आइये जाने जन्म कुंडली में दूसरा विवाह और अन्य स्त्रियां के योग

आइये जाने जन्म कुंडली में दूसरा विवाह और अन्य स्त्रियां के योग

धर्म डेस्क -हिंदू धर्म में विवाह को सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार माना गया है। यही कुंडली बताती है कि क्या दूसरा विवाह भी होगा या नहीं |विवाह के बाद पति-पत्नी दोनों का जीवन बदलता है साथ ही इनके परिवारों का भी। अधिकांश शादियां तो सफल हो जाती हैं लेकिन कुछ शादियां किसी कारण से असफल होती है। ऐसे अधिकांश लोग फिर दूसरी शादी करते हैं। ज्योतिष के अनुसार मालुम किया जा सकता है यदि किसी व्यक्ति के जीवन में दो शादी के योग होते हैं |

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की ज्योतिष शास्त्र में एक योग बताया गया है पुनर्विवाह योग यानि फिर से विवाह। कई व्यक्ति ऐसे होते है जिनका पहला विवाह सफल नहीं हो पाता और उन्हें पुन: विवाह करना पड़ता है। कुछ लोग दो से अधिक शादियां भी करते हैं। जन्म कुंडली का सप्तम भाव या स्थान जीवन साथी से संबंधित होता है। स्त्री हो या पुरुष दोनों का विवाह संबंधी विचार इसी स्थान से होता है। आज मै आपको द्वि विवाह व उसमे सहायक कुछ योगो की जानकरी इस लेख के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयास करुंगा। प्रायः अधिकांशतः सभी को ज्ञात होता है कि हमारी जन्म कुंडली का सप्तम भाव भार्या व विवाह स्थान कहलाता है । लेकिन यह तथ्य बहुत कम व्यक्तियो को ज्ञात होता है कि जीवन साथी से अलगाव के पश्चात आगामी विवाह योग अथवा भार्या या स्त्री का विचार कहां से करें और किस भाव से करें । इस विषय मे भी आपको विद्वानो का मतांतर देखने को मिल सकता है ।
एक कड़वी सच्चाई यह भी हैं की आज के युग में जिस तरह लोगों में भोगी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, अनैतिक संबंध भी उतने ही बढ़ते जा रहे हैं। कई पुरुषों का एक स्त्री से पेट नहीं भरता और अनेक स्त्रियों के कई पुरुषों से संबंध बनते हैं। हिंदू धर्म में एक पति या एक पत्नी के होते हुए दूसरे विवाह की अनुमति नहीं दी जाती है, इसलिए कई लोग चोरी-छुपे दूसरे रिश्ते बनाते हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की यदि जातक की जन्मकुंडली का सटीक विश्लेषण किया जाए तो यह आसानी से पता लगाया जा सकता है कि संबंधित स्त्री या पुरुष की कितनी पत्नी या कितने पति होंगे। क्या जातक एक से अधिक विवाह करेगा और करेगा तो किन परिस्थितियों में करेगा।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की सप्तम स्थान भार्या अर्थात पत्नी स्थान होता है लेकिन अगर हमारी पहली पत्नी से हमारा अलगाव होता है या अपनी पहली पत्नी के अतिरिक्त दूसरी स्त्री का विचार करें या संबध बनाये तो वह हमारी पत्नी की सौतन कहलायेगी अर्थात सप्तम भाव से छटा भाव यानी कि हमारी कुंडली का 12वां भाव दूसरी स्त्री को सूचित करता है। इसी तरह तीसरी स्त्री का स्थान 12वे से छटा यानी कि 5वां स्थान होता है। क्रमशः इसी तरह आप अन्य स्त्रीयो का विचार कर सकते है।ज्योतिष एक अथाह सागर है जो जीवन के हर पहलू पर रोशनी डालता है| एक अच्छे ज्योतिष विद्यार्थी को ज्योतिष की सभी शाखाओं को सीखना चाहिए और अपने अनुभव से उनका प्रयोग कुंडली पर करना चाहिए| पाराशर ज्योतिष के अनुसार कुंडली देखते समय जन्म कुंडली,वर्ग कुंडली, दशा, नक्षत्र और गोचर का विश्लेषण जरूरी होता है| सभी वर्गों में नवांश को अत्यधिक महत्ता दी गई है इसी वजह से आज का यह लेख नवांश पर आधारित है कि किस प्रकार नवांश कुंडली से आप अपने और अपने जीवनसाथी के बीच अंतरंग संबंधों को देख सकते है |
जैसा की ज्योतिष के सभी विधार्थियों को ज्ञात है कि सप्तम भाव, सप्तम भाव का स्वामी और शुक्र से वैवाहिक जीवन का विचार किया जाता है| इन भावों के अलावा द्वादश भाव कामुक संबंधों के लिए, दूसरा भाव कुटुंब के लिए, चौथा भाव परिवार के लिए भी देखे जाते है | यदि इन भावों का संबंध या इनके स्वामियों का संबंध मंगल, शनि, राहु एवं केतु से हो तो वैवाहिक जीवन अच्छा नहीं होता है|
कई लोगो के जीवन में सम्बन्ध या विवाह का योग सिर्फ एक ही नहीं होता बल्कि एक से अधिक और कई बार अनेक होता है . कई बार ऐसा देखने में आता है कि व्यक्ति एक सम्बन्ध टूटने के बाद दुसरे सम्बन्ध में पड़ता है परन्तु कई बार तो ऐसी स्थिति होती है कि व्यक्ति एक साथ ही एक से अधिक रिश्तों में रहता है . क्यों होती हैं ऐसी स्थितियां ? कौन से ग्रह और उनकी स्थितियां हैं |
दूसरे विवाह व स्त्रीयो से संबधित कुछ योग निम्नलिखित है --
यदि सप्तमेश और द्वितीयेश शु्क्र के साथ या पाप ग्रह के साथ होकर 6,8,12 भाव मे हो तो दूसरी शादी का योग बनता है।
यदि लग्न,सप्तम, चंद्र द्विस्वभाव राशियो मे पड रहे हो तो दूसरे विवाह के योग मे सहायक होते है।
यदि लग्नेश ,सप्तमेश , जन्मेश्वर व शुक्र द्विस्वभाव राशियो मे हो तो भी दूसरे विवाह के योग बनते है।
यदि सप्तमेश अपनी नीच की राशी में हो तो जातक की दो पत्नियां/सम्बन्ध होती हैं.
यदि सप्तमेश , पाप ग्रह के साथ किसी पाप ग्रह की राशी में हो और जन्मांग या नवांश का सप्तम भाव शनि या बुध की राशी में हो तो दो विवाह की संभावनाएं होती हैं..
यदि मंगल और शुक्र सप्तम भाव में हो या शनि सप्तम भाव में हो और लग्नेश अष्टम भाव में हो तो जातक के तीन विवाह या सम्बन्ध संभव हैं.
यदि सप्तमेश सबल हो , शुक्र द्विस्वभाव राशि में हो जिसका अधिपति ग्रह उच्च का हो तो व्यक्ति की एक से अधिक पत्नियां या बहुत से रिश्ते होंगे सप्तमेश उच्च का हो या वक्री हो अथवा शुक्र लग्न भाव में सबल एवं स्थिर हो तो जातक की कई पत्नियां/सम्बन्ध होंगी.
