Naga Baba Mystery : नागा- एक अनसुलझा रहस्य
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खैर, जब भी हम महाकुंभ के बारे में सुनते हैं, हमारे ज़हन में सबसे पहला ख़्याल आता है साधु बाबाओं का... Infact महाकुंभ की पहचान भी उन्हीं से होती है, आपने अक्सर जब भी महाकुंभ से रिलेटेड राह चलते कोई बोर्ड या होडिंग देखी होगी तो उसमें भी आपको इन्हीं साधु बाबाओं की अपनी बड़ी-बड़ी जटाएं लहराती हुई तस्वीरें देखने को मिलती होंगी... वैसे ये साधु बाबा कोई आम साधू-संत नहीं होते, बल्कि ये नागा साधु होते हैं... जो निर्वस्त्र होते हैं, मतलब इनके शरीर पर कोई कपड़ा नहीं होता...
क्या और कैसी होती है इन नागा बाबाओं की दुनिया?
किस तरह की ज़िंदगी जीते हैं ये नागा साधु?
नागा साधु बनने के लिए किन-किन प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है?
ये नागा साधु सिर्फ महाकुंभ में ही दिखाई क्यों देते हैं?
महाकुंभ खत्म होने के बाद यह नागा साधु विलुप्त कहां हो जाते हैं?
ये कुछ ऐसे सवालात हैं, जो हर किसी के मन में चल रहे होते हैं... तो चलिए आपको हम इन्हीं सवालों के जवाब देने आए हैं... आज नागा बाबाओं की ज़िंदगी का हर एक राज़ खुलने वाला है... इस वीडियो को आप आखिर तक देखिएगा, क्योंकि इस पूरे वीडियो के दौरान आपको नागा साधुओं के बारे में वो-वो जानकारियां सुनने को मिलेंगी जो इससे पहले आपने पहले कभी नहीं सुनी होंगी...
चलिए सबसे पहले जानते हैं कि ये नागा साधु बोला किन्हें जाता है... आदिगुरु शंकराचार्य की ओर से स्थापित किए गए बहुत से अखाड़ों में रहने वाले ऐसे साधु जो नग्न रहते हैं, शरीर के अंगों को छुपाने के नाम पर जो सिर्फ धुनि की राख लपेटकर रखते हैं और युद्ध कला में पारंगत होते हैं, उन्हें नागा साधु कहा जाता है... चलिए अब जानते हैं कि नागा साधु बनाए कैसे जाते हैं... देखिए, संतों के 13 अखाड़ों में सात अखाड़े ही नागा साधु बनाते हैं... ये हैं- जूना अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा, अटल अखाड़ा, अग्नि अखाड़ा, आनंद अखाड़ा और आवाहन अखाड़ा... नागा साधु बनना कोई आसान काम नहीं है... ये प्रक्रिया बहुत ज़्यादा मुश्किल और 12 साल लंबी होती है... नागा साधुओं के पंथ में शामिल होने की प्रक्रिया में ही लगभग छह साल लगते हैं... इस दौरान नए सदस्य एक लंगोट के अलावा कुछ नहीं पहनते... कुंभ मेले में आखिरी प्रण लेने के बाद वे लंगोट भी त्याग देते हैं और जीवन भर यूं ही नग्न यानी दिगंबर रहते हैं...
कोई भी अखाड़ा अच्छी तरह जांच-पड़ताल करके ही योग्य व्यक्ति को ही प्रवेश देता है... पहले उसे लंबे समय तक ब्रह्मचारी के रूप में रहना होता है, फिर उसे महापुरुष और फिर अवधूत यानी संन्यासी बनाया जाता है... अन्तिम प्रक्रिया महाकुंभ के दौरान ही होती है जिसमें उसका खुद का पिण्डदान और दण्डी संस्कार वगैरह कराया जाता है... ये पिंडदान अखाड़े के पुरोहित करवाते हैं... इस प्रक्रिया में साधु को नग्न अवस्था में 24 घंटे तक अखाड़े के ध्वज के नीचे खड़ा होना पड़ता है... इसके बाद वरिष्ठ नागा साधु लिंग की एक विशेष नस को खींचकर उसे नपुंसक कर देते हैं... इसे बिजवान कहा जाता है... अंतिम परीक्षा श्रीदिगंबर की होती है... दिगंबर नागा एक लंगोटी धारण कर सकता है, लेकिन श्रीदिगंबर को बगैर कपड़े के रहना होता है...
