोत सीमित होने के कारण, उनके बीच कई बार विवाद भी उत्पन्न होने लगे।
एक बार जब गौतम ऋषि के सेवक पानी लेने पहुंचे, तो अन्य ऋषियों की पत्नियों ने उन्हें डांटकर लौटा दिया। इस पर देवी अहिल्या स्वयं गईं और जल भरवाकर ले आईं। इस घटना से अन्य ऋषि-कुलों में असंतोष फैल गया। उसी समय दुर्भाग्यवश एक गाय की मृत्यु गौतम ऋषि द्वारा फेंके गए तिनके से हो गई, जिसे ब्रह्महत्या का दोष मान लिया गया।
ऋषियों ने गौतम ऋषि से कहा कि इस पाप से मुक्त होने के लिए उन्हें गंगा को इस स्थान पर लाना होगा। तब गौतम ऋषि ने भगवान शंकर की घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा। गौतम ऋषि ने क्षेत्र के जल संकट से मुक्ति हेतु गंगा को वहाँ अवतरित करने की प्रार्थना की।
गंगा ने आने की स्वीकृति दी, परंतु एक शर्त के साथ — कि भगवान शिव को भी उसी स्थान पर विराजमान होना होगा। शिव सहमत हो गए और ब्रह्मा, विष्णु और महेश — तीनों स्वरूपों के साथ त्र्यंबकेश्वर के रूप में स्थायी रूप से विराजित हो गए। वहीं, गंगा भी गोदावरी के रूप में प्रकट हुईं।

त्र्यंबकेश्वर का वर्तमान स्वरूप

आज त्र्यंबकेश्वर मंदिर, नासिक के त्र्यंबक गांव में स्थित है। इस मंदिर की सबसे विशेष बात यह है कि यहां शिवलिंग एक नहीं, बल्कि तीन पिंडियों के रूप में है — जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक माने जाते हैं। मंदिर के गर्भगृह में जलहरी सदैव जल से भरी रहती है, जो इस स्थान की आध्यात्मिक ऊर्जा और प्राकृतिक दिव्यता का प्रमाण है।
इसी पवित्र स्थान से गोदावरी नदी का उद्गम होता है, जिसे गौतमी नदी भी कहा जाता है। कहा जाता है कि गौतम ऋषि ने अपने आश्रम में इसी पवित्र जल से यज्ञ, हवन, उपासना और खेती का कार्य आरंभ किया, जिससे वहां की भूमि हरी-भरी हो गई और सूखे की समस्या भी समाप्त हो गई।

श्रद्धा और साधना का केंद्र

आज भी त्र्यंबकेश्वर का क्षेत्र भरपूर वर्षा वाला इलाका है। मंदिर परिसर में स्थित कुशावर्त कुंड में स्नान करना पुण्यदायक माना जाता है। यह स्थान नारायण बलि, नागबलि और कालसर्प दोष निवारण जैसी विशेष पूजाओं के लिए देशभर में प्रसिद्ध है। श्रद्धालु यहाँ अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और पारिवारिक दोषों से मुक्ति हेतु पूजा-अनुष्ठान करते हैं।

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