Shiv ने क्यों किया था Tandava जानिए, कैसे बना? ये है रहस्य

Shiv ने क्यों किया था Tandava जानिए, कैसे बना? ये है रहस्य

शिवतांडव स्तोत्र (Shiva Tandava Stotra) का प्रतिदिन पाठ करने से व्‍यक्ति को जिस किसी भी सिद्धि की महत्वकांक्षा होती है, भगवान शिव (Lord Shiva) की कृपा से वह आसानी से पूर्ण हो जाती है. आइए जानते हैं शिव तांडव स्त्रोत (shiva tandav stotra) कैसे बना था-

कुबेर (Kuber)रावण (ravana) दोनों ऋषि विश्रवा (Rishi Vishrava) की संतान थे और दोनों सौतेले भाई थे. ऋषि विश्रवा (rishi vishrava) ने सोने की लंका (Sone ki lanka) का राज्य कुबेर (kuber) को दिया था लेकिन किसी कारणवश अपने पिता के कहने पर वे लंका (Lanka) का त्याग कर हिमाचल (Himachal) चले गए. कुबेर (kuber) के चले जाने के बाद इससे दशानन (dashanan) बहुत प्रसन्न हुआ. वह लंका (lanka) का राजा बन गया और लंका (lanka) का राज्य प्राप्त करते ही धीरे-धीरे वह इतना अहंकारी हो गया कि उसने साधुजनों पर अनेक प्रकार के अत्याचार करने शुरू कर दिए.

जब दशानन (dashanan) के इन अत्याचारों की ख़बर कुबेर (kuber) को लगी तो उन्होंने अपने भाई को समझाने के लिए एक दूत भेजा, जिसने कुबेर (kuber) के कहे अनुसार दशानन (Dashanan) को सत्य पथ पर चलने की सलाह दी. कुबेर की सलाह सुन दशानन को इतना क्रोध आया कि उसने उस दूत को बंदी बना लिया व क्रोध के मारे तुरन्त अपनी तलवार से उसकी हत्या कर दी. कुबरे की सलाह से दशानन इतना क्रोधित हुआ कि दूत की हत्या के साथ ही अपनी सेना लेकर कुबेर की नगरी अलकापुरी को जीतने निकल पड़ा और कुबेर की नगरी को तहस-नहस करने के बाद अपने भाई कुबेर पर गदा का प्रहार कर उसे भी घायल कर दिया लेकिन कुबेर के सेनापतियों ने किसी तरह से कुबेर को नंदनवन पहुँचा दिया.

चूंकि दशानन ने कुबेर की नगरी व उसके पुष्पक विमान पर भी अपना अधिकार कर लिया था, सो एक दिन पुष्पक विमान में सवार होकर शारवन की तरफ चल पड़ा. लेकिन एक पर्वत के पास से गुजरते हुए उसके पुष्पक विमान की गति स्वयं ही धीमी हो गई. चूंकि पुष्पक विमान की ये विशेषता थी कि वह चालक की इच्छानुसार चलता था तथा उसकी गति मन की गति से भी तेज थी, इसलिए जब पुष्पक विमान की गति मंद हो गर्इ तो दशानन को बडा आश्चर्य हुआ. तभी उसकी दृष्टि सामने खडे विशाल और काले शरीर वाले नंदीश्वर पर पडी. नंदीश्वर ने दशानन को चेताया कि-

यहाँ भगवान शंकर (bhagwan shankar) क्रीड़ा में मग्न हैं इसलिए तुम लौट जाओ, लेकिन दशानन कुबेर पर विजय पाकर इतना दंभी हो गया था कि वह किसी कि सुनने तक को तैयार नहीं था. उसे उसने कहा कि- कौन है ये शंकर और किस अधिकार से वह यहाँ क्रीड़ा करता है? मैं उस पर्वत का नामो-निशान ही मिटा दूँगा, जिसने मेरे विमान की गति अवरूद्ध की है. इतना कहते हुए उसने पर्वत की नींव पर हाथ लगाकर उसे उठाना चाहा. अचानक इस विघ्न से शंकर भगवान विचलित हुए और वहीं बैठे-बैठे अपने पाँव के अंगूठे से उस पर्वत को दबा दिया ताकि वह स्थिर हो जाए. लेकिन भगवान शंकर के ऐसा करने से दशानन की बाँहें उस पर्वत के नीचे दब गई.

फलस्वरूप क्रोध और जबरदस्त पीडा के कारण दशानन ने भीषण चीत्कार कर उठा, जिससे ऐसा लगने लगा कि मानो प्रलय हो जाएगा. तब दशानन के मंत्रियों ने उसे शिव स्तुति करने की सलाह दी ताकि उसका हाथ उस पर्वत से मुक्त हो सके. दशानन ने बिना देरी किए हुए सामवेद (samveda) में उल्लेखित शिव (shiva) के सभी स्तोत्रों का गान करना शुरू कर दिया, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव (Lord Shiva) ने दशानन को क्षमा करते हुए उसकी बाँहों को मुक्त किया.

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