Topaz धारण करने कि विधी, लाभ और उपाय

 
Topaz धारण करने कि विधी, लाभ और उपाय

डेस्क -Topaz या पुखराज धारण करने कि विधी, लाभ और उपाय | Topaz या पुखराज एक बहु प्रचलित रत्न है और संसार की अनेक भाषाओं में इसका विवरण प्राप्त होता है।

हम जानते हैं कि मनुष्य के जीवन पर आकाशीय ग्रहों व उनकी बदलती चालों का प्रभाव ज़रूर से पड़ता है और ऐसे में यदि कोई मनुष्य अपनी जन्म-कुंडली में स्थित पाप व ग्रहों की मुक्ति अथवा अपने जीवन से संबंधित कई परेशानियों से छुटकारा पाना चाहते हैं तो उसे ज़रूर से पुखराज धारण करना चाहिए। बस इस बात का ध्यान रखें कि वह रत्न असली और दोष रहित होने के साथ-साथ पूर्ण विधि-विधान से धारण किया हुआ हो।

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की नवग्रहों में सबसे सम्माननीय एवं पूजनीय ग्रह बृहस्पति को देवताओं का गुरु होने का गौरव प्राप्त है। अपने ब्रह्मतेज एवं विदूषिता के लिए विख्यात बृहस्पति ग्रह को नवग्रहो में भी वैसा ही सम्मान प्राप्त है। ब्रह्माण्ड में बृहस्पति ग्रह के दर्शन जितनी तेजस्विता के साथ होते है, अपने ग्रहीय प्रभाव को भी उतनी ही प्रबलता से दिखाते हैं। जिस व्यक्ति की जन्म कुण्डली में बृहस्पति ग्रह शुभस्थिति में होता हैं, उस व्यक्ति को सुख सौभाग्य में कभी कमी नहीं रहती। परन्तु यदि यही बृहस्पति ग्रह निर्बल अथवा अशुभ स्थिति में आ जाए तो अनेक प्रकार की बाधायें एवं कष्टप्रद स्थितियाँ उत्पन्न कर देता हैं।
बृहस्पति ग्रह का प्रतिनिधि रत्न पुखराज है
  • बृहस्पति ग्रह का प्रतिनिधि रत्न पुखराज है।
  • यह एक खनिज पत्थर है और विश्व के अनेक भागों में पाया जाता है।
  • रासायनिक प्रयोगों से प्राप्त विश्लेषण से ज्ञात हुआ है कि इसमें एल्युमिनियम, हाइड्रोक्सिल एवं फ्लोरीन
  • जैसे तत्वों के मिश्रण की उपस्थित रहती है।
  • वैसे इसकी एक अन्य जाति भी पाई जाती है जो बालुका प्रधान होती है।
  • सिकता वर्ग का यह पुखराज कठोरता में कम, चिकना न होकर रूखा, खुरदरा और सामान्य चमक वाला होता है।
  • श्रेष्ठ पुखराज सफेद और पीले दोनों रंगों में प्राप्त किया जाता है।
  • इसमें सफेद पुखराज विशेष रूप से उत्तम माना जाता है।
  • संसार भर के कई देशों में यह रत्न उपलब्ध है अथवा पाया जाता है अतः देश काल की भिन्नता के आधार पर अन्य रंगों में भी यह रत्न उपलब्ध होता है।
पीले रंग का स्फटिक पत्थर ठीक पुखराज रत्न जैसा ही होता है
पुखराज रत्न पारदर्शी रूप में उपलब्ध है। रंग भेद के आधार पर इसको भी चार वर्णों- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र में वर्गीकृत किया गया है। सफेद रंग में उपलब्ध कोई कोई पुखराज रत्न तो हीरा रत्न की भाँती ही प्रतीत होता है यही नहीं कपटी व चालाक रत्न व्यापारी तो उसे हीरा रत्न बताकर बेच भी देते हैं। यही बात पीले पुखराज के सम्बन्ध में भी आती है। पीले रंग का स्फटिक पत्थर ठीक पुखराज रत्न जैसा ही होता है। अतः इस भ्रामक रूप का लाभ उठाकर कितने ही कपटी व चालाक रत्न व्यापारी उसे असली पीला पुखराज रत्न बताकर ग्राहकों से मोटी वसूली कर लेते हैं। रूप, रंग, चमक एवं पारदर्शिता में सामान्यता होने के कारण ही सफेद पुखराज को हीरा रत्न एवं पीले रंग के स्फटिक को पुखराज रत्न बताकर बेचने में व्यापारियों को निरापद सफलता मिल जाती है। करोड़ों रुपये का व्यापार, पुखराज के नाम पर ऐसी ही धोखा धड़ी पर चलता है।
मध्य भारत के उड़ीसा प्रदेश में पीला स्फटिक पाया जाता है। अधिकांश रत्न व्यापारी अथवा जोहरी उसे पुखराज बताकर ही बेचते हैं व मोटा मुनाफा कमाते हैं। जो मूल्य, गुण तथा प्रभाव पुखराज रत्न में विधमान होते हैं वे पीले स्फटिक में बहुत ही अल्प रूप में विधमान होते है। भारतवर्ष को तो पुखराज रत्न के उत्पादक देश की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता किन्तु संसार के अन्य देशों जैसे श्रीलंका, यूराल पर्वत, ब्राजील, बर्मा एवं जापान को इसकी उत्पत्ति का गौरव प्राप्त है।
पुखराज एक बहु प्रचलित रत्न है और संसार की अनेक भाषाओं में इसका विवरण प्राप्त होता है। संस्कृत में पुष्पराग, पीतमणि, गुरुरत्न और पुष्पराज के नाम से प्रसिद्ध यह रत्न गुजराती भाषा में पीलूराज, बँगला में पोखराज, पंजाबी में फोकज और कन्नड़ में पुष्पराग कहा जाता है। बर्मी भाषा में इसका उल्लेख आउटफिया नाम से मिलता है। अंग्रेजी साहित्य में इसके लिए टोपाज शब्द प्रयुक्त किया गया है।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की ज्योतिष के नवग्रहों में एकमात्र प्रमुख ग्रह वृहस्पति को देवताओं का गुरु होने का कारण ‘गुरु’ कहा जाता है। इसी के साथ यही वह मुख्य ग्रह माना जाता है जिसके अनुकूल रहने पर जन्मकुंडली के अन्य पापी अथवा क्रूर ग्रहों का दुष्प्रभाव मनुष्य पर नहीं पड़ता है। मान्यता है कि दैत्यराज ' बलि ' के शरीर की चमड़ी से पुखराज की उत्पत्ति हुई है।
पुखराज रत्न के प्रतिनिधित्व कर्ता गुरू हैं।
संस्कृत में इसे पुष्पराज /पितस्फटिक, हिन्दी में पुखराज तथा अंग्रेजी मे इसे टोपाज कहते हैं।
गुरू को ज्ञान, धन, मान-सम्मान, विवाह एवं संतान सुख प्रदान करने ग्रह कहा गया है।
जिनकी कुण्डली गुरू की स्थिति कमज़ोर होती है उन्हें मान-सम्मान एवं धन संबंधी परेशानियों का सामना बार-बार करना पड़ता है।
इनकी शिक्षा मे भी बाधा आती है।
गुरू के कमज़ोर होने के कारण , गुरू का रत्न पुखराज धारण करने की सलाह लगभग सभी ज्योतिषी बताते हैं।

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