Sawan 2021 सावन में कथा सुनने का महत्व ,श्रावण मास क्यों कहा जाता है ,कैसे मिलती है शिव की भक्ति ?

 
सावन का महीना

 शिव पूजन के लिए सर्वोत्तम है श्रावण मास

(आचार्य आर एल पाण्डेय)

श्रावण मास की कथा

*_श्रावण मास  की कथा को श्रवण(सुनने का) करने का बहुत महात्म्य है , इसीलिए इस मास को श्रावण( सावन) कहते है_*

*सावन माह के बारे में एक पौराणिक कथा है कि-:-*
_"जब सनत कुमारों ने भगवान शिव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो भगवान भोलेनाथ ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और शिव को प्रसन्न कर उनसे विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया।"_

*_इसके अतिरिक्त एक अन्य कथा के अनुसार_*, 
*_मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी, जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे।_*
*_भगवान शिव को सावन का महीना प्रिय होने का अन्य कारण यह भी है कि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत आर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है।_*
*_पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि इसी सावन मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो हलाहल विष निकला, उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की; लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया। इसी से उनका नाम 'नीलकंठ महादेव' पड़ा। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया।_*
_रावण ने भी कावड़ यात्रा कर शिव जी का जला अभिषेक किया था ।_
 
*इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने का ख़ास महत्व है। यही वजह है कि श्रावण मास में भोले को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। 'शिवपुराण' में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं।* 

_इसलिए जल से उनकी अभिषेक के रूप में अराधना का उत्तमोत्तम फल है, जिसमें कोई संशय नहीं है।_

*शास्त्रों में वर्णित है कि सावन महीने में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसलिए ये समय भक्तों, साधु-संतों सभी के लिए अमूल्य होता है। यह चार महीनों में होने वाला एक वैदिक यज्ञ है, जो एक प्रकार का पौराणिक व्रत है, जिसे 'चौमासा' भी कहा जाता है;* *तत्पश्चात् सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव ग्रहण करते हैं। इसलिए सावन के प्रधान देवता भगवान शिव बन जाते हैं।*

_सावन में चतुर्दशी तिथि और प्रदोष का बहुत महात्म्य है इस दिन तोह अवकाश( काम से छुट्टी) ले कर शिव जी की पूजा अर्चना जप तप और दान करना चाहिए ।_

 *इसी सावन मास में 16 अगस्त 2021सोमवार को दिन भर अनुराधा नक्षत्र भी पड़ रही है , इस नक्षत्र में शिव पूजा करने का फल की महिमा बता पाना नामुमकिन है क्योंकि यह योग बहुत कम पड़ता है और बहुत ही ज्यादा पुण्यप्रदायक और मुक्तिप्रद है ।*

_सावन मास में सोमवार को अनुराधा नक्षत्र पड़ने पर काशी में गंगा स्नान कर गौरी केदारेश्वर(केदार घाट) के दर्शन का भी विधान है ।क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव अपने शरीर पर भस्म (राख)  धारण क्यों करते हैं ? आओ जरा चिंतन करें। माना कि इस दुनियाँ में बहुत कुछ है। कहीं रत्नों की खानें हैं तो कहीं बहुमूल्य सम्पदाएँ। कहीं स्वर्ण नगरी है तो कहीं रत्न जड़ित महल। कहीं मनोहर वाटिकाएं हैं तो कहीं शीतल सरोवर। कहीं रेतीले रेगिस्तान है तो कहीं हरे भरे सुंदर पहाड़ मगर इतना सब कुछ होने के बाद भी ये सारी वस्तुएं एक न एक दिन नष्ट होकर मिट्टी में ही मिलने वाली हैं अथवा राख का ढेर ही होने वाली हैं। इस संसार में जो कुछ भी आज है वह कल के लिए मात्र और मात्र एक राख के ढेर से ज्यादा कुछ भी नहीं। यहाँ तक कि हमारा स्वयं का शरीर भी एक मुट्ठी राख से ज्यादा कुछ नहीं है। जीवन का अंतिम और अमिट सत्य राख ही है। अतः राख ही प्रत्येक वस्तु का सार है और इसी सार तत्व को भगवान शिव अपने शरीर पर धारण करते हैं।भगवान शिव की भस्म कहती है कि किसी भी वस्तु का अभिमान मत करो क्योंकि प्रत्येक वस्तु एक दिन मेरे समान ही राख बन जाने वाली है।आपका बल, आपका वैभव, आपकी अकूत सम्पदा सब यहीं रह जाने हैं। प्रभु कृपा से जो भी आपको प्राप्त हुआ है उसे परमार्थ में,परोपकार में, सद्कार्यों में और सेवा कार्यों में लगाने के साथ - साथ मिल बाँट कर खाना सीखो! यही मनुष्यता है, यही दैवत्व है और यही जीवन का परम सत्य व जीवन की परम सार्थकता है। श्रावण मास में शिव पूजन करते समय चिन्तन करें कि भगवान् शिव अपने हाथ में त्रिशूल रखते हैं। इसका क्या  सन्देश है ?  तीन विकारों को नियंत्रित करता है ये त्रिशूल, काम - क्रोध और लोभ। "" तात तीन खल अति प्रवल काम क्रोध और लोभ ""
 काम-क्रोध- लोभ को पूरी तरह खतम तो कदापि नहीं किया जा सकता पर नियंत्रित जरूर किया जा सकता है। इनको साधा जा सकता है। क्रोध तो शिवजी को भी आता है लेकिन क्षण विशेष के लिए। कामदेव को भस्म करते समय क्रोधित हुए पर जब कामदेव की पत्नि रति आई तो उसे देखकर द्रवित हो गए।  शक्ति का सही दिशा में प्रयोग ही पुन्य है और गलत दिशा में प्रयोग ही पाप है। शिवजी ने अपनी ऊर्जा को नियंत्रित कर रखा है। ऊर्जा का नियंत्रण ही साधना है और यही योग है।भगवान महादेव के मस्तक पर चंद्र सुशोभित रहता है। चंद्रमा शीतलता का प्रतीक है और शीतलता भगवान भोलेनाथ को अतिप्रिय है। सोम का दूसरा अर्थ सौम्यता भी होता है।
अर्थात् जिसमें शीतलता है, जिसमें सौम्यता है वो भगवान शिव को अतिप्रिय है। या यूँ कहें कि भगवान शिव की शरण में जाने के बाद जैसे कुटिल चंद्रमा भी सर्व पूज्य और शीतल व सौम्य हो गया इसी प्रकार यह जीव भी उन भोलेनाथ की शरण में जाकर शीलता और सौम्यता को प्राप्त कर जाता है।
संसार तुम्हारे विरुद्ध खड़ा हो जाओ चिंता मत करना। बस जीवन में शालीन व सहज बने रहना। जैसे ही भगवान शिव के पूजन के लिए जाओगे शिव रीझ जाएँगे और सारे संकटों को हर लेंगे। बहुधा लोगों को लगता है कि हम बहुत भोले हैं, इसलिए लोग ठग लेते हैं। बिलकुल भी परेशान ना होना, भोलापन को बने रहने देना। भोले भक्तों के नाथ ही ये भोलेनाथ हैं। भगवान भोलानाथ तुम्हारे साथ खड़े हैं।

आचार्य  आर एल पांडेय

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