यदि सातवे घर का मालिक शुभ ग्रहो से युक्त होकर 6,8,12 मे पडा हो और सातवां भाव पाप युक्त हो तो दूसरी शादी का योग बनता है ।
लग्नेश उच्च ,वक्री ,मूलत्रिकोण,स्वग्रही या अच्छे वर्ग का हो तो बहुत सी स्त्रीयो की प्राप्ती कराता है।
यदि सातवां भाव पापयुक्त हो व सातवे का मालिक नीच राशि मे हो तो दो विवाह का योग बनता है।
चंद्रमा या शुक्र सातवे हो तो जीवन मे अनेक स्त्रीयो का योग बनता है।
यदि सप्तम भाव में पाप ग्रह हो, द्वितीयेश पाप ग्रह के साथ हो और लग्नेश अष्टम भाव में हो तो जातक के दो विवाह होंगे.
यदि शुक्र जन्मांग या नवांश में किसी पाप ग्रह की युति में अपनी नीच की राशि में हो तो व्यक्ति के दो विवाह निश्चित हैं.
यदि सप्तम भाव और द्वितीय भाव में पाप ग्रह हों और इनके भावेश निर्बल हों तो जातक पहली पत्नी की मृत्यु के बाद दूसरा विवाह कर लेता है.
यदि सप्तम भाव और अष्टम भाव में पाप ग्रह हों मंगल द्वादश भाव में हो और सप्तमेश की सप्तम भाव पर दृष्टि न हो तो जातक की पहली पत्नी की मृत्यु हो जाती है और वह दूसरा विवाह करता है.
यदि सप्तमेश और एकादशेश एक ही राशि में हों अथवा एक दुसरे पर परस्पर दृष्टि रखते हों या एक दूसरे से पंचम नवम स्थान में हों तो जातक के कई विवाह होते हैं.
यदि नोवें घर का मालिक सातवे घर मे हो और सातवे घर का मालिक चौथे घर मे हो तथा सातवे और ग्यारहवें घर का मालिक केन्द्र मे हो तो अनेक स्त्री़यो का योग बनता है।
दसवे घर के मालिक और उसका नवांशपति दोनो शनि के साथ हो और साथ मे छटे घर का मालिक भी हो या छटे घर के मालिक देख रहा हो तो अनेक स्त्रीयो का योग बनता है।
यदि सप्तमेश चतुर्थ भाव में हो और नवमेश सप्तम भाव में हो अथवा सप्तमेश और एकादशेश एक दुसरे से केंद्र में हो तो जातक के एक से अधिक विवाह होंगे.
यदि द्वितीय भाव और सप्तम भाव में पाप ग्रह हों तथा सप्तमेश के ऊपर पाप ग्रह की दृष्टि हो तो पति/पत्नी की मृत्यु के कारण जातक को तीन या उससे भी अधिक बार विवाह करना पड़ सकता है
यदि 1,2,7 भावो मे कोई पापी ग्रह हो और सातवे का मालिक नीच या अस्त हो तो अनेक स्त्रीयो का योग बनाता है।
लग्न, सप्तम स्थान और चंद्रलग्न इन तीनों में द्विस्वभाव राशि यानी मिथुन, कन्या, धनु या मीन हो तो जातक के दो विवाह होते हैं। लग्न का स्वामी 12वें घर में और द्वितीय घर का स्वामी मंगल, शनि, राहु, केतु के साथ कहीं भी हो तथा सप्तम स्थान में कोई पापग्रह बैठा हो तो जातक की दो स्त्रियां होती हैं। स्त्री की कुंडली में यह फल पुरुष के रूप में लेना चाहिए। शुक्र पापग्रह के साथ हो तो जातक के दो विवाह होते हैं। धन स्थान यानी दूसरे भाव में अनेक पापग्रह हों और द्वितीस भाव का स्वामी भी पापग्रहों से घिरा हो तो तीन विवाह होते हैं।
यदि लग्न का स्वामी और सप्तम स्थान का स्वामी दोनों यदि एक साथ प्रथम या फिर सप्तम स्थान में हों तो व्यक्ति की दो पत्नियां होती हैं। उदाहरण के लिए यदि लग्न सिंह हो तो उसका स्वामी सूर्य हुआ और सप्तम स्थान कुंभ का स्वामी शनि हुआ।
यदि सूर्य और शनि दोनों प्रथम या सप्तम स्थान में हों तो दो स्त्रियों से विवाह होता है। या स्त्री की कुंडली है तो दो विवाह होते हैं। ऐसा समझना चाहिए।
सप्त स्थान के स्वामी के साथ मंगल, राहु, केतु, शनि छठे, आठवें या 12वें भाव में हो तो एक स्त्री की मृत्यु के बाद व्यक्ति दूसरा विवाह करता है।
यदि शुक्र मेष,सिंह, धनु, वृश्चिक में हो या नीच का हो और मंगल राहु केतु या शनि के साथ हो तो यह व्यक्ति में अत्यधिक सेक्स इच्छा दर्शाते है | कई बार व्यक्ति विवाह की मर्यादा को तोड़कर विवाह के बाद बाहर ही संबंध बनाता है निश्चय ही यह अच्छी बात नहीं है परंतु ऐसे कौन से योग है जिसके कारण व्यक्ति भी इस तरह की इच्छा उत्पन्न होती है आइए जानते हैं की ज्योतिष ग्रंथों में इसके बारे में क्या बताया गया है| विवाह से बाहर शारीरिक संबंध बनाने के लिए पहले तो व्यक्ति बौद्धिक रूप से तैयार होना चाहिए उसकी बुद्धि ऐसी होनी चाहिए जो उसको इस ओर धकेल रही हो |पंचम भाव और चंद्रमा दर्शाता है कि व्यक्ति की सोच क्या है तो यदि आपकी कुंडली में पंचम भाव पर मंगल, शनि, राहु का प्रभाव है और चंद्रमा भी पीड़ित है तो ऐसी सोच उत्पन्न होती है| यही योग यदि नवांश में बन जाए तो वह इस तरह की सोच पर मोहर लगा देते हैं|
अब बात करते हैं ऐसे कुछ लोगों की जो ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथों में दिए हुए है |
नवांश कुंडली में शनि शुक्र की राशि में और शुक्र शनि की राशि में हो तो महिला की शारीरिक भूख अधिक होती है|
नवांश कुंडली में शुक्र मंगल की राशि में हो और मंगल शुक्र की राशि में तो व्यक्ति अपने जीवनसाथी के अलावा बाहर शारीरिक संबंध बनाने में नहीं हिचकिचाते है|
शुक्र मंगल आत्मकारक की नवांश राशि से बारहवें भाव में हो तो व्यक्ति चरित्रहीन होता है|
केतु आत्मकारक की नवांश राशि से नवम भाव में हो तो वृद्धावस्था तक भी व्यक्ति पर पुरुष या पर स्त्री के बारे में सोचता रहता है|
शुक्र सभी वर्गों में केवल मंगल या शनि की राशियों में हो तो व्यक्ति चरित्रहीन होता है|
नवांश कुंडली में चंद्रमा के दोनों ओर शनि और मंगल हो तो पति-पत्नी दोनों ही व्याभिचार करते हैं|
जन्म कुंडली का सप्तम का स्वामी नवांश कुंडली में बुद्ध की राशि में बैठा हो और बुध उसे देख ले तो आपका जीवन साथी द्विअर्थी बातें करते हैं और लोगों को रिझाने का काम करते हैं|
