MahaShivaratri 2025 : महाशिवरात्रि पर दूल्हा बनकर सजते-संवरते हैं महाकाल

MahaShivaratri 2025: On Mahashivratri, Mahakal dresses up as a groom
 
MahaShivaratri 2025: On Mahashivratri, Mahakal dresses up as a groom

(देशना जैन-विनायक फीचर्स) उज्जयिनी धर्म और कर्म की वह पौराणिक नगरी है जहां सनातन धर्म की परम्पराएँ जीवंत हो उठती है। पौराणिक तथ्य और कथ्य उज्जयिनी के प्राण हैं। हजारों वर्षो की प्राचीन परम्पराएँ कितने ही राजा महाराजाओं के चले जाने के बाद भी आज तक निर्बाध रूप से चल रही है। ये परम्पराएँ आस्था और भक्ति का अनूठा संगम है। जहां भक्त के वशीभूत भगवान भी सामान्य मनुष्य जीवन की परम्परा का निर्वाहन करते है और भक्तों को उनकी इच्छा अनुरूप दर्शन भी देते है।

MahaShivaratri 2025: On Mahashivratri, Mahakal dresses up as a groom

भूतभावन आदिदेव महादेव के महाकाल रूप में अवंतिकापुरी को पावन करते है। वे महाकाल भी अपने विवाह की वर्षगांठ याने  शिवरात्रि के अवसर पर भक्तों के वशीभूत हो जाते है। हर वर्ष शिव नवरात्रि पर नौ दिन तक महाकाल दूल्हे के रूप में सजे संवरे नज़र आते है। शिव नवरात्रि के दौरान महाकालेश्वर के दरबार की छटा निराली होती है। मंदिर नौ दिवसीय उत्सव का साक्षी बनता है, जिसमें भगवान महाकाल का दिव्य श्रृंगार और भव्य पूजन संपन्न होता है। यह आयोजन फाल्गुन कृष्ण पंचमी से महाशिवरात्रि के अगले दिन तक चलता है, जो शिवभक्तों के लिए असीम श्रद्धा और आध्यात्मिकता का केंद्र बन जाता है।

शिव नवरात्रि की पौराणिक महत्ता

मान्यता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने हेतु शिव नवरात्रि के दौरान कठिन तपस्या और आराधना की थी। इसी कारण श्रद्धालु इस अवधि में उपवास, पूजा-अर्चना और साधना कर भगवान शिव को प्रसन्न करके उनकी कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।

महाकाल का दिव्य श्रृंगार

महाशिवरात्रि को भगवान शिव एवं माता पार्वती के विवाह का पर्व माना जाता है। जिस प्रकार विवाह से पहले वर को हल्दी लगाई जाती है, उसी प्रकार महाकाल मंदिर में नौ दिनों तक भगवान शिव का विशेष श्रृंगार किया जाता है। वैसे तो भगवान शिव को हल्दी लगाना निषेध हैं। परंतु इस अवधि में उन्हे हल्दी, चंदन, केसर का उबटन, सुगंधित इत्र, औषधि और फलों के रस से स्नान कराया जाता है। इसके बाद आकर्षक वस्त्र, आभूषण, मुकुट, छत्र, और विभिन्न मुखारविंदों से भगवान महाकाल को अलंकृत किया जाता है।

पूजन विधि और अनुष्ठान

शिव नवरात्रि के पहले दिन पुजारियों द्वारा नैवेद्य कक्ष में भगवान चंद्रमौलेश्वर और कोटेश्वर महादेव की पूजा के साथ संकल्प लिया जाता है। प्रतिदिन ब्राह्मणों द्वारा पंचामृत अभिषेक और रुद्रपाठ किया जाता है। इसके बाद भगवान महाकाल का विशेष श्रृंगार होता है, जिसमें विभिन्न स्वरूपों में भगवान के दर्शन किए जाते हैं:

1.  चंदन श्रृंगार

2.  शेषनाग श्रृंगार

3. घटाटोप मुखारविंद श्रृंगार

4. छत्रधारी श्रृंगार

5. होलकर मुखारविंद श्रृंगार

6. मनमहेश स्वरूप श्रृंगार

7. उमा-महेश स्वरूप श्रृंगार

8. शिव तांडव श्रृंगार

9. सप्तधान श्रृंगार

प्रतिदिन प्रातः 9 बजे से दोपहर 1 बजे तक विशेष पूजन होता है।

भस्म आरती एवं हरिकथा

शिवरात्रि के दिन भस्म आरती दोपहर में संपन्न होती है, जो वर्ष में केवल एक बार होती है। शिव नवरात्रि के दौरान भगवान महाकाल हरिकथा श्रवण करते हैं, जिसमें मंदिर परिसर में 113 वर्षों से नारदीय संकीर्तन की परंपरा चली आ रही है। मंदिर प्रांगण में आकर्षक विद्युत सजावट और पुष्प अलंकरण किया जाता है।

महाशिवरात्रि एवं सेहरा दर्शन

महाशिवरात्रि के दिन भगवान महाकाल को विशेष जलाभिषेक और पूजन के बाद अर्धरात्रि में महानिशा काल की विशेष पूजा की जाती है। अगले दिन भगवान का सेहरा दर्शन होता है, जिसमें सवा मन पुष्पों एवं फलों से अलंकृत मुकुट, छत्र, कुंडल, तिलक, त्रिपुंड, रुद्राक्ष की मालाओं से भगवान महाकाल को श्रृंगारित किया जाता है। भक्तगण इस दिव्य स्वरूप के दर्शन कर आनंद से अभिभूत हो जाते हैं।

श्रद्धालुओं की आस्था

भगवान महाकाल के दिव्य दर्शन से भक्तगण आत्मिक शांति और आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति करते हैं। इस दिव्य दर्शन के बाद श्रद्धालु यहां से लौटने का मन नहीं करते और उनके मन में भगवान महाकाल की कृपा प्राप्त करने की प्रबल भावना जाग्रत होती है।(विनायक फीचर्स)

Tags