आपको ये भी बताते चलें कि नागा साधु बनाने की ये प्रक्रिया महाकुंभ के दौरान ही होती है... चार जगह लगने वाले कुंभ में नागा साधु बनाए जाते हैं और हर जगह के मुताबिक इन नागा साधुओं को अलग-अलग नाम दिए जाते हैं... प्रयागराज के कुंभ में नागा साधु बनने वाले को नागा, उज्जैन में बनने वाले को खूनी नागा, हरिद्वार में बनने वाले को बर्फानी नागा और नासिक में बनने वाले को खिचड़िया नागा कहा जाता है... नागा में दीक्षा लेने के बाद साधुओं को उनकी वरीयता के आधार पर पद भी दिए जाते हैं... इनमें कोतवाल, पुजारी, बड़ा कोतवाल,भंडारी, कोठारी, बड़ा कोठारी, महंत और सचिव के पद होते हैं... इनमें सबसे बड़ा और अहम पद सचिव का होता है...
नागा अखाड़े के आश्रम और मंदिरों में रहते हैं... कुछ तप के लिए हिमालय या ऊंचे पहाड़ों की गुफाओं में जीवन गुज़ारते हैं... अखाड़े के आदेशानुसार ये पैदल भ्रमण भी करते हैं... इसी दौरान किसी गांव की मेड़ पर झोपड़ी बनाकर धुनी भी रमाते हैं...
ये नागा साधु आम जीवन से दूर और कठोर अनुशासन में रहते हैं... इन्हें गुस्से वाला माना जाता है लेकिन reality यही है कि ये किसी को नुकसान नही पहुंचाते... वो बात और है कि नागा संतों को कोई उकसाता है या परेशान करता है तो ये क्रोधित हो जाते हैं... नागा साधु शिव और अग्नि के भक्त माने जाते हैं... सामान्य तौर पर इनका सामान्य जनजीवन से कोई लेना-देना नहीं होता है...
कोई कपड़ा न पहनने के चलते इन शिव भक्त नागा साधुओं को दिगंबर भी कहा जाता है... दिगंबर का मतलब जो आकाश को ही अपना वस्त्र मानते हों... कपड़ों के नाम पर पूरे शरीर पर धूनी की राख लपेटे नागा साधु कुंभ मेले में शाही स्नान के समय ही खुलकर सामने आते हैं और शाही स्नान के समय अपनी-अपनी मंडली के साथ आचार्य, महामंडलेश्वर, श्रीमहंत के रथों की अगुवाई करते हुए शाही स्नान कर पुण्य प्राप्त करते हैं...
ठंड से बचने के लिए नागा साधु योग करते हैं... अपने विचार और खानपान, दोनों में ही नागा साधु संयम रखते हैं... नागा साधु एक तरह से सैन्य पंथ है यानी युद्ध करने वाला और वे एक सैन्य रेजीमेंट की तरह बंटकर रहते हैं और अपने त्रिशूल, तलवार, शंख और चिलम से इस दर्जे को दर्शाते भी हैं... नागा साधु कुंभ के अवसर पर ही दिखाई देते हैं... कुंभ मेले में नागा साधुओं को लेकर खास attraction रहता है और भारतीयों के साथ ही विदेशियों में भी इनको जानने की चाह नज़र आती है...
खैर, क्या आपको मालूम है कि धर्म को बचाने के लिए भी इन नागा साधुओं का एक विशेष योगदान है? जी हां, मठ-मंदिरों की सम्पत्ति बचाने और सनातन धर्म की रक्षा के लिए विभिन्न संप्रदायों की सशस्त्र शाखाओं के रूप में अखाड़ों की स्थापना हुई थी... सामाजिक उथल-पुथल के उस युग में केवल आध्यात्मिक शक्ति से ही इन चुनौतियों का मुकाबला करना संभव न देख शंकराचार्य ने जोर दिया कि युवा साधु व्यायाम करके अपने शरीर को मजबूत बनाएं और अस्त्र-शस्त्र में भी निपुण बनें... इसी के चलते ऐसे मठ बनाए गए जहां व्यायाम के साथ शस्त्र संचालन का भी अभ्यास कराया जाता था और इन मठों को ही अखाड़ा नाम से जाना गया...
