मंगलदेव ने निभाया था भाई का कर्तव्य, जब श्रीराम-सीता विवाह में भाई की रस्म अटकी

देवताओं में महादेव-पार्वती के बाद, श्रीराम और देवी सीता का विवाह संभवतः सबसे अधिक प्रसिद्ध और पूजनीय माना जाता है। इस विवाह की विशेषता यह थी कि इसे देखने के लिए त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, और रूद्र) सहित लगभग सभी प्रमुख देवता किसी न किसी रूप में उपस्थित थे, जिनमें स्वयं ब्रह्महर्षि वशिष्ठ और राजर्षि विश्वामित्र भी शामिल थे।
कहा जाता है कि तीनों देव स्वयं ब्राह्मणों के वेश में इस दिव्य विवाह के साक्षी बनने आए थे, जिसे देखने का मोह कोई भी नहीं छोड़ना चाहता था।
भाई की रस्म पर आया विलम्ब
जब चारों भाइयों में श्रीराम का विवाह सबसे पहले हो रहा था, तभी विवाह की एक महत्वपूर्ण विधि आई। यह विधि आज भी उत्तर भारत, विशेषकर बिहार और उत्तर प्रदेश में प्रचलित है, जिसमें कन्या का भाई उसके आगे-आगे चलते हुए लावा (खील) का छिड़काव करता है।
विवाह पुरोहित ने जब इस प्रथा के लिए कन्या के भाई का आह्वान किया, तो दरबार में चर्चा शुरू हो गई। समस्या यह थी कि उस समय वहाँ ऐसा कोई नहीं था जो साक्षात माता सीता के भाई की भूमिका निभा सके। अपनी पुत्री के विवाह में इस प्रकार विलम्ब होता देख कर पृथ्वी माता भी दुखी हो गईं।
मंगलदेव ने ग्रहण किया भाई का दायित्व
चर्चा चल ही रही थी कि अचानक एक श्यामवर्ण का तेजस्वी युवक उठा और उसने इस विधि को पूर्ण करने के लिए आज्ञा माँगी। वास्तव में, वह स्वयं मंगलदेव थे, जो नवग्रहों सहित वेश बदलकर श्रीराम का विवाह देखने आए थे। देवी सीता का जन्म पृथ्वी से हुआ था, और मंगलदेव भी पृथ्वी के पुत्र माने जाते हैं। इस नाते, वे देवी सीता के भाई भी लगते थे। पृथ्वी माता के संकेत से ही वह इस रस्म को पूर्ण करने के लिए आगे आए। एक अनजान व्यक्ति को इस रस्म को निभाने के लिए आगे आते देख, राजा जनक दुविधा में पड़ गए। बिना कुल, गोत्र और परिवार के परिचय के वह उन्हें अपनी पुत्री के भाई के रूप में कैसे स्वीकार कर सकते थे!
महर्षि वशिष्ठ और विश्वामित्र ने दी अनुमति
राजा जनक द्वारा परिचय, कुल और गोत्र पूछे जाने पर, मंगलदेव ने मुस्कुराते हुए कहा, “हे महाराज जनक! मैं अकारण ही आपकी पुत्री के भाई का कर्तव्य पूर्ण करने को नहीं उठा हूँ। आप निश्चिंत रहें, मैं इस कार्य के सर्वथा योग्य हूँ। अगर आपको कोई शंका हो, तो आप महर्षि वशिष्ठ एवं विश्वामित्र से इस विषय में पूछ सकते हैं।
उनकी तेजयुक्त और आत्मविश्वास भरी वाणी सुनकर राजा जनक ने महर्षियों से पूछा। चूँकि गुरुजन सब कुछ जानते थे, उन्होंने सहर्ष इसकी आज्ञा दे दी।इस प्रकार, गुरुजनों से आज्ञा पाने के बाद, मंगलदेव ने देवी सीता के भाई के रूप में सारी रस्में निभाईं और विवाह को निर्विघ्न संपन्न कराया। यह अद्भुत कथा, जिसका उल्लेख कम्ब रामायण और रामचरितमानस के कुछ संस्करणों में भी मिलता है, एक भाई द्वारा अपनी बहन के प्रति निभाए गए उत्तरदायित्वों और प्रेम का एक अनूठा उदाहरण है।