जैसा की आप सबको भी ज्ञात होगा कि पंचम और सप्तम भाव से संतान प्राप्ति देखते हैं| यदि दोनों का संबंध छठे भाव से हो जाए तो व्यक्ति विशेष में प्रजनन शक्ति कम होती है| जातक अलंकार के अनुसार यदि शुक्र मंगल की राशियों में हो तो वह अपने जीवनसाथी को सेक्स संबंधों में खुश नहीं रख पाता है| इसी तरह यदि शनि शुक्र का योग दशम भाव में हो तो व्यक्ति में नपुंसकता के योग होते हैं| संकेत निधि के अनुसार यदि शुक्र चंद्रमा की युति नवम भाव में हो तो ऐसे जातक की पत्नी कुटिल होती है|
कुंडली के चौथे भाव से व्यक्ति के चरित्र का पता लगाया जाता है और बार-बार सेक्स संबंधों में आपकी रुचि को दर्शाता है किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले ही इन दोनों भावों का गहन विश्लेषण आवश्यक है | हमारा आप सब से अनुरोध है कि यह नियम सीधे कुंडलियों पर ना लगाएं अपितु पूरी कुंडली का विश्लेषण करने के बाद ही इन लोगों को जांचे|
...............और इस तरह काफी योग है।
विवाह और वैवाहिक जीवन---
A:-सम्बंधित भाव ।
1:-दूसरा भाव:-परिवार और परिवार की उन्नति और विस्तार।
2:-चौथा भाव:-पारिवारिक खुशियां और सुख ।
3:-पांचवा भाव:-संतान और प्रेम संभंध ।
4:-सातवा भाव:-पति/पत्नी ,विवाह,वैवाहिक जीवन।
5:-आठवां भाव:- सुमंगल्या (स्त्री की जन्म कुंडली में) ।
6:-बारहवां भाव:-शयन सुख ।
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*विवाह हेतु सम्बंधित गृह*
1:-शुक्र:-पत्नी का कारक, विवाह,यौनाचार,कामुकता आदि।
2:-गुरु:-पति का कारक ।
3:-मंगल:-पति का कारक, विवाह का बंधन,यौनाचार आदि ।
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*शुक्र का राशियों में संभंध*
1:-मेष:-प्रवल प्रेमी,कई स्त्रियों के साथ संभंध ।
2:-बृषभ:-वैवाहिक परमानंद,सुन्दर और कर्तव्यनिष्ठ पत्नी,सुखी विवाह,प्रेम में अटल।
3:-मिथुन:-अत्यधिक काम लोलुपता,कामुक,दोहरा संभंध,ज्ञानी पत्नी,यदि शुक्र पीड़ित--दो विवाह योग, पत्नी से वियोग का योग।
4:-कर्क:-तीक्ष्ण कामुक ,यौनाचार में अधिक संलिप्त ,यदि शुक्र पीड़ित--दो पत्नी,भावुक पत्नी,वैवाहिक जीवन में कम खुशियां ।
5:-सिंह:-कुलीन परिवार से अछि रमणीय पत्नी,गहरी निष्ठावान भावनाएं कम काम शक्ति ।
6:-कन्या:-प्रेम के द्वारा योनाचार की अपेक्षा मानसिक संतुष्टि,निम्न जाती की स्त्रियों का स्नेही,पत्नी सुन्दर विचारवाली,पत्नी से वियोग का योग ।
7:-तुला:-समृद्धशाली सफल विवाह के साथ प्रेम सम्भन्धों में सफलता ,उदार,सौभाग्यशाली और सुन्दर पत्नी।
8:-बृश्चिक:-अतिरिक्त वैवाहिक संभंध,उत्तेजना होने पर शीघ्र वीर्य पतन,झगड़ालू पत्नी का योग।
9:-धनु:-सुखी वैवाहिक जीवन,एक सफल विवाह हलके फुल्के इश्क हो सकते हैं।
10:-मकर:-अस्थिर प्रेम संभंध,प्रेम में बदनामी,विवाह में विलम्ब,घमंडी पत्नी हो सकती हैं।
11:-कुम्भ:-सम्भोग की आदतों में शुद्ध ,प्रेम में सफलता,विलम्ब से विवाह,खुश मिजाज और अच्छी भली पत्नी का पति।
12:-मीन:-कई लगाव लेकिन अंत में एक सुखी विवाह,शालीन और सती सावित्री पत्नी,वैवाहिक जीवन में खुशियों की कमी।
*अन्य ग्रहों के साथ शुक्र युति*
1:-शुक्र+सूर्य=जातक यौनाचार में सक्रिय,एक उच्च जन्म की पत्नी जिसके व्यक्तित्व में राजसिक आभा होती हैं।
2:-शुक्र+चन्द्रमा=एक उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा वाली पत्नी,कदाचित वह असंगत हो सकती हैं।
3:-शुक्र+मंगल= जातक अधिक कामुक और पत्नी अभिमानी एवं दिखने में युवा होती है,अर्थात हम यह कह सकते हैं कि मंगल किसी की उम्र को भी चुरा लेता है ,अगर कोई 50 वर्ष का होगा तो हमें वह 40 वर्ष जैसा दिखाई देगा।अतः यहाँ यह सिद्धान्त लागु होता हैं कि मंगल उम्र चुराता हैं।
4:-शुक्र+बुद्ध=बुद्धिमान पत्नी,सज्जन और दिखने में युवा,जातक की सोच ओरबातें कामुकता के रंग में रंगी होती हैं,अश्लील साहित्य का स्नेही होता हैं।
5:-शुक्र+गुरु= पत्नी धर्म पारायण,सुन्दर,विशुद्ध और अच्छे पुत्रों की जन्म देने वाली होती हैं।
6:-शुक्र+शनि=एक सौम्य पत्नी और जाताक अच्छी वैवाहिक खुशियों का आनंद लेता है यदि शुक्र+शनि पीड़ित हों तो पत्नी बुरे स्वाभाव की होती हैं।
7:-शुक्र+राहु=असफल गुप्त प्रेम संभंध होते हैं।
8:-शुक्र+केतु=संसर्ग के विषयों में अति संबेदंनशील, अति शुक्ष्म ग्राही होते हैं।
*देखें शुक्र किस भाव में हैं*
1:-लग्न:-पहला भाव;-रोमानी स्त्रियों के प्रति आकर्षण,जातक अपनी पत्नी से प्रेम करता हैं।
2:-दूसरे भाव:-जोरू का गुलाम,विवाह असन्तुष्टि,असंस्तुस्ट पत्नी।
3:-तीसरा भाव:-एक कर्तव्यनिष्ठ पत्नी के साथ अच्छा परिवार,परन्तु पर स्त्रियों का रसिया।
4:-चौथा भाव:- सुखी पारिवारिक जीवन,हल्के फुल्के प्रेम संभंध ।
5:-पांचवा भाव:-रोमानी सख्सियत, विवाह से पहले प्रेम संभंध भी हो सकते हैं।
6:-छटा भाव:-अनैतिक ,पोरुसत्व की कमी,स्त्रियों की नापसंद,रोगी पत्नी का पति ।
7:-सातवां भाव:- यौनाचार का स्नेही, सुन्दर पत्नी,कामुक और रोमानी व्यक्तित्व ।
8:-आठवां भाव:-गैर कानूनी संभंध,प्रेम सम्भनधों में परेशानिया,अस्वस्थ पत्नी हो सकती हैं।
9:-नवम भाव:-एक सुखी पारिवारिक जीवन ,समर्पित पत्नी हो सकती हैं।
10:-दसम भाव:-एक अच्छा विवाह,प्रचुर योनांनंद,पत्नी से लाभ हो सकता हैं।
11:-ग्यारह भाव:-रोमानी व्यक्तित्व ,पत्नी से लाभ हो सकता हैं
12:-बारहवां भाव:-योनांनंद का स्नेही,प्रेम प्रसंगों में सिद्धान्तहीन,रोगी पत्नी का पति हो सकता हैं।
---जानिए की शादी तय होकर भी क्यों टूट जाती है?-----
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यदि कुंडली में सातवें घर का स्वामी सप्तमांश कुंडली में किसी भी नीच ग्रह के साथ अशुभ भाव में बैठा हो तो शादी तय नहीं हो पाती है.
