पिथौरागढ़ का पौराणिक शक्तिपीठ: माता अम्बिका देवी मंदिर

Pithoragarh's mythological Shaktipeeth: Mata Ambika Devi Temple
 
Pithoragarh's mythological Shaktipeeth: Mata Ambika Devi Temple

रमाकान्त पंत - विभूति फीचर्स)

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जनपद की गंगोलीहाट तहसील में स्थित कोठेरा गांव का माता अम्बिका देवी मंदिर एक अत्यंत प्राचीन और श्रद्धा से पूजित आध्यात्मिक स्थल है। सुन्दर पर्वतीय श्रृंखलाओं के बीच बसे इस मंदिर का प्राकृतिक वैभव और आध्यात्मिक आभामंडल यहां आने वाले श्रद्धालुओं को सहज ही आकर्षित करता है। यह मंदिर आदि शक्ति माँ दुर्गा के अम्बिका स्वरूप को समर्पित है, जिनकी उपासना शक्ति और चेतना के प्रतीक के रूप में की जाती है।

शास्त्रों और पुराणों में माँ अम्बिका का महत्व

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, माँ अम्बिका को देवी दुर्गा का एक सशक्त रूप माना गया है, जिन्हें आदिशक्ति, ब्रह्मांड की जननी, और संसार की रक्षिका के रूप में पूजा जाता है। इस पावन स्थल पर देवी की पिंडी रूप में पूजा होती है, जबकि साकार रूप में देवी आठ भुजाओं वाली शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इनके हाथों में विभिन्न अस्त्र-शस्त्र शोभायमान हैं, जो इनके रक्षण एवं संहार के स्वरूप को दर्शाते हैं।

पुराणों में वर्णित एक प्रसंग के अनुसार, हाट कालिका के दर्शन के पश्चात माँ अम्बिका के दर्शन और पूजन का विशेष महत्व है। इसे सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाला माना गया है। देवी को अम्बा, भगवती, ललिताम्बिका, भवानी और महामाया जैसे अनेक नामों से जाना जाता है।

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शैल पर्वत और देवी की स्तुति

महर्षि वेदव्यास ने ‘शैल’ पर्वत को देवी की तपोभूमि और निवास स्थान बताया है। यही वह स्थान है जहाँ माँ कालिका ने कौशिकी रूप में चण्ड-मुण्ड का वध और रक्तबीज के रक्तपान द्वारा संहार किया था। यही वह शक्तिस्थल है जहाँ देवी ने दैत्यों का संहार कर देवताओं को संकट से मुक्त किया। देवी की स्तुति मानसखण्ड में अत्यंत भावपूर्ण शब्दों में की गई है, जिसके अनुसार –

“ततो अम्बिका महादेवी शैलो देश निवासिनिम्, सेवितां देवराजेन चन्द्राबिम्ब निभाननाम्।
सम्पूज्य विधिवद विप्रा गन्धपुष्पाक्षतैः शुभैः,
मानवोऽभीप्सितान् कामानवाप्नोति न संशयः॥”

इसका आशय है कि जो व्यक्ति विधिपूर्वक माँ अम्बिका का पूजन करता है, उसे निश्चित रूप से इच्छित फल की प्राप्ति होती है।

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एक विस्मृत तीर्थ जो ध्यानाकर्षण की प्रतीक्षा में है

माँ अम्बिका का यह शक्तिपीठ गंगोलीहाट से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान जहाँ एक ओर गहराई से आध्यात्मिक अनुभूति कराता है, वहीं मार्ग और आधारभूत सुविधाओं की कमी के कारण यह पौराणिक स्थल अपेक्षित पहचान नहीं पा सका है। आज आवश्यकता है कि इस दिव्य स्थल को तीर्थाटन के राष्ट्रीय मानचित्र पर उचित स्थान मिले।

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