जन्मकुण्डली में प्रेम,विवाह और आकर्षण के योग
Combinations of love, marriage and attraction in horoscope
Thu, 20 Feb 2025

(आचार्य पं. रामचन्द्र शर्मा 'वैदिक' - विभूति फीचर्स) भारतीय ज्योतिष में जीवन के प्रत्येक महत्वपूर्ण भाग का विषद् विश्लेषण है। प्रेम, विवाह, आकर्षण तथा जीवनसाथी चयन पर ज्योतिष ने स्पष्ट विचार व्यक्त किये हैं।
भारतीय ज्योतिष जन्मकुण्डली 12 भावों को जीवन के विभिन्न पहलुओं से जोड़ता है। लग्न व्यक्तित्व का परिचायक है। आकर्षण तथा सुंदरता लग्न के बलवान होने से प्राप्त होती है। इसमें सप्तम भाव जीवन साथी का भाव है। जीवनसाथी की जानकारी सप्तम भाव से प्राप्त होती है। पंचम भाव बौद्घिक क्षमता, निर्णय क्षमता तथा शिक्षा का भाव है। इसी तरह एकादश भाव मित्रता तथा सहयोगियों का भाव है। तीसरा भाव पराक्रम का है तथा नवम् भाव भाग्य का है। इन सभी भावों का प्रेम-विवाह या गंधर्व-विवाह में महत्वपूर्ण सहयोग होता है। इसी तरह मित्रता या जीवन साथी के चुनाव तथा प्रेम विवाह में चंद्रमा, मंगल तथा शुक्र की भूमिका अति महत्वपूर्ण होती है।
चंद्रमा मन का कारक है। यह रहस्यमय तथा शीघ्र गति से चलने वाला ग्रह है। मन पर आधिपत्य होने से यह चित्त की चंचलता का निर्धारक है। 'चंद्रमा मनसो जात' अर्थात व्यक्तित्व का आकर्षक होना तथा सुंदरता में चंद्रमा की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
मंगल ऊर्जा व साहस प्रधान ग्रह है। यह रक्त पर आधिपत्य रखता है तथा सेनापति है। प्रेम-विवाह या गंधर्व-विवाह में साहस अत्यंत आवश्यक है। चन्द्रमा-मंगल की युति जातक को आकर्षक व धनी भी बनाती है।
शुक्र काम जीवन का प्रतिनिधि है तथा फूल, सुगंध, चमक, आकर्षण तथा विपरीत लिंग के प्रति झुकाव का कारक है। शुक्र, मंंगल व चन्द्रमा युवा ग्रह है, शीघ्र गति से चलते है इसलिये युवा वर्ग, प्रेमी तथा नव-विवाहितों को ये सबसे ज्यादा प्रभावित करते हैं। प्रेम-विवाह में इन तीनों ग्रहों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। आजकल प्रचलित 'रोमांटिक मैरिज' के तो ये निर्णायक कारक ग्रह है। चन्द्रमा मन, मंगल साहस, शुक्र आकर्षण से ही नवयुवा-युवतियों की मित्रता में छिपे रहस्य को जाना जा सकता है।
भारतीय ज्योतिष के विभिन्न फलित ग्रन्थों तथा व्यवहारिक अनुभव से प्रेम-विवाह के कुछ योग इस तरह व्यक्त किये जा सकते हैं।
(1) सप्तम भाव का स्वामी पंचम एवं तृतीय भाव के स्वामी से संपर्क करता हो तो जातक प्रेम-विवाह कर सकता है।
(2) शुक्र व मंगल की युति का संबंध लग्न या सप्तम भाव से हो तथा चन्द्रमा का इस पर प्रभाव हो तो जातक निश्चित रूप से प्रेम और आकर्षण के कारण विवाह करता है।
शुक्र व मंगल की युति भी काम जीवन पर प्रत्यक्ष प्रभाव रखती है। इस युति का एक परिणाम शारीरिक आकर्षण के कारण विवाह हो भी सकता है।
(3) शुक्र व मंगल परस्पर भाव परिवर्तन का योग बनाते हो तथा इनका संबंध बृहस्पति से हो तो जातक पहले काम संबंध फिर विवाह करता है।
(4) प्रेम-विवाह की सफलता में बृहस्पति तथा सप्तम भाव के स्वामी का बलवान होना आवश्यक है। बृहस्पति की कृपा वैवाहिक जीवन को समृद्घ तथा स्थिर बनाती है तथा सप्तम भाव का बलवान स्वामी वैवाहिक जीवन की गाड़ी को सुचारू रूप से चलाता है।
(5) शनि एवं बृहस्पति की गोचर स्थिति प्रेम-विवाह की अवधि भी व्यक्त करती है। गोचर में जब शनि व बृहस्पति का संबंध सप्तम भाव या सप्तम भाव के स्वामी से बनता है तब विवाह निश्चित होता है।
(6) राहू, केतु, शनि यदि मंगल-शुक्र की युति को प्रभावित करते हैं या मंगल-शुक्र की युति राहु-केतु या शनि के पाप कर्तरी योग में होती है तो प्रेम में धोखा होता है। शारीरिक आकर्षण समाप्त होते ही प्रेम का भूत उतर जाता है।
(7) पंचम व सप्तम भाव की ज्योतिषीय प्रबलता व सकारात्मकता प्रेम को विवाह के अंजाम तक पहुंचाती है।
प्रेम के लिये एकादश भाव भी महत्वपूर्ण है। यह मित्रता का भाव है। यदि इस पर बृहस्पति का प्रभाव है तो मित्रता सात्विक तथा मंगल-शुक्र का प्रभाव है तो शारीरिक आकर्षण तथा चन्द्र शनि का प्रभाव है तो यह मित्रता सोची समझी नीति के तहत होती है।
जो भी हो 1,3,5,7,9,11 भाव तथा शुक्र, मंगल व चन्द्रमा का प्रेम से प्रत्यक्ष संबंध है। सफलता के लिये बृहस्पति की कृपा तथा असफलता के लिये शनि व राहु की वक्र दृष्टि काफी है। (विभूति फीचर्स)