यदि दूसरे भाव का स्वामी अकेला सातवें घर में हो तथा शनि पांचवें अथवा दशम भाव में वक्री अथवा नीच राशि का हो तो शादी तय होकर भी टूट जाती है.
यदि जन्म समय में श्रवण नक्षत्र हो तथा कुंडली में कही भी मंगल एवं शनि का योग हो तो शादी तय होकर भी टूट जाती है.
यदि मूल नक्षत्र में जन्म हो तथा गुरु सिंह राशि में हो तो भी शादी तय होकर टूट जाती है. किन्तु गुरु को वर्गोत्तम नहीं होना चाहिए.
यदि जन्म नक्षत्र से सातवें, बारहवें, सत्रहवें, बाईसवें या सत्ताईसवें नक्षत्र में सूर्य हो तो भी विवाह तय होकर टूट जाता है.
तलाक क्यों हो जाता है?- ---
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(१)- यदि कुंडली मांगलीक होगी तो विवाह होकर भी तलाक हो जाता है. किन्तु ध्यान रहे किसी भी हालत में सप्तमेश को वर्गोत्तम नहीं होना चाहिए.
(२)- दूसरे भाव का स्वामी यदि नीचस्थ लग्नेश के साथ मंगल अथवा शनि से देखा जाता होगा तो तलाक हो जाएगा. किन्तु मंगल अथवा शनि को लग्नेश अथवा द्वितीयेश नहीं होना चाहिए.
(३) यदि जन्म कुंडली का सप्तमेश सप्तमांश कुंडली का अष्टमेश हो अथवा जन्म कुंडली का अष्टमेश सप्तमांश कुंडली का लग्नेश हो एवं दोनों कुंडली में लग्नेश एवं सप्तमेश अपने से आठवें घर के स्वामी से देखे जाते हो तो तलाक निश्चित होगा.
(४)- यदि पत्नी का जन्म नक्षत्र ध्रुव संज्ञक हो एवं पति का चर संज्ञक तो तलाक हो जाता है. किन्तु किसी का भी मृदु संज्ञक नक्षत्र नहीं होना चाहिए.
(५)- यदि अकेला राहू सातवें भाव में तथा अकेला शनि पांचवें भाव में बैठा हो तो तलाक हो जाता है. किन्तु ऐसी अवस्था में शनि को लग्नेश नहीं होना चाहिए. या लग्न में उच्च का गुरु नहीं होना चाहिए.
===पति पत्नी का चरित्र-----
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(१)- यदि कुंडली में बारहवें शुक्र तथा तीसरे उच्च का चन्द्रमा हो तो चरित्र भ्रष्ट होता है.
(२)- यदि सातवें मंगल तथा शुक्र एवं पांचवें शनि हो तो चरित्र दोष होता है.
(३)- नवमेश नीच तथा लग्नेश छठे भाव में राहू युक्त हो तो निश्चित ही चरित्र दोष होता है.
(४)- आर्द्रा, विशाखा, शतभिषा अथवा भरनी नक्षत्र का जन्म हो तथा मंगल एवं शुक्र दोनों ही कन्या राशि में हो तो अवश्य ही पतित चरित्र होता है.
(५)- कन्या लग्न में लग्नेश यदि लग्न में ही हो तो पंच महापुरुष योग बनता है. किन्तु यदि इस बुध के साथ शुक्र एवं शनि हो तो नपुंसकत्व होता है.
(६)- यदि सातवें राहू हो तथा कर्क अथवा कुम्भ राशि का मंगल लग्न में हो तो या लग्न में शनि-मंगल एवं सातवें नीच का कोई भी ग्रह हो तो पति एवं पत्नी दोनों ही एक दूसरे को धोखा देने वाले होते है.
------विवाह नही होगा अगर—–
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-----यदि सप्तमेश शुभ स्थान पर नही है।
----यदि सप्तमेश छ: आठ या बारहवें स्थान पर अस्त होकर बैठा है।
-----यदि सप्तमेश नीच राशि में है।
----यदि सप्तमेश बारहवें भाव में है,और लगनेश या राशिपति सप्तम में बैठा है।
----जब चन्द्र शुक्र साथ हों,उनसे सप्तम में मंगल और शनि विराजमान हों।
----जब शुक्र और मंगल दोनों सप्तम में हों।
----जब शुक्र मंगल दोनो पंचम या नवें भाव में हों।
----जब शुक्र किसी पाप ग्रह के साथ हो और पंचम या नवें भाव में हो।
----जब कभी शुक्र, बुध, शनि ये तीनो ही नीच हों।
-----जब पंचम में चन्द्र हो,सातवें या बारहवें भाव में दो या दो से अधिक पापग्रह हों।
--जब सूर्य स्पष्ट और सप्तम स्पष्ट बराबर का हो।
शुभ ग्रह हमेशा शुभ नहीं होते(पति पत्नी में अलगाव के ज्योतिषीय कारण )—
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ज्योतिषीय नियम है कि कुंडली में अशुभ ग्रहों से अधिष्ठित भाव के बल का ह्वास और शुभ ग्रहों से अधिष्ठित भाव के बल की समृद्धि होती है। जैसे, मानसागरी में वर्णन है कि केन्द्र भावगत बृहस्पति हजारों दोषों का नाशक होता है। किन्तु, विडंबना यह है कि सप्तम भावगत बृहस्पति जैसा शुभ ग्रह जो स्त्रियों के सौभाग्य और विवाह का कारक है, वैवाहिक सुख के लिए दूषित सिद्ध हुआ हैं।
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यद्यपि बृहस्पति बुद्धि, ज्ञान और अध्यात्म से परिपूर्ण एक अति शुभ और पवित्र ग्रह है, मगर कुंडली में सप्तम भावगत बृहस्पति वैवाहिक जीवन के सुखों का हंता है। सप्तम भावगत बृहस्पति की दृष्टि लग्न पर होने से जातक सुन्दर, स्वस्थ, विद्वान, स्वाभिमानी और कर्मठ तथा अनेक प्रगतिशील गुणों से युक्त होता है, किन्तु ‘स्थान हानि करे जीवा’ उक्ति के अनुसार यह यौन उदासीनता के रूप में सप्तम भाव से संबन्धित सुखों की हानि करता है। प्राय: शनि को विलंबकारी माना जाता है, मगर स्त्रियों की कुंडली के सप्तम भावगत बृहस्पति से विवाह में विलंब ही नहीं होता, बल्कि विवाह की संभावना ही न्यून होती है।
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यदि विवाह हो जाये तो पति-पत्नी को मानसिक और दैहिक सुख का ऐसा अभाव होता है, जो उनके वैवाहिक जीवन में भूचाल आ जाता हैं। वैद्यनाथ ने जातक पारिजात, अध्याय 14, श्लोक 17 में लिखा है, ‘नीचे गुरौ मदनगे सति नष्ट दारौ’ अर्थात् सप्तम भावगत नीच राशिस्थ बृहस्पति से जातक की स्त्री मर जाती है। कर्क लग्न की कुंडलियों में सप्तम भाव गत बृहस्पति की नीच राशि मकर होती है। व्यवहारिक रूप से उपयरुक्त कथन केवल कर्क लग्न वालों के लिए ही नहीं है, बल्कि कुंडली के सप्तम भाव अधिष्ठित किसी भी राशि में बृहस्पति हो, उससे वैवाहिक सुख अल्प ही होते हैं।
