Krishna Janmashtami : इस तरह जन्में श्रीकृष्ण भगवान 

Krishna Janmashtami: This is how Lord Krishna was born
Krishna Janmashtami: This is how Lord Krishna was born

(श्री आनंद बल्लभ गोस्वामी जी महाराज-विभूति फीचर्स) लीला पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा में कंस के कारागार में हुआ। प्रातः काल से ही रिमझिम- रिमझिम बरसात हो रही थी। श्री ब्रह्मा जी ने देवताओं को जिस प्रकार समझाया था उसी के अनुसार अष्टमी तिथि की प्रतीक्षा संपूर्ण सृष्टि कर रही थी।

भगवान श्री कृष्ण का प्राकट्य गए थे 

देवकी मैया के गर्भ से वसुदेव जी के आंगन में भगवान श्री कृष्ण का प्राकट्य गए थे 

गायों के थन से स्वत: ही दुग्ध धारा प्रवाहित होने लगी। खानों से अचानक रत्न प्रकट होने लगे और स्वत: ही ऋषि मुनियों के यज्ञ कुंड से अग्नि प्रज्वलित होने लगी। धीरे-धीरे संध्याकाल हुई तो बरसात तीव्र गति से होने लगी। यमुना की हिलोरे तीव्र गति से प्रवाहित होने लगी। गरज गरज कल बिजली चमकने लगीअंततः सुंदर समय आ गया।  मध्यरात्रि ठीक बारह बजे कंस के कारागार में देवकी मैया के गर्भ से वसुदेव जी के आंगन में भगवान श्री कृष्ण का प्राकट्य हो गया। ब्रह्मा जी सहित समस्त देवताओं ने भगवान की स्तुति की जिसे श्रीमद्भागवत में गर्भ स्तुति के नाम से जाना गया।

सत्यव्रतम सत्यपरम त्रिनेत्रन, सत्यस्य योनिम निहितं च सत्ये।
सत्यस्य सत्यमृतसत्यनेत्रम सत्यात्मकम त्वां शरणं ।।

वसुदेव- देवकी की हथकड़ी और बेड़ियां अपने आप खुल गईं

स्तुति करके देवताओं ने प्रस्थान किया।  इसके बाद भगवान ने वसुदेव जी एवं माता देवकी को समझाया कि किस प्रकार नंद बाबा के आंगन में भगवान कृष्ण को तथा मैया यशोदा की कन्या को  कारागार तक पहुंचाना है, बाकी सब काम वे स्वयं कर लेगें। । 
समस्त पहरेदार सो गये, जेल के ताले अपने आप खुल गए तथा वसुदेव- देवकी की हथकड़ी और बेड़ियां अपने आप खुल गईं।

वसुदेव- देवकी की हथकड़ी और बेड़ियां अपने आप खुल गईं

श्री वसुदेव जी एक सूप में कन्हैयाजी को अपने सिर पर धारण करके, मथुरा की गलियों से होते हुए यमुना किनारे तक पहुंच गए। उस समय घनघोर गर्जना के साथ बरसात आरंभ हो गई। यमुना का जलस्तर भी हिलोरें  मार कर बढ़ने लगा। श्री वसुदेव जी यमुना के जल में प्रविष्ट हो गये। धीरे-धीरे यमुना का पानी बढ़ने लगा यहां तक कि वसुदेव जी की दाढ़ी भी डूबने लगी। वसुदेव जी घबराकर विचार करने लगे कि कोई आ जाए और मेरे लाल को ले जाए। तभी भगवान ने अपने चरण सूप से नीचे लटका कर यमुना जल में स्पर्श कर दिए तो धीरे-धीरे यमुना महारानी नीचे होने लगी।

कन्या का रोना सुनकर कंस आया और ठहाका लगाकर हंसने लगा।​​​​​

कन्या का रोना सुनकर कंस आया और ठहाका लगाकर हंसने लगा।​​​​​​​​​​​​​​

वसुदेव जी आराम से नंद बाबा के आंगन में मैया यशोदा के कक्ष में प्रविष्ट हो गए।नंद बाबा और यशोदा से उनकी कन्या को साथ लेकर सीधे मथुरा में कारागृह में ले जाकर कन्या को देवकी को सौंप दिया। हथकड़ी और बेड़ियां अपने आप पुनः बंद हो, गई पहरेदार जाग गये। कन्या का रोना सुनकर कंस आया और ठहाका लगाकर हंसने लगा। कन्या का पैर पकड़कर कंस ने पत्थर पर पटक कर मारना चाहा तो कन्या आसमान में पहुंच गई। तभी आकाशवाणी हुई कि अरे दुष्ट कंस तू मुझे क्या मारेगा, तेरा मारने वाला तो ब्रज में जन्म ले चुका है।  उधर ब्रज में नंद बाबा के आंगन में बधाइयां बजने  लगी। समस्त ग्वाल बाल और ब्रज की गोपियां यशोदा मैया तथा नंद बाबा को बधाइयां देने लगे । बोलिए कृष्ण कन्हैया लाल की जय।( लेखक श्रीमद् विष्णुस्वामीहरिदासीया संप्रदाय के आचार्य तथा ठाकुर श्रीबांकेबिहारीजी मंदिर, श्रीधाम वृंदावन के सेवायत हैं।

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