साधारण भाषा में अखाड़े उन जगहों को कहा जाता है जहां पहलवान कसरत करते हैं और दांवपेंच सीखते हैं... बाद में कई और अखाड़े अस्तित्व में आए... पहला अखंड आह्वान अखाड़ा’ साल 547 में बना था... शंकराचार्य ने अखाड़ों को मठ, मंदिरों और श्रद्धालुओं की रक्षा के लिए शक्ति का प्रयोग करने के निर्देश दिए थे और उस दौर में इन्हीं अखाड़ों ने सुरक्षा कवच का काम किया...
धर्म रक्षा के मार्ग पर चलने के लिए ही नागा साधुओं ने अपने जीवन को इतना कठिन बना लिया है ताकि adverse circumstances का सामना कर चुनौतियों से निपटा जा सके... क्योंकि जब कोई अपने जीवन में संघर्ष नहीं करेगा तो वो धर्म की रक्षा कैसे कर पाएगा... कहा ये भी जाता है कि जब 18वीं शताब्दी में अफगान लुटेरा अहमद शाह अब्दाली भारत विजय के लिए निकला तो उसकी बर्बरता से इतना खून बहा कि आजतक इतिहास के पन्नों में अब्दाली का जिक्र दरिंदे की तरह किया जाता है... उसने जब गोकुल और वृंदावन जैसी आध्यात्मिक नगरी पर कब्जा करके दरिंदगी शुरू की तब राजाओं के पास भी वो शक्ति नहीं थी जो उससे टकरा पाते... लेकिन ऐसे में हिमालय की कंदराओं से निकली नागा साधुओं ने ही अब्दाली की सेना को ललकारा था...
उस दौर के गजेटियर में ये भी लिखा है कि 1751 के आसपास अहमद खान बंगस ने कुंभ के दिनों में इलाहाबाद के किले पर चढ़ाई की और उसे घेर लिया... हजारों नागा संन्यासी उस समय स्नान कर रहे थे, उन्होंने पहले सारे धार्मिक संस्कार पूरे किए फिर अपने शस्त्र धारण कर बंगस की सेना पर टूट पड़े... तीन महीने तक जमकर युद्ध चला, अंत में पवित्र नगरी प्रयागराज की रक्षा हुई और अहमद खां बंगस की सेना को हार मानकर पीछे लौटना पड़ा... नागा साधु पूरे भारतवर्ष में जहां जो काम ना होता हो वहां पर अड़कर के उस कार्य को सफल कर देते हैं... चाहे रिद्धि के द्वारा, सिद्धि के द्वारा या फिर तन के द्वारा...
चलिए अब आपको मुगल बादशाह औरंगजेब और नागा साधुओं से जुड़ा एक किस्सा सुनाते हैं... जैसा कि ये बात आपको बहुत अच्छी तरह से मालूम है कि औरंगजेब को मुगल काल के सबसे क्रूर बादशाह के तौर पर देखा जाता है... ऐसा कहा जाता है कि अपनी बादशाहत के दौर में औरंगजेब ने हजारों मंदिरों को तोड़कर उसपर मस्जिदों की तामीर करवा दी थी... तो ऐसा बादशाह भला महाकुंभ जैसे एक सशक्त सनातनी आयोजन को कैसे बर्दाश्त कर सकता था... बताया जाता है कि 1666 के आसपास औरंगजेब की सेना ने हरिद्वार कुंभ के दौरान आक्रमण कर दिया था... तब भी नागा संन्यासियों ने उससे लड़ने के लिए मोर्चा संभाला था... औरंगज़ेब भी नागा साधुओं की ऐसी बहादुर देखकर हैरत में पड़ गया था... इसके अलावा कभी जोधपुर की ऐसी कहानियां मिलती है जहां हजारों नागा संन्यासियों ने अपनी जान देकर धर्म की रक्षा की थी... कभी हरिद्वार में तैमूर लंग के समय के टकराव की कहानियां भी मिलती हैं... नागा साधु धर्म के खातिर अपनी आन बान सम्मान के लिए हमेशा कड़ी से कड़ी टक्कर देते रहते हैं और अपनी तपस्या जारी रखते हैं... लेकिन आज़ादी के बाद से नागा साधुओं ने शस्त्र न उठाने का फैसला लिया, क्यों देश की रक्षा के लिए हमारे वीर जवान अपनी ज़िम्मेदारी संभाल चुके थे... फिर भी आज इन साधुओं को गुरुओं की ओर से शस्त्र चलाने की शिक्षा दी जाती है...
