वेदों में लक्ष्मी प्राप्ति के उपाय क्या बताए गये हैं

Ved me lakshmi prapti ke upay

 वेदों के अनुसार लक्ष्मी प्राप्ति के उपाय 

तामहमावह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीं

यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावोदास्योऽश्वान्विन्देयं पुरुषानहम् ॥ १ ॥

अर्थ- हे अग्निदेव ! मेरे घर में उस लक्ष्मी को बुलाओ जो अनपगामिनी (चिरः स्थाई) हो, अर्थात् मुझे न छोड़े, जिस लक्ष्मी के आने पर मैं सोना, उत्तम यश और दास-दासियों, घोड़े (वाहन), नौकर-चाकर एवं पुत्रों तथा पौत्रों को भी प्राप्त करूं अर्थात् ऐसी स्थाई लक्ष्मी मेरे घर में निरंतर रूप से रहे।

विशेष — उपर्युक्त दोनों मन्त्र प्रसिद्ध 'श्रीसूक्त' की ऋचायें हैं। अपने सन्मुख

अग्निदेव को प्रज्वलित कर, गोघृत या बिल्व समिधाओं से इन (15) ऋचाओं के अन्त में 'स्वाहा' पद उच्चारण करके नित्य हवन करने पर शीघ्र ही उत्तम फल की प्राप्ति होती है। जिस व्यक्ति के घर में रुपयों की बरकत नहीं होती, हर वक्त जेब खाली रहती है, कर्जा रहता है तथा मांगने वाले तंग करते हैं उसके लिए मन्त्र रामबाण व अमृत तुल्य, औषध स्वरूप हैं। यदि विद्वान् व्यक्ति सम्पूर्ण श्रीसूक्त की 15 आवृत्ति का नित्य हवनात्मक प्रयोग करे तो वह अखण्ड कीर्ति व विपुल यश को शीघ्र प्राप्त करता है, इसमें सन्देह नहीं ।

साभार भोजराज द्विवेदी की पुस्तक तंत्र मंत्र उपाय 

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