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एक नियम यह भी है कि किसी भाव के स्वामी की अपनी राशि से षष्ठ, अष्टम या द्वादश स्थान पर स्थिति से उस भाव के फलों का नाश होता है। सप्तम से षष्ठ स्थान पर द्वादश भाव- भोग का स्थान और सप्तम से अष्टम द्वितीय भाव- धन, विद्या और परिवार तथा उनसे प्राप्त सुखों का स्थान है। यद्यपि इन भावों में पाप ग्रह अवांछनीय हैं, किन्तु सप्तमेश के रूप में शुभ ग्रह भी चंद्रमा, बुध, बृहस्पति और शुक्र किसी भी राशि में हों, वैवाहिक सुख हेतु अवांछनीय हैं। चंद्रमा से न्यूनतम और शुक्र से अधिकतम वैवाहिक दुख होते हैं। दांपत्य जीवन कलह से दुखी पाया गया, जिन्हें तलाक के बाद द्वितीय विवाह से सुखी जीवन मिला।
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पुरुषों की कुंडली में सप्तम भावगत बुध से नपुंसकता होती है। यदि इसके संग शनि और केतु की युति हो तो नपुंसकता का परिमाण बढ़ जाता है। ऐसे पुरुषों की स्त्रियां यौन सुखों से मानसिक एवं दैहिक रूप से अतृप्त रहती हैं, जिसके कारण उनका जीवन अलगाव या तलाक हेतु संवेदनशील होता है। सप्तम भावगत बुध के संग चंद्रमा, मंगल, शुक्र और राहु से अनैतिक यौन क्रियाओं की उत्पत्ति होती है, जो वैवाहिक सुख की नाशक है।
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‘‘यदि सप्तमेश बुध पाप ग्रहों से युक्त हो, नीचवर्ग में हो, पाप ग्रहों से दृष्ट होकर पाप स्थान में स्थित हो तो मनुष्य की स्त्री पति और कुल की नाशक होती है।’’सप्तम भाव के अतिरिक्त द्वादश भाव भी वैवाहिक सुख का स्थान हैं। चंद्रमा और शुक्र दो भोगप्रद ग्रह पुरुषों के विवाह के कारक है। चंद्रमा सौन्दर्य, यौवन और कल्पना के माध्यम से स्त्री-पुरुष के मध्य आकर्षण उत्पन्न करता है।
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दो भोगप्रद तत्वों के मिलने से अतिरेक होता है। अत: सप्तम और द्वादश भावगत चंद्रमा अथवा शुक्र के स्त्री-पुरुषों के नेत्रों में विपरीत लिंग के प्रति कुछ ऐसा आकर्षण होता है, जो उनके अनैतिक यौन संबन्धों का कारक बनता है। यदि शुक्र -मिथुन या कन्या राशि में हो या इसके संग कोई अन्य भोगप्रद ग्रह जैसे चंद्रमा, मंगल, बुध और राहु हो, तो शुक्र प्रदान भोगवादी प्रवृति में वृद्धि अनैतिक यौन संबन्धों की उत्पत्ति करती है।
ऐसे व्यक्ति न्यायप्रिय, सिद्धांतप्रिय और दृढ़प्रतिज्ञ नहीं होते बल्कि चंचल, चरित्रहीन, अस्थिर बुद्धि, अविश्वासी, व्यवहारकुशल मगर शराब, शबाब, कबाब, और सौंदर्य प्रधान वस्तुओं पर अपव्यय करने वाले होते हैं। क्या ऐसे व्यक्तियों का गृहस्थ जीवन सुखी रह सकता है? कदापि नहीं। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि कुंडली में अशुभ ग्रहों की भांति शुभ ग्रहों की विशेष स्थिति से वैवाहिक सुख नष्ट होते हैं।
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हस्तरेखा से जानें अवैध सम्बन्ध/बहुविवाह ….
---जिस जातक की प्रभावित रेखा चन्द्र क्षेत्र पर होकर भाग्य रेखा से मिले एवं शुक्र क्षेत्र पर आड़ी रेखाएं होकर भी वे जीवनरेखा से न मिले, ऐसे जातक का विवाह न होकर पर-स्त्री से प्रेम होता है एवं स्त्री के कारण ही यह जातक संकट में पड़ता है। कभी-कभी ऐसे जातकों को स्त्री के कारण जेल यात्रा भी करना पड़ती है।
---जिस जातक के दोनों हाथों पर हृदय रेखा में द्धीप न हो और शुक्र रेखा स्वास्थ्य रेखा को काटकर ऊपर जाए, निश्चय ही ऐसे व्यक्ति का अवैध प्रेम संबंध होता है।
---- जिस जातक के हाथ की हृदय रेखा या बुध क्षेत्र पर जाए, उसका किसी निकट संबंधी या रिश्तेदार स्त्री से प्रेम संबंध होता है।
--- यदि अंगुलियों के तीसरे पर्व पर यव चिन्ह हो व द्वितीय पर्व पर भी यव चिन्ह हो, वह विद्याविहीन, विषयासक्त, भोगी, दुराचारी होकर जल में डूब मरता है।
प्रिय दर्शकों/पाठक गण, हिंदू धर्म में विवाह को सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार माना गया है। विवाह के बाद पति-पत्नी दोनों का जीवन बदलता है साथ ही इनके परिवारों का भी। अधिकांश शादियां तो सफल हो जाती हैं लेकिन कुछ शादियां किसी कारण से असफल होती है। ऐसे अधिकांश लोग फिर दूसरी शादी करते हैं। ज्योतिष के अनुसार मालुम किया जा सकता है यदि किसी व्यक्ति के जीवन में दो शादी के योग होते हैं |
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की ज्योतिष शास्त्र में एक योग बताया गया है पुनर्विवाह योग यानि फिर से विवाह। कई व्यक्ति ऐसे होते है जिनका पहला विवाह सफल नहीं हो पाता और उन्हें पुन: विवाह करना पड़ता है। कुछ लोग दो से अधिक शादियां भी करते हैं। जन्म कुंडली का सप्तम भाव या स्थान जीवन साथी से संबंधित होता है। स्त्री हो या पुरुष दोनों का विवाह संबंधी विचार इसी स्थान से होता है। आज मै आपको द्वि विवाह व उसमे सहायक कुछ योगो की जानकरी इस लेख के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयास करुंगा। प्रायः अधिकांशतः सभी को ज्ञात होता है कि हमारी जन्म कुंडली का सप्तम भाव भार्या व विवाह स्थान कहलाता है । लेकिन यह तथ्य बहुत कम व्यक्तियो को ज्ञात होता है कि जीवन साथी से अलगाव के पश्चात आगामी विवाह योग अथवा भार्या या स्त्री का विचार कहां से करें और किस भाव से करें । इस विषय मे भी आपको विद्वानो का मतांतर देखने को मिल सकता है ।
