सुप्रीम कोर्ट ने 29 सप्ताह के गर्भ से पीड़ित 20 वर्षीय छात्रा के बच्चे को गोद लेने की अनुमति दी

नई दिल्ली, 2 फरवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्ति का इस्तेमाल करते हुए 29 सप्ताह के अनचाहे गर्भ से पीड़ित 20 वर्षीय छात्रा के प्रसव के बाद बच्चे को गोद लेने की अनुमति दी।
सुप्रीम कोर्ट ने 29 सप्ताह के गर्भ से पीड़ित 20 वर्षीय छात्रा के बच्चे को गोद लेने की अनुमति दी
नई दिल्ली, 2 फरवरी (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्ति का इस्तेमाल करते हुए 29 सप्ताह के अनचाहे गर्भ से पीड़ित 20 वर्षीय छात्रा के प्रसव के बाद बच्चे को गोद लेने की अनुमति दी।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी और डॉ. अमित मिश्रा, जिन्होंने याचिकाकर्ता से बातचीत की, उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता प्रसव के बाद बच्चे को अपने पास नहीं रखना चाहती है।

पीठ ने कहा: इन परिस्थितियों में, गर्भावस्था के अंतिम चरण को ध्यान में रखते हुए यह मां और भ्रूण के सर्वोत्तम हित में माना गया है कि प्रसव के बाद बच्चे को गोद लेने के लिए दिया जा सकता है। गोद लेने का अनुरोध याचिकाकर्ता द्वारा सुझाव दिया गया है क्योंकि वह बच्चे की देखभाल करने की स्थिति में नहीं है।

भाटी ने अदालत को सूचित किया कि उसने याचिकाकर्ता की बहन से भी बातचीत की थी ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या वह बच्चे को गोद लेने के लिए तैयार होगी। हालांकि, बहन ने कई कारणों से ऐसा करने में असमर्थता व्यक्त की। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और भाटी ने अदालत को अवगत कराया कि केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के तहत बाल दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (सीएआरए) के साथ पंजीकृत भावी माता-पिता द्वारा प्रसव के बाद बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने का प्रयास किया गया है।

अदालत को इस तथ्य से अवगत कराया गया कि दो संभावित माता-पिता, जो सीएआरए के तहत माता-पिता पंजीकरण संख्या के साथ पंजीकृत हैं, बच्चे को गोद लेने के लिए तैयार हैं और इच्छुक हैं। पीठ ने परिस्थितियों पर विचार करने के बाद कहा, हम एम्स निदेशक से यह सुनिश्चित करने का अनुरोध करते हैं कि सभी आवश्यक सुविधाएं शुल्क या किसी भी प्रकार के खर्च के भुगतान के बिना उपलब्ध कराई जाएं ताकि एम्स में सुरक्षित वातावरण में प्रसव हो सके। याचिकाकर्ता की गोपनीयता को बनाए रखा जाएगा और यह सुनिश्चित करने के लिए सभी कदम उठाए जाएंगे कि एम्स में अस्पताल में भर्ती होने के दौरान याचिकाकर्ता की पहचान उजागर नहीं की जाए।

छात्रा द्वारा दायर याचिका का निस्तारण करते हुए, पीठ ने कहा: हम असाधारण स्थिति के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत इस अदालत के अधिकार क्षेत्र के अनुरूप कार्रवाई के वर्तमान तरीके को अपना रहे हैं।

अदालत को सूचित किया गया कि याचिकाकर्ता अपनी डिलीवरी के साथ आगे बढ़ने के लिए सहमत हो गई है, हालांकि वह जल्द से जल्द ऐसा करने की इच्छा रखती है। पीठ ने अपने आदेश में कहा- इस संदर्भ में, हम अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान से मां और भ्रूण की सुरक्षा और स्वास्थ्य के हित में सभी आवश्यक सावधानी बरतने का अनुरोध करेंगे ताकि एम्स में विशेषज्ञ चिकित्सा सलाह को ध्यान में रखते हुए प्रसव की उपयुक्त तिथि तय की जा सके।

याचिकाकर्ता ने एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड राहुल शर्मा के माध्यम से अपने अनचाहे गर्भ के गर्भपात की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था।

--आईएएनएस

केसी/एएनएम

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