प्लास्टिक प्रदूषण: पर्यावरण पर बढ़ता संकट और हमारा उत्तरदायित्व

(लेखक - डॉ. प्रितम भि. गेडाम - अंतर्राष्ट्रीय प्लास्टिक बैग मुक्त दिवस, 3 जुलाई 2025) आज जब मानव विकास की दौड़ में आगे बढ़ रहा है, तब उसकी जरूरतों और लालसाओं ने प्रकृति के संतुलन को गंभीर रूप से बिगाड़ दिया है। इन्हीं जरूरतों से उपजा प्लास्टिक अब एक वैश्विक आपदा का रूप ले चुका है। धरती, जल, वायु और आकाश—हर स्थान पर इसका जहरीला प्रभाव बढ़ता जा रहा है। प्रतिबंधों के बावजूद प्लास्टिक बैग और अन्य प्लास्टिक उत्पादों का उपयोग अनियंत्रित रूप से जारी है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
इसी खतरे को उजागर करने और जनजागरूकता फैलाने के लिए हर वर्ष 3 जुलाई को "अंतर्राष्ट्रीय प्लास्टिक बैग मुक्त दिवस" मनाया जाता है। वर्ष 2025 की थीम है:“एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक बैग के उपयोग को कम करके उसके टिकाऊ विकल्पों को बढ़ावा देना। यह थीम एक स्पष्ट संदेश देती है कि अब समय आ गया है जब हमें डिस्पोजेबल प्लास्टिक उत्पादों की जगह पुन: उपयोगी विकल्पों को अपनाना चाहिए।
वैश्विक परिदृश्य
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अनुसार:
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हर साल 460 मिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है।
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2019 में उत्पन्न कुल प्लास्टिक कचरे का 88% हिस्सा मैक्रोप्लास्टिक था।
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केवल 9% प्लास्टिक ही अब तक रीसायकल किया गया है।
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प्रतिदिन समुद्रों, नदियों और झीलों में लगभग 2,000 ट्रक प्लास्टिक कचरा फेंका जाता है।
अनुमान है कि 2050 तक समुद्र में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक हो सकता है। प्लास्टिक कचरे से हर साल 1 लाख से अधिक समुद्री स्तनधारी और 10 लाख समुद्री पक्षियों की मृत्यु होती है।
भारत में प्लास्टिक संकट
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भारत की प्रति व्यक्ति प्लास्टिक खपत 11 किलोग्राम प्रतिवर्ष तक पहुंच चुकी है।
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हर साल 9.3 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है।
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केवल 8-10% प्लास्टिक ही रीसायकल होता है; बाकी लैंडफिल या जलमार्गों में चला जाता है।
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प्लास्टिक कचरा जलने पर हवा में जहरीले रसायन जैसे डाइऑक्सिन फैलते हैं, जिससे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं।
स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रभाव
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प्लास्टिक से निकलने वाले रसायन हमारे शरीर के अंगों जैसे दिल, लीवर, फेफड़े, मस्तिष्क आदि को प्रभावित करते हैं।
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माइक्रोप्लास्टिक अब हमारे भोजन, पानी और यहां तक कि हवा में भी मिल चुका है।
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एक सामान्य व्यक्ति सालाना लगभग 53,864 माइक्रोप्लास्टिक कण खा जाता है।
प्लास्टिक बैग का खतरा
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यह बायोडिग्रेडेबल नहीं होता, सैकड़ों वर्षों तक मिट्टी में बना रहता है।
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गर्म खाद्यपदार्थों को प्लास्टिक बैग में डालने से हानिकारक रसायन भोजन में मिल जाते हैं।
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बच्चों, गर्भवती महिलाओं और वृद्धों के लिए विशेष रूप से घातक है।
समाधान की राह
हम सभी को अपनी आदतें बदलनी होंगी:
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पुनः उपयोग योग्य थैले अपनाएं।
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सिंगल यूज़ प्लास्टिक का पूर्णत: त्याग करें।
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खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग में वैकल्पिक साधनों का उपयोग करें।
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जागरूकता बढ़ाएं और दूसरों को भी जागरूक करें।
प्लास्टिक आज सुविधा का पर्याय है, लेकिन दीर्घकाल में यह हमारे और पृथ्वी के लिए दुविधा बन गया है। जब तक हम उपभोक्ता स्तर पर अपनी ज़िम्मेदारी नहीं समझेंगे, तब तक किसी भी नीति या प्रतिबंध का कोई वास्तविक असर नहीं होगा। हमें याद रखना चाहिए प्रकृति हमें जीवन देती है, और उसे बचाना हमारा कर्तव्य है। आज हम प्लास्टिक के खिलाफ जो कदम उठाएंगे, वही कल हमारी पीढ़ियों को एक सुरक्षित भविष्य देंगे।