एक कड़वी सच्चाई यह भी हैं की आज के युग में जिस तरह लोगों में भोगी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, अनैतिक संबंध भी उतने ही बढ़ते जा रहे हैं। कई पुरुषों का एक स्त्री से पेट नहीं भरता और अनेक स्त्रियों के कई पुरुषों से संबंध बनते हैं। हिंदू धर्म में एक पति या एक पत्नी के होते हुए दूसरे विवाह की अनुमति नहीं दी जाती है, इसलिए कई लोग चोरी-छुपे दूसरे रिश्ते बनाते हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की यदि जातक की जन्मकुंडली का सटीक विश्लेषण किया जाए तो यह आसानी से पता लगाया जा सकता है कि संबंधित स्त्री या पुरुष की कितनी पत्नी या कितने पति होंगे। क्या जातक एक से अधिक विवाह करेगा और करेगा तो किन परिस्थितियों में करेगा।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की सप्तम स्थान भार्या अर्थात पत्नी स्थान होता है लेकिन अगर हमारी पहली पत्नी से हमारा अलगाव होता है या अपनी पहली पत्नी के अतिरिक्त दूसरी स्त्री का विचार करें या संबध बनाये तो वह हमारी पत्नी की सौतन कहलायेगी अर्थात सप्तम भाव से छटा भाव यानी कि हमारी कुंडली का 12वां भाव दूसरी स्त्री को सूचित करता है। इसी तरह तीसरी स्त्री का स्थान 12वे से छटा यानी कि 5वां स्थान होता है। क्रमशः इसी तरह आप अन्य स्त्रीयो का विचार कर सकते है।ज्योतिष एक अथाह सागर है जो जीवन के हर पहलू पर रोशनी डालता है| एक अच्छे ज्योतिष विद्यार्थी को ज्योतिष की सभी शाखाओं को सीखना चाहिए और अपने अनुभव से उनका प्रयोग कुंडली पर करना चाहिए| पाराशर ज्योतिष के अनुसार कुंडली देखते समय जन्म कुंडली,वर्ग कुंडली, दशा, नक्षत्र और गोचर का विश्लेषण जरूरी होता है| सभी वर्गों में नवांश को अत्यधिक महत्ता दी गई है इसी वजह से आज का यह लेख नवांश पर आधारित है कि किस प्रकार नवांश कुंडली से आप अपने और अपने जीवनसाथी के बीच अंतरंग संबंधों को देख सकते है |
जैसा की ज्योतिष के सभी विधार्थियों को ज्ञात है कि सप्तम भाव, सप्तम भाव का स्वामी और शुक्र से वैवाहिक जीवन का विचार किया जाता है| इन भावों के अलावा द्वादश भाव कामुक संबंधों के लिए, दूसरा भाव कुटुंब के लिए, चौथा भाव परिवार के लिए भी देखे जाते है | यदि इन भावों का संबंध या इनके स्वामियों का संबंध मंगल, शनि, राहु एवं केतु से हो तो वैवाहिक जीवन अच्छा नहीं होता है|
कई लोगो के जीवन में सम्बन्ध या विवाह का योग सिर्फ एक ही नहीं होता बल्कि एक से अधिक और कई बार अनेक होता है . कई बार ऐसा देखने में आता है कि व्यक्ति एक सम्बन्ध टूटने के बाद दुसरे सम्बन्ध में पड़ता है परन्तु कई बार तो ऐसी स्थिति होती है कि व्यक्ति एक साथ ही एक से अधिक रिश्तों में रहता है . क्यों होती हैं ऐसी स्थितियां ? कौन से ग्रह और उनकी स्थितियां हैं |
दूसरे विवाह व स्त्रीयो से संबधित कुछ योग निम्नलिखित है --
यदि सप्तमेश और द्वितीयेश शु्क्र के साथ या पाप ग्रह के साथ होकर 6,8,12 भाव मे हो तो दूसरी शादी का योग बनता है।
यदि लग्न,सप्तम, चंद्र द्विस्वभाव राशियो मे पड रहे हो तो दूसरे विवाह के योग मे सहायक होते है।
यदि लग्नेश ,सप्तमेश , जन्मेश्वर व शुक्र द्विस्वभाव राशियो मे हो तो भी दूसरे विवाह के योग बनते है।
यदि सप्तमेश अपनी नीच की राशी में हो तो जातक की दो पत्नियां/सम्बन्ध होती हैं.
यदि सप्तमेश , पाप ग्रह के साथ किसी पाप ग्रह की राशी में हो और जन्मांग या नवांश का सप्तम भाव शनि या बुध की राशी में हो तो दो विवाह की संभावनाएं होती हैं..
यदि मंगल और शुक्र सप्तम भाव में हो या शनि सप्तम भाव में हो और लग्नेश अष्टम भाव में हो तो जातक के तीन विवाह या सम्बन्ध संभव हैं.
यदि सप्तमेश सबल हो , शुक्र द्विस्वभाव राशि में हो जिसका अधिपति ग्रह उच्च का हो तो व्यक्ति की एक से अधिक पत्नियां या बहुत से रिश्ते होंगे सप्तमेश उच्च का हो या वक्री हो अथवा शुक्र लग्न भाव में सबल एवं स्थिर हो तो जातक की कई पत्नियां/सम्बन्ध होंगी.
यदि सातवे घर का मालिक शुभ ग्रहो से युक्त होकर 6,8,12 मे पडा हो और सातवां भाव पाप युक्त हो तो दूसरी शादी का योग बनता है ।
लग्नेश उच्च ,वक्री ,मूलत्रिकोण,स्वग्रही या अच्छे वर्ग का हो तो बहुत सी स्त्रीयो की प्राप्ती कराता है।
यदि सातवां भाव पापयुक्त हो व सातवे का मालिक नीच राशि मे हो तो दो विवाह का योग बनता है।
चंद्रमा या शुक्र सातवे हो तो जीवन मे अनेक स्त्रीयो का योग बनता है।
यदि सप्तम भाव में पाप ग्रह हो, द्वितीयेश पाप ग्रह के साथ हो और लग्नेश अष्टम भाव में हो तो जातक के दो विवाह होंगे.
यदि शुक्र जन्मांग या नवांश में किसी पाप ग्रह की युति में अपनी नीच की राशि में हो तो व्यक्ति के दो विवाह निश्चित हैं.
यदि सप्तम भाव और द्वितीय भाव में पाप ग्रह हों और इनके भावेश निर्बल हों तो जातक पहली पत्नी की मृत्यु के बाद दूसरा विवाह कर लेता है.
यदि सप्तम भाव और अष्टम भाव में पाप ग्रह हों मंगल द्वादश भाव में हो और सप्तमेश की सप्तम भाव पर दृष्टि न हो तो जातक की पहली पत्नी की मृत्यु हो जाती है और वह दूसरा विवाह करता है.
यदि सप्तमेश और एकादशेश एक ही राशि में हों अथवा एक दुसरे पर परस्पर दृष्टि रखते हों या एक दूसरे से पंचम नवम स्थान में हों तो जातक के कई विवाह होते हैं.
