सर्व मंगल कामना पूर्ति का महापर्व: पंच दिवसीय दीपावली का महत्व

The grand festival of fulfillment of all auspicious wishes: The significance of the five-day Diwali
 
सर्व मंगल कामना पूर्ति का महापर्व: पंच दिवसीय दीपावली का महत्व

(डॉ. सुधाकर आशावादी द्वारा विशेष आलेख)

भारतीय संस्कृति में सभी पर्व न केवल सामाजिक सद्भाव और पारस्परिक सहयोग का संदेश देते हैं, बल्कि ये समाज को जोड़ने और जनमानस की भागीदारी सुनिश्चित करने का सशक्त माध्यम भी हैं। रोटी, कपड़ा और मकान की चाहत में जूझ रहे जनमानस के लिए ये पर्व जहाँ परिजनों के साथ खुशियाँ मनाने का अवसर बनते हैं, वहीं ये परिवारों की आर्थिक समृद्धि में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि पर्वों के कारण एक बड़ा वर्ग अल्पकालिक रोज़गार पाकर अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने में समर्थ होता है।

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यदि दीपावली की विशिष्टता का अध्ययन करें, तो यह स्पष्ट होता है कि अन्य पर्वों की अपेक्षा दीपावली सर्व मंगल कामना पूर्ति का महापर्व है। यह अकेला पर्व नहीं, बल्कि पाँच पर्वों की श्रृंखला है, जो अपनी-अपनी विशिष्टता से समाज को आर्थिक और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध करती है।

 

1. धनतेरस (कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी)

 

यह श्रृंखला का प्रथम पर्व है।

  • आरोग्य का पर्व: इसे औषधि के देवता भगवान धन्वंतरि की जयंती के रूप में मनाया जाता है और आरोग्य रहने की कामना की जाती है।

  • आर्थिक समृद्धि: इस पर्व पर नई वस्तुओं को क्रय करने की परंपरा है। लोग गृह सज्जा सामग्री, घरेलू उपकरण और रसोई के नए बर्तन खरीदते हैं। यह परिवार की भौतिक समृद्धि और कल्याण का प्रतीक माना जाता है।

 

2. नरक चतुर्दशी (कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी)

दीपावली पर्व श्रृंखला का दूसरा पर्व जिसे काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है।

  • विजय पर्व: इसे दानव नरकासुर पर भगवान श्रीकृष्ण की विजय के रूप में मनाया जाता है। यह अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है।

  • यमराज की पूजा: मान्यता है कि इस दिन यमराज की पूजा करने से मृत्यु का भय कम होता है और अकाल मृत्यु से मुक्ति मिलती है।

3. दीपावली (कार्तिक अमावस्या) – मुख्य प्रकाश पर्व

कार्तिक अमावस्या को मनाया जाने वाला यह मुख्य पर्व भारतीय संस्कृति में स्वच्छता और प्रकाश पर्व का पर्याय है।

  • श्री राम की वापसी: यह लंकापति रावण पर भगवान श्रीराम की विजय के उपरांत अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है।

  • लक्ष्मी पूजन: इसी दिन धन की देवी मां लक्ष्मी की विशिष्ट पूजा का विधान है।

  • अंधकार पर विजय: वर्ष भर की सबसे काली रात को मिट्टी के दीयों (सरसों के तेल और कपास की बत्ती) से रोशन करके अंधकार पर विजय का संकल्प पूर्ण किया जाता है।

  • सामाजिक महत्व: इस पर्व पर आर्थिक समृद्धि की कामना के साथ मित्रों, परिचितों और सगे-संबंधियों के बीच उपहारों का आदान-प्रदान किया जाता है। आतिशबाजी जहाँ प्राकृतिक रूप से कीट-पतंगों को नष्ट करती है, वहीं दीपों की रोशनी से अंधकार पर विजय प्राप्त होती है।

4. गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट (कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा)

दीपावली के ठीक अगले दिन यह पर्व मनाया जाता है।

  • गोवर्धन पर्वत की पूजा: पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र देवता के कोप से ब्रजवासियों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर उनकी रक्षा की, तभी से गोवर्धन पर्व मनाया जाने लगा।

  • अन्नकूट उत्सव: ब्रजवासियों द्वारा इंद्र का कोप शांत होने पर गोवर्धन की पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाया गया। इसमें उपलब्ध अधिक से अधिक मौसमी तरकारियों के मिश्रण से पकवान बनाकर भोग लगाया जाता है। कालांतर में यह पर्व गोवंश वृद्धि की कामना हेतु भी मनाया जाने लगा।

5. भाई दूज/यम द्वितीया (कार्तिक शुक्ल द्वितीया)

यह श्रृंखला का पांचवा और अंतिम पर्व है।

  • बहन-भाई का प्रेम: भारतीय समाज में बहन-भाई का प्रेम श्रेष्ठ और पावन माना गया है। इस पर्व पर बहनें अपने भाई की लंबी उम्र, उत्तम स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना करती हैं। भाई भी बहन का रक्षा कवच बनने का वचन देता है।

  • चित्रगुप्त पूजा: कायस्थ समाज में इस दिन कलम-दवात और चित्रगुप्त जी की पूजा की भी परंपरा है।

इस प्रकार, दीपावली का यह पंच पर्व विधान सर्व कल्याण, सुख-समृद्धि और संबंधों की प्रगाढ़ता की कामना के साथ पूर्ण होता है।

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