ठाकुर बांके बिहारी कॉरिडोर और न्यास गठन पर विरोध: क्या है विवाद की असली वजह?

Thakur Banke Bihari Corridor and Protest on Formation of Trust: What is the real reason for controversy?
 
Thakur Banke Bihari Corridor and Protest on Formation of Trust: What is the real reason for controversy?

(रिपोर्ट: पूरन चंद्र शर्मा | स्रोत: विनायक फीचर्स)   वृंदावन, मथुरा  ऐतिहासिक ठाकुर बांके बिहारी मंदिर के लिए प्रस्तावित कॉरिडोर परियोजना को लेकर लंबे समय से विवाद जारी है। इस विरोध का नेतृत्व मंदिर के सेवायत गोस्वामी समाज कर रहा है, जिनका कहना है कि यह परियोजना मंदिर की धार्मिक परंपराओं, सांस्कृतिक विरासत और स्थानीय जीवनशैली पर प्रतिकूल असर डालेगी।

गोस्वामी समाज का विरोध क्यों?

गोस्वामी समाज के अनुसार, बांके बिहारी मंदिर उनकी निजी संपत्ति है और वे इसके संचालन को पारंपरिक रूप से देख रहे हैं। उनका तर्क है कि सरकार द्वारा इस कॉरिडोर के लिए नया ट्रस्ट बनाना अनावश्यक है, क्योंकि मंदिर का ट्रस्ट पहले से अस्तित्व में है।
सेवायत आचार्य आनंद बल्लभ गोस्वामी का कहना है कि यदि कॉरिडोर का निर्माण हुआ, तो ठाकुरजी को उनके पारंपरिक मार्गों से निधिवन जाना संभव नहीं होगा, जिससे उनकी centuries-old परंपरा टूट जाएगी।

इसके अलावा, दुकानें और घर हटाने के प्रस्ताव को लेकर भी स्थानीय लोगों में नाराज़गी है। वे मानते हैं कि इससे उनकी रोजी-रोटी पर असर पड़ेगा और अधिग्रहण प्रक्रिया पारदर्शी नहीं होगी।

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सरकार का पक्ष: कॉरिडोर क्यों जरूरी?

वृंदावन का बांके बिहारी मंदिर देशभर से लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। त्योहारों, सप्ताहांत, एकादशी और नववर्ष जैसे अवसरों पर श्रद्धालुओं की संख्या नियंत्रण से बाहर हो जाती है। मंदिर तक पहुँचने का मार्ग संकरी गलियों से होकर गुजरता है, जिससे अव्यवस्था और भगदड़ जैसी घटनाएं होती रही हैं।

सरकार का उद्देश्य है कि मंदिर परिसर तक प्रवेश और निकास के लिए सुव्यवस्थित मार्ग बनाए जाएं, जिससे श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके और दर्शनों को सुगम बनाया जा सके।

क्या हैं गोस्वामियों के सुझाव?

गोस्वामी समाज का मानना है कि कॉरिडोर निर्माण की आवश्यकता नहीं है। उनका सुझाव है कि:

  • मंदिर परिसर में मौजूद पाठशाला, पोस्ट ऑफिस और चबूतरा जैसी संपत्तियों को पुनर्विकसित किया जाए।

  • परिक्रमा मार्ग को चौड़ा किया जाए और एक्सप्रेसवे से कनेक्टिविटी को बेहतर बनाया जाए।

  • ई-रिक्शा स्टैंड, पार्किंग और शौचालय जैसी सुविधाएं विकसित की जाएं।

इन उपायों से भीड़ को व्यवस्थित किया जा सकता है, साथ ही वृंदावन का पारंपरिक स्वरूप भी अक्षुण्ण रहेगा।

कानूनी स्थिति और सुप्रीम कोर्ट में याचिका

19 मई 2025 को देवेंद्र नाथ गोस्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की, जिसमें उन्होंने कहा कि परियोजना के कार्यान्वयन में स्थानीय सेवायतों को शामिल नहीं किया गया है और इससे मंदिर की पारंपरिक व्यवस्था बाधित होगी।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई 2025 को यूपी सरकार को कॉरिडोर योजना को आगे बढ़ाने की अनुमति दी, लेकिन मंदिर की निधियों के उपयोग पर रोक बरकरार रखी।

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स्थानीय लोगों की चिंता और भरोसे की जरूरत

स्थानीय व्यापारियों और नागरिकों में इस बात की आशंका है कि अधिग्रहीत भूमि का उपयोग बाद में व्यावसायिक विकास जैसे मॉल या होटल निर्माण के लिए हो सकता है, जिससे बृज की आत्मा और संस्कृति को ठेस पहुँचेगी।  लोगों का यह भी कहना है कि पहले अयोध्या में मुआवजे की दरें कम रखी गई थीं, लेकिन पुनर्विकास के बाद वही दुकानें ऊँचे दामों पर बेची गईं। इसीलिए बृजवासी अब आशंकित हैं कि कहीं उनके साथ भी धोखा न हो।

क्या है आगे का रास्ता?

अब राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह सेवायत समाज, स्थानीय निवासियों और श्रद्धालुओं को यह भरोसा दिलाए कि परियोजना जनहित में है, पारदर्शी ढंग से लागू की जाएगी और वृंदावन की प्राचीन संस्कृति और श्रद्धा के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा।  यदि यह सुनिश्चित किया जाए कि श्रद्धालुओं को सुरक्षित, सरल और व्यवस्थित दर्शन का अनुभव मिले, साथ ही स्थानीय परंपराओं का संरक्षण भी हो, तो यह परियोजना आस्था और विकास के बीच एक संतुलन स्थापित कर सकती है।

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