यदि नोवें घर का मालिक सातवे घर मे हो और सातवे घर का मालिक चौथे घर मे हो तथा सातवे और ग्यारहवें घर का मालिक केन्द्र मे हो तो अनेक स्त्री़यो का योग बनता है।
दसवे घर के मालिक और उसका नवांशपति दोनो शनि के साथ हो और साथ मे छटे घर का मालिक भी हो या छटे घर के मालिक देख रहा हो तो अनेक स्त्रीयो का योग बनता है।
यदि सप्तमेश चतुर्थ भाव में हो और नवमेश सप्तम भाव में हो अथवा सप्तमेश और एकादशेश एक दुसरे से केंद्र में हो तो जातक के एक से अधिक विवाह होंगे.
यदि द्वितीय भाव और सप्तम भाव में पाप ग्रह हों तथा सप्तमेश के ऊपर पाप ग्रह की दृष्टि हो तो पति/पत्नी की मृत्यु के कारण जातक को तीन या उससे भी अधिक बार विवाह करना पड़ सकता है
यदि 1,2,7 भावो मे कोई पापी ग्रह हो और सातवे का मालिक नीच या अस्त हो तो अनेक स्त्रीयो का योग बनाता है।
लग्न, सप्तम स्थान और चंद्रलग्न इन तीनों में द्विस्वभाव राशि यानी मिथुन, कन्या, धनु या मीन हो तो जातक के दो विवाह होते हैं। लग्न का स्वामी 12वें घर में और द्वितीय घर का स्वामी मंगल, शनि, राहु, केतु के साथ कहीं भी हो तथा सप्तम स्थान में कोई पापग्रह बैठा हो तो जातक की दो स्त्रियां होती हैं। स्त्री की कुंडली में यह फल पुरुष के रूप में लेना चाहिए। शुक्र पापग्रह के साथ हो तो जातक के दो विवाह होते हैं। धन स्थान यानी दूसरे भाव में अनेक पापग्रह हों और द्वितीस भाव का स्वामी भी पापग्रहों से घिरा हो तो तीन विवाह होते हैं।
यदि लग्न का स्वामी और सप्तम स्थान का स्वामी दोनों यदि एक साथ प्रथम या फिर सप्तम स्थान में हों तो व्यक्ति की दो पत्नियां होती हैं। उदाहरण के लिए यदि लग्न सिंह हो तो उसका स्वामी सूर्य हुआ और सप्तम स्थान कुंभ का स्वामी शनि हुआ।
यदि सूर्य और शनि दोनों प्रथम या सप्तम स्थान में हों तो दो स्त्रियों से विवाह होता है। या स्त्री की कुंडली है तो दो विवाह होते हैं। ऐसा समझना चाहिए।
सप्त स्थान के स्वामी के साथ मंगल, राहु, केतु, शनि छठे, आठवें या 12वें भाव में हो तो एक स्त्री की मृत्यु के बाद व्यक्ति दूसरा विवाह करता है।
यदि शुक्र मेष,सिंह, धनु, वृश्चिक में हो या नीच का हो और मंगल राहु केतु या शनि के साथ हो तो यह व्यक्ति में अत्यधिक सेक्स इच्छा दर्शाते है | कई बार व्यक्ति विवाह की मर्यादा को तोड़कर विवाह के बाद बाहर ही संबंध बनाता है निश्चय ही यह अच्छी बात नहीं है परंतु ऐसे कौन से योग है जिसके कारण व्यक्ति भी इस तरह की इच्छा उत्पन्न होती है आइए जानते हैं की ज्योतिष ग्रंथों में इसके बारे में क्या बताया गया है| विवाह से बाहर शारीरिक संबंध बनाने के लिए पहले तो व्यक्ति बौद्धिक रूप से तैयार होना चाहिए उसकी बुद्धि ऐसी होनी चाहिए जो उसको इस ओर धकेल रही हो |पंचम भाव और चंद्रमा दर्शाता है कि व्यक्ति की सोच क्या है तो यदि आपकी कुंडली में पंचम भाव पर मंगल, शनि, राहु का प्रभाव है और चंद्रमा भी पीड़ित है तो ऐसी सोच उत्पन्न होती है| यही योग यदि नवांश में बन जाए तो वह इस तरह की सोच पर मोहर लगा देते हैं|
अब बात करते हैं ऐसे कुछ लोगों की जो ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथों में दिए हुए है |
नवांश कुंडली में शनि शुक्र की राशि में और शुक्र शनि की राशि में हो तो महिला की शारीरिक भूख अधिक होती है|
नवांश कुंडली में शुक्र मंगल की राशि में हो और मंगल शुक्र की राशि में तो व्यक्ति अपने जीवनसाथी के अलावा बाहर शारीरिक संबंध बनाने में नहीं हिचकिचाते है|
शुक्र मंगल आत्मकारक की नवांश राशि से बारहवें भाव में हो तो व्यक्ति चरित्रहीन होता है|
केतु आत्मकारक की नवांश राशि से नवम भाव में हो तो वृद्धावस्था तक भी व्यक्ति पर पुरुष या पर स्त्री के बारे में सोचता रहता है|
शुक्र सभी वर्गों में केवल मंगल या शनि की राशियों में हो तो व्यक्ति चरित्रहीन होता है|
नवांश कुंडली में चंद्रमा के दोनों ओर शनि और मंगल हो तो पति-पत्नी दोनों ही व्याभिचार करते हैं|
जन्म कुंडली का सप्तम का स्वामी नवांश कुंडली में बुद्ध की राशि में बैठा हो और बुध उसे देख ले तो आपका जीवन साथी द्विअर्थी बातें करते हैं और लोगों को रिझाने का काम करते हैं|
जैसा की आप सबको भी ज्ञात होगा कि पंचम और सप्तम भाव से संतान प्राप्ति देखते हैं| यदि दोनों का संबंध छठे भाव से हो जाए तो व्यक्ति विशेष में प्रजनन शक्ति कम होती है| जातक अलंकार के अनुसार यदि शुक्र मंगल की राशियों में हो तो वह अपने जीवनसाथी को सेक्स संबंधों में खुश नहीं रख पाता है| इसी तरह यदि शनि शुक्र का योग दशम भाव में हो तो व्यक्ति में नपुंसकता के योग होते हैं| संकेत निधि के अनुसार यदि शुक्र चंद्रमा की युति नवम भाव में हो तो ऐसे जातक की पत्नी कुटिल होती है|
कुंडली के चौथे भाव से व्यक्ति के चरित्र का पता लगाया जाता है और बार-बार सेक्स संबंधों में आपकी रुचि को दर्शाता है किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले ही इन दोनों भावों का गहन विश्लेषण आवश्यक है | हमारा आप सब से अनुरोध है कि यह नियम सीधे कुंडलियों पर ना लगाएं अपितु पूरी कुंडली का विश्लेषण करने के बाद ही इन लोगों को जांचे|
...............और इस तरह काफी योग है।
विवाह और वैवाहिक जीवन---
