गुरुवार व्रत विधि, महत्व-मंत्र और पूजा के नियम

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गुरुवार व्रत विधि, महत्व-मंत्र और पूजा के नियम

गुरुवार का व्रत हिंदू धर्म में भगवान विष्णु और गुरु बृहस्पति को समर्पित होता है। इस व्रत को करने से जीवन में सुख, समृद्धि, ज्ञान और वैवाहिक जीवन में स्थिरता प्राप्त होती है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है, जिनकी कुंडली में गुरु ग्रह कमजोर है। नीचे गुरुवार व्रत की विधि, नियम और महत्व के बारे में विस्तार से बताया गया है।

गुरुवार व्रत का महत्व


आध्यात्मिक लाभ: गुरुवार का व्रत भगवान विष्णु और गुरु बृहस्पति की कृपा प्राप्त करने का एक प्रभावी माध्यम है। यह मन को शांत करता है और आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है।

आर्थिक समृद्धि: यह व्रत धन, संपत्ति और करियर में उन्नति के लिए किया जाता है।

वैवाहिक सुख: अविवाहित लोगों के लिए यह व्रत अच्छा जीवनसाथी प्राप्त करने में मदद करता है, जबकि विवाहित लोगों के लिए वैवाहिक जीवन में सुख और सामंजस्य लाता है।

स्वास्थ्य और ज्ञान: गुरु ग्रह ज्ञान और बुद्धि का कारक है। इस व्रत से मानसिक शक्ति और स्वास्थ्य में सुधार होता है।


गुरुवार व्रत की विधि

प्रातःकाल की तैयारी:


सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ पीले वस्त्र धारण करें। पीला रंग गुरु ग्रह का प्रतीक है।
पूजा स्थल को साफ करें और गंगाजल छिड़ककर पवित्र करें।

पूजा की व्यवस्था:


एक चौकी पर पीला कपड़ा बिछाएं और भगवान विष्णु या गुरु बृहस्पति की मूर्ति/चित्र स्थापित करें।
पूजा सामग्री में पीले फूल, चने की दाल, गुड़, केला, हल्दी, चंदन, धूप, दीप और पीली मिठाई शामिल करें।

संकल्प:


हाथ में जल, फूल और चावल लेकर व्रत का संकल्प करें। उदाहरण: "मैं भगवान विष्णु और गुरु बृहस्पति की कृपा के लिए यह व्रत करता/करती हूँ।"

पूजा और मंत्र जाप:


भगवान को हल्दी, चंदन और कुमकुम का तिलक लगाएं।
पीले फूल और तुलसी के पत्ते अर्पित करें।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय या ॐ बृं बृहस्पतये नमः मंत्र का 108 बार जाप करें।
यदि समय हो, तो विष्णु सहस्रनाम या गुरु चालीसा का पाठ करें।

भोग:


भगवान को चने की दाल, गुड़, केला और पीली मिठाई का भोग लगाएं।
भोग में तुलसी का पत्ता अवश्य शामिल करें।

आरती और प्रार्थना:


पूजा के अंत में भगवान विष्णु या गुरु बृहस्पति की आरती करें।
अपनी मनोकामनाओं के लिए प्रार्थना करें।

व्रत का पालन:


पूरे दिन नमक का सेवन न करें। सात्विक भोजन, जैसे फल, दूध, या बिना नमक का खाना एक समय ग्रहण करें।
कुछ लोग निर्जल व्रत भी रखते हैं, लेकिन यह स्वास्थ्य के अनुसार करें।

गुरुवार व्रत के नियम


शुद्धता: व्रत के दिन शारीरिक और मानसिक शुद्धता बनाए रखें। क्रोध, झूठ और नकारात्मक विचारों से बचें।
निषिद्ध चीजें: मांस, मदिरा, तामसिक भोजन और नमक का सेवन न करें।
दान-पुण्य: व्रत के दिन पीले वस्त्र, चने की दाल, हल्दी या पीली मिठाई का दान करें। किसी ब्राह्मण या गुरु को दक्षिणा देना शुभ होता है।
व्रत की अवधि: व्रत कम से कम 7, 11 या 21 गुरुवार तक करें। समापन पर उद्यापन करें, जिसमें हवन और दान शामिल हो।

गुरुवार व्रत कथा


गुरुवार व्रत की कथा में एक गरीब ब्राह्मण की कहानी प्रचलित है, जिसने गुरु बृहस्पति की कृपा से धन और सुख प्राप्त किया। इस कथा को व्रत के दिन पढ़ने या सुनने से व्रत का फल दोगुना होता है।

उद्यापन


व्रत की समाप्ति पर उद्यापन करें। इसमें भगवान विष्णु और गुरु बृहस्पति की विशेष पूजा करें।
हवन करें और ब्राह्मण को भोजन करवाकर दान-दक्षिणा दें।
पीले वस्त्र, चने की दाल और पुस्तकों का दान करें।

सावधानियां


यदि स्वास्थ्य ठीक न हो, तो निर्जल व्रत न करें। फलाहार या सात्विक भोजन लें।
पूजा और व्रत श्रद्धा और विश्वास के साथ करें।
महिलाएं मासिक धर्म के दौरान व्रत न करें।

निष्कर्ष


गुरुवार का व्रत एक सरल और प्रभावी उपाय है, जो जीवन में सुख, समृद्धि और ज्ञान लाता है। नियमित रूप से इस व्रत को करने से न केवल आध्यात्मिक उन्नति होती है, बल्कि पारिवारिक और आर्थिक जीवन में भी स्थिरता आती है। भगवान विष्णु और गुरु बृहस्पति की कृपा से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों!

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