शनि देव की कृपा किन राशियों पर बरसती है? जानिए न्याय के देवता की प्रिय राशियाँ और लाभ

Saturn favourite Zodiac sign : ज्योतिष शास्त्र में शनि देव को नवग्रहों में विशेष स्थान प्राप्त है। उन्हें कर्म का न्यायाधीश माना जाता है क्योंकि वे प्रत्येक व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं। इसीलिए इन्हें कर्मफलदाता शनि भी कहा जाता है। शनि की स्थिति कुंडली में अत्यंत प्रभावशाली होती है और यह जातक के जीवन, करियर और व्यवसाय पर गहरा असर डालती है।
शनि देव एक राशि में लगभग ढाई वर्षों तक विराजमान रहते हैं, जिसके चलते उनका गोचर असर दीर्घकालिक और निर्णायक होता है। आमतौर पर शनि को संघर्ष, न्याय, अनुशासन और विलंब से जोड़कर देखा जाता है। यदि कुंडली में शनि कमजोर हो तो व्यक्ति को जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
हालांकि कुछ राशियों पर शनिदेव की विशेष कृपा सदैव बनी रहती है। इन जातकों को शनि की कृपा से जीवन में सफलता, सम्मान, समृद्धि और स्थिरता प्राप्त होती है।
शनि देव की प्रिय राशियाँ
मकर (Capricorn) और कुंभ (Aquarius)
शनि देव मकर और कुंभ राशियों के स्वामी ग्रह माने जाते हैं, और इन्हीं जातकों पर उनकी सबसे विशेष कृपा भी बनी रहती है।
इन राशियों के लोगों को मिलने वाले लाभ
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करियर में तरक्की और प्रतिष्ठा
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व्यवसाय में लाभ और निवेश से सकारात्मक परिणाम
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शैक्षणिक क्षेत्र में सफलता
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धन, सुख और सामाजिक प्रतिष्ठा की प्राप्ति
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संघर्ष के बाद निश्चित सफलता
मकर और कुंभ राशि के जातक मेहनती, अनुशासित और ईमानदार स्वभाव के होते हैं। ये लोग अक्सर झूठ, धोखा और बुराई से दूर रहते हैं, जिसके कारण शनिदेव की उन पर विशेष दृष्टि बनी रहती है। ये जातक अपनी मेहनत और ईमानदारी से समाज में एक खास पहचान बनाते हैं।
शनिदेव की कृपा पाने के उपाय
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, मकर और कुंभ राशि के जातकों को शनि के दिन शनिवार को विशेष पूजा करनी चाहिए। यह उपाय सभी राशियों के लिए भी लाभदायक हो सकते हैं।
शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए करें ये कार्य
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शनिदेव के मंदिर जाकर सरसों के तेल का दीपक जलाएं
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काले वस्त्र, तिल, काली उड़द, काला तिल, लोहे का दान करें
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शनिदेव के मंत्रों का जाप करें
शनिदेव के प्रमुख मंत्र
शनि गायत्री मंत्र:
ॐ शनैश्चराय विदमहे छायापुत्राय धीमहि । तन्नो मन्दः प्रचोदयात् ॥
शनि बीज मंत्र:
ॐ प्रां प्रीं प्रों सः शनैश्चराय नमः ॥
शनि स्तोत्र:
ॐ नीलांजन समाभासं रवि पुत्रं यमाग्रजम् । छायामार्तंड सम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम् ॥
शनि पीड़ाहर स्तोत्र:
सूर्यपुत्रो दीर्घदेहो विशालाक्षः शिवप्रियः । दीर्घचारः प्रसन्नात्मा पीडां हरतु मे शनिः ॥
शनि के सरल मंत्र:
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ॐ शं शनैश्चराय नमः
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ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः
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ॐ शन्नो देविर्भिष्ठयः आपो भवन्तु पीतये। सय्योंरभीस्रवन्तुनः ॥