A:-सम्बंधित भाव ।
1:-दूसरा भाव:-परिवार और परिवार की उन्नति और विस्तार।
2:-चौथा भाव:-पारिवारिक खुशियां और सुख ।
3:-पांचवा भाव:-संतान और प्रेम संभंध ।
4:-सातवा भाव:-पति/पत्नी ,विवाह,वैवाहिक जीवन।
5:-आठवां भाव:- सुमंगल्या (स्त्री की जन्म कुंडली में) ।
6:-बारहवां भाव:-शयन सुख ।
*विवाह हेतु सम्बंधित गृह*
1:-शुक्र:-पत्नी का कारक, विवाह,यौनाचार,कामुकता आदि।
2:-गुरु:-पति का कारक ।
3:-मंगल:-पति का कारक, विवाह का बंधन,यौनाचार आदि ।
*शुक्र का राशियों में संभंध*
1:-मेष:-प्रवल प्रेमी,कई स्त्रियों के साथ संभंध ।
2:-बृषभ:-वैवाहिक परमानंद,सुन्दर और कर्तव्यनिष्ठ पत्नी,सुखी विवाह,प्रेम में अटल।
3:-मिथुन:-अत्यधिक काम लोलुपता,कामुक,दोहरा संभंध,ज्ञानी पत्नी,यदि शुक्र पीड़ित--दो विवाह योग, पत्नी से वियोग का योग।
4:-कर्क:-तीक्ष्ण कामुक ,यौनाचार में अधिक संलिप्त ,यदि शुक्र पीड़ित--दो पत्नी,भावुक पत्नी,वैवाहिक जीवन में कम खुशियां ।
5:-सिंह:-कुलीन परिवार से अछि रमणीय पत्नी,गहरी निष्ठावान भावनाएं कम काम शक्ति ।
6:-कन्या:-प्रेम के द्वारा योनाचार की अपेक्षा मानसिक संतुष्टि,निम्न जाती की स्त्रियों का स्नेही,पत्नी सुन्दर विचारवाली,पत्नी से वियोग का योग ।
7:-तुला:-समृद्धशाली सफल विवाह के साथ प्रेम सम्भन्धों में सफलता ,उदार,सौभाग्यशाली और सुन्दर पत्नी।
8:-बृश्चिक:-अतिरिक्त वैवाहिक संभंध,उत्तेजना होने पर शीघ्र वीर्य पतन,झगड़ालू पत्नी का योग।
9:-धनु:-सुखी वैवाहिक जीवन,एक सफल विवाह हलके फुल्के इश्क हो सकते हैं।
10:-मकर:-अस्थिर प्रेम संभंध,प्रेम में बदनामी,विवाह में विलम्ब,घमंडी पत्नी हो सकती हैं।
11:-कुम्भ:-सम्भोग की आदतों में शुद्ध ,प्रेम में सफलता,विलम्ब से विवाह,खुश मिजाज और अच्छी भली पत्नी का पति।
12:-मीन:-कई लगाव लेकिन अंत में एक सुखी विवाह,शालीन और सती सावित्री पत्नी,वैवाहिक जीवन में खुशियों की कमी।
*अन्य ग्रहों के साथ शुक्र युति*
1:-शुक्र+सूर्य=जातक यौनाचार में सक्रिय,एक उच्च जन्म की पत्नी जिसके व्यक्तित्व में राजसिक आभा होती हैं।
2:-शुक्र+चन्द्रमा=एक उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा वाली पत्नी,कदाचित वह असंगत हो सकती हैं।
3:-शुक्र+मंगल= जातक अधिक कामुक और पत्नी अभिमानी एवं दिखने में युवा होती है,अर्थात हम यह कह सकते हैं कि मंगल किसी की उम्र को भी चुरा लेता है ,अगर कोई 50 वर्ष का होगा तो हमें वह 40 वर्ष जैसा दिखाई देगा।अतः यहाँ यह सिद्धान्त लागु होता हैं कि मंगल उम्र चुराता हैं।
4:-शुक्र+बुद्ध=बुद्धिमान पत्नी,सज्जन और दिखने में युवा,जातक की सोच ओरबातें कामुकता के रंग में रंगी होती हैं,अश्लील साहित्य का स्नेही होता हैं।
5:-शुक्र+गुरु= पत्नी धर्म पारायण,सुन्दर,विशुद्ध और अच्छे पुत्रों की जन्म देने वाली होती हैं।
6:-शुक्र+शनि=एक सौम्य पत्नी और जाताक अच्छी वैवाहिक खुशियों का आनंद लेता है यदि शुक्र+शनि पीड़ित हों तो पत्नी बुरे स्वाभाव की होती हैं।
7:-शुक्र+राहु=असफल गुप्त प्रेम संभंध होते हैं।
8:-शुक्र+केतु=संसर्ग के विषयों में अति संबेदंनशील, अति शुक्ष्म ग्राही होते हैं।
*देखें शुक्र किस भाव में हैं*
1:-लग्न:-पहला भाव;-रोमानी स्त्रियों के प्रति आकर्षण,जातक अपनी पत्नी से प्रेम करता हैं।
2:-दूसरे भाव:-जोरू का गुलाम,विवाह असन्तुष्टि,असंस्तुस्ट पत्नी।
3:-तीसरा भाव:-एक कर्तव्यनिष्ठ पत्नी के साथ अच्छा परिवार,परन्तु पर स्त्रियों का रसिया।
4:-चौथा भाव:- सुखी पारिवारिक जीवन,हल्के फुल्के प्रेम संभंध ।
5:-पांचवा भाव:-रोमानी सख्सियत, विवाह से पहले प्रेम संभंध भी हो सकते हैं।
6:-छटा भाव:-अनैतिक ,पोरुसत्व की कमी,स्त्रियों की नापसंद,रोगी पत्नी का पति ।
7:-सातवां भाव:- यौनाचार का स्नेही, सुन्दर पत्नी,कामुक और रोमानी व्यक्तित्व ।
8:-आठवां भाव:-गैर कानूनी संभंध,प्रेम सम्भनधों में परेशानिया,अस्वस्थ पत्नी हो सकती हैं।
9:-नवम भाव:-एक सुखी पारिवारिक जीवन ,समर्पित पत्नी हो सकती हैं।
10:-दसम भाव:-एक अच्छा विवाह,प्रचुर योनांनंद,पत्नी से लाभ हो सकता हैं।
11:-ग्यारह भाव:-रोमानी व्यक्तित्व ,पत्नी से लाभ हो सकता हैं
12:-बारहवां भाव:-योनांनंद का स्नेही,प्रेम प्रसंगों में सिद्धान्तहीन,रोगी पत्नी का पति हो सकता हैं।
---जानिए की शादी तय होकर भी क्यों टूट जाती है?-----
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यदि कुंडली में सातवें घर का स्वामी सप्तमांश कुंडली में किसी भी नीच ग्रह के साथ अशुभ भाव में बैठा हो तो शादी तय नहीं हो पाती है.
यदि दूसरे भाव का स्वामी अकेला सातवें घर में हो तथा शनि पांचवें अथवा दशम भाव में वक्री अथवा नीच राशि का हो तो शादी तय होकर भी टूट जाती है.
यदि जन्म समय में श्रवण नक्षत्र हो तथा कुंडली में कही भी मंगल एवं शनि का योग हो तो शादी तय होकर भी टूट जाती है.
यदि मूल नक्षत्र में जन्म हो तथा गुरु सिंह राशि में हो तो भी शादी तय होकर टूट जाती है. किन्तु गुरु को वर्गोत्तम नहीं होना चाहिए.
यदि जन्म नक्षत्र से सातवें, बारहवें, सत्रहवें, बाईसवें या सत्ताईसवें नक्षत्र में सूर्य हो तो भी विवाह तय होकर टूट जाता है.

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