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ज्योतिष में योगिनी दशा का महत्व

Importance of Yogini Dasha in Astrology
 
ज्योतिष में योगिनी दशा का महत्व
योगिनी दशा वैदिक ज्योतिष की एक अत्यंत महत्वपूर्ण चंद्र आधारित दशा प्रणाली है, जिसे मुख्यतः फलादेश (prediction) के लिए प्रयोग किया जाता है। यह दशा प्रणाली विंशोत्तरी दशा की ही तरह लोकप्रिय है, परंतु इसकी विशेषता इसकी संक्षिप्तता और गहराई में है।

 योगिनी दशा क्या है?

योगिनी दशा आठ योगिनियों के नाम पर आधारित है और यह कुल 36 वर्षों की अवधि की होती है। इसमें प्रत्येक योगिनी को एक निश्चित वर्ष का स्वामित्व प्राप्त है:
 

 योगिनी दशा की विशेषताएं

1. चंद्रमा आधारित प्रणाली

यह दशा प्रणाली जन्म समय में चंद्रमा की स्थिति पर आधारित होती है। इसे जातक के चंद्र नक्षत्र और उस नक्षत्र में चंद्र की स्थिति से गिना जाता है।

2. संक्षिप्त अवधि

चूँकि योगिनी दशा केवल 36 वर्षों की होती है, यह जीवन के महत्वपूर्ण पड़ावों को तेजी से दिखाती है और अल्पकालिक घटनाओं को जानने के लिए उपयोगी होती है।

3. सटीक फलादेश के लिए उपयुक्त

खासतौर पर जब छोटी-छोटी घटनाओं या विशिष्ट कालखंडों की भविष्यवाणी करनी हो, तो योगिनी दशा अत्यंत प्रभावी सिद्ध होती है।

4. ग्रह स्वामित्व के आधार पर फल

प्रत्येक योगिनी का फल उस पर शासन करने वाले ग्रह पर निर्भर करता है। जैसे "भ्रामरी" बुध की दशा होगी, तो बुध की कुंडली में स्थिति, भाव, दृष्टि आदि के आधार पर फल बदलेंगे।

  •  योगिनी दशा के प्रयोग
  •  व्यवसाय में उतार-चढ़ाव
  •  स्वास्थ्य संबंधी घटनाएं
  •  यात्रा, विवाह, संतान जैसे निर्णयों के लिए
  •  मृत्यु के समय निर्धारण में भी कुछ विद्वान इसका उपयोग करते हैं।
  •  वैज्ञानिक या मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण

हालांकि आधुनिक विज्ञान योगिनी दशा को एक ज्योतिषीय अवधारणा मानता है, लेकिन मनोवैज्ञानिक रूप से यह प्रणाली एक समय संरचना प्रदान करती है, जिससे व्यक्ति अपने जीवन के विभिन्न पड़ावों को समझने और निर्णय लेने में सहारा पा सकता है।

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