नागचंद्रेश्वर मंदिर: जहां साल में सिर्फ एक दिन खुलते हैं कपाट

Nagchandreshwar Temple: Where the doors open only one day in a year
 
Nagchandreshwar Temple: Where the doors open only one day in a year

(अंजनी सक्सेना – विभूति फीचर्स)

भारत के धार्मिक परंपराओं में कई रहस्य और मान्यताएं छिपी होती हैं, लेकिन मध्यप्रदेश की पवित्र नगरी उज्जैन में स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर अपनी अनूठी विशेषता के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। इस मंदिर के कपाट सालभर में सिर्फ एक बार, नागपंचमी के दिन खुलते हैं। यह मंदिर उज्जैन के प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर के शिखर तल पर स्थित है, और इस एक दिन के लिए लाखों श्रद्धालु भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन को उमड़ पड़ते हैं।

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शिव परिवार नाग शैय्या पर

आमतौर पर भगवान विष्णु को शेषनाग की शैय्या पर विराजमान देखा जाता है, लेकिन नागचंद्रेश्वर मंदिर में भगवान शिव अपने संपूर्ण परिवार – माता पार्वती, गणेश और कार्तिकेय – के साथ सात फनों वाले नागराज की शैय्या पर विराजमान हैं। यह प्रतिमा ग्यारहवीं सदी की है जिसे नेपाल से लाकर यहाँ स्थापित किया गया था। प्रतिमा के ऊपर सूर्य और चंद्रमा की आकृति इसे और भी दिव्य बनाती है। मान्यता है कि ऐसा दृश्य विश्व में अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलता।

परंपरा और पूजा का विशेष क्रम

नागपंचमी के अवसर पर यहां त्रिकाल पूजा की जाती है – यह विशेष पूजा तीन समयों पर होती है:

  1. मध्यरात्रि की महानिर्वाणी पूजा

  2. दोपहर में शासन द्वारा की जाने वाली पूजा

  3. शाम को मंदिर समिति द्वारा आयोजित पूजा

इन तीनों पूजाओं के बाद, रात 12 बजे मंदिर के द्वार पुनः बंद कर दिए जाते हैं, जो अगली नागपंचमी पर ही खुलते हैं।

इतिहास और मान्यताएं

परमार वंश के राजा भोज ने 1050 ईस्वी के आसपास इस मंदिर का निर्माण करवाया था। बाद में सिंधिया वंश के राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल परिसर का पुनर्निर्माण कराया। स्कंद पुराण के अवंत्यखंड में इस मंदिर का उल्लेख मिलता है। पुराणों के अनुसार, नागराज तक्षक ने भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें अमरता का वरदान दिया और उज्जैन के महाकाल वन में वास का अधिकार भी प्रदान किया।

चूंकि नागराज तक्षक एकांत में शिव की आराधना करना चाहते थे, इसलिए भगवान शिव ने व्यवस्था की कि उनके मंदिर के द्वार वर्ष में केवल एक दिन, नागपंचमी पर ही खुलें, ताकि उनकी साधना में कोई विघ्न न आए।

महाकाल परिसर में दिव्य संरचना

महाकालेश्वर मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव अपने महाकाल स्वरूप में स्थित हैं। इनके ठीक ऊपर ओंकारेश्वर रूप में शिव विराजित हैं और इन दोनों के शीर्ष पर स्थित है नागचंद्रेश्वर मंदिर। इस दिव्य संरचना को देखने और अनुभव करने का सौभाग्य वर्ष में केवल एक बार ही मिलता है।

अद्वितीयता का प्रतीक

नागचंद्रेश्वर मंदिर सिर्फ एक आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि एक अनूठा अध्यात्मिक अनुभव है। यह मंदिर न केवल शिव और नागराज तक्षक की कथा को जीवंत करता है, बल्कि भारत की पुरातन परंपरा, शिल्पकला और आध्यात्मिक गहराई का प्रमाण भी प्रस्तुत करता है।

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