खैर, हमने अक्सर नागा साधुओं के बारे में सुना है, लेकिन शायद ही कुछ लोगों को ये बात पता होगी कि पुरुषों की तरह महिलाएं भी नागा साधु बनती हैं... पुरुष नागा साधुओं की तरह ही महिला नागा साधु अपने जीवन को पूरी तरह से ईश्वर की भक्ति और साधना में समर्पित कर देती हैं... उनका जीवन बहुत ही कठिन होता है, जिसमें हर दिन अनुशासन, तप और पूजा-पाठ शामिल होता है... वो साधारण महिलाओं से बिल्कुल अलग जीवन जीती हैं और हर पल भक्ति में लीन रहती हैं...
महिला नागा साधु बनना भी कोई आसान नहीं होता...इसके लिए लंबी और कठिन प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है... सबसे पहले महिलाओं को 6 से 12 साल तक ब्रह्मचर्य नियमों का पालन करना होता है... इस दौरान वो सांसारिक इच्छाओं और मोह-माया से खुद को दूर रखती हैं... उन्हें अपने सारे रिश्ते-नाते तोड़कर खुद को भगवान के प्रति समर्पित करना पड़ता है... अगर वो इस कठोर अनुशासन का पालन कर लेती हैं तभी उनके गुरु उन्हें नागा साधु बनने की इजाजत देते हैं...
यूं तो पुरुष नागा साधु पूरी तरह नग्न रहते हैं, लेकिन महिला नागा साधुओं को गेरुआ वस्त्र पहनने की अनुमति होती है... शर्त बस इतनी होती है कि ये कपड़े कहीं से सिले नहीं होने चाहिए... वो अपने माथे पर तिलक लगाती हैं और उनके पूरे शरीर पर भस्म लगा रहता है... महिला नागा साधु बहुत ही कम दिखाई देती हैं... उन्हें कुंभ मेले में देखा जा सकता है... वहां, वे पुरुष नागा साधुओं के पीछे चलती हैं और शाही स्नान करती हैं... हालांकि, उनके स्नान की जगह पुरुषों से अलग होती है...
खैर, कुंभ जैसे खास मौकों पर नज़र आने वाले नागा साधु कुंभ के बाद अचानक कहां गायब हो जाते हैं, ये भी सोचने वाली बात है... क्योंकि पवित्र नदियों या तीर्थों के अलावा शायद ही किसी अन्य जगह पर नागा साधु नज़र आते हैं... नागा बाबा आमतौर पर पहाड़ों, जंगलों, गुफाओं या प्राचीन मंदिरों में रहते हैं... इनके रहने का ठिकाना ऐसी जगहों पर होता है जहां कम से कम लोग जाते हैं... ज़्यादातर नागा साधु कुंभ मेले के बाद हिमालय की गुफाओं और कंदराओं में चले जाते हैं... यहां वो एकांत में कठोर तपस्या करते हैं... हिमालय की प्रतिकूल परिस्थितियों में रहकर वो अपनी साधना को और गहरा बनाते हैं... वहीं कुछ नागा साधु अपने संबंधित अखाड़े में भी पहुंच जाते हैं... अखाड़ा एक तरह से नागा साधुओं के लिए आश्रमघर की तरह होता है... यहां वो एक साथ रहते हैं और साधना करते हैं... इसके अलावा कुछ नागा साधु जंगलों में भी चले जाते हैं... जंगलों में जाने की वजह उनका प्रकृति प्रेम है... प्रकृति के करीब रहकर वो साधना करते हैं...
कुल मिलाकर, नागा साधुओं का जीवन बेहद मुश्किल होता है... लेकिन जो सुकून उनकी ज़िंदगी में होता है, उस सुकून की तलाश में हम और आप जैसे लोग, अपनी पूरी उम्र